स्पेशल रिपोर्ट: बिना डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान के बन रही थी उत्तरकाशी टनल

उत्तरकाशी। हर दिन गुजरने के साथ ही एक तरफ जहां उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों के स्वास्थ्य को लेकर चिन्ताएं बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ टनल बनाने में बरती जा रही लापरवाही भी एक-एक कर सामने आ रही है। 12 नवंबर के बाद से चार रेस्क्यू प्लान पर काम किया जा चुका है और चारों प्लान लगभग फेल हो चुके हैं। अमेरिकन ऑगर ड्रिलिंग मशीन के फेल हो जाने के बाद 10 नवंबर की सुबह से काम पूरी तरह बंद है। 

सूचना है कि इंदौर से एक और मशीन जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंच गई है। अब इस मशीन को सिलक्यारा पहुंचाया जा रहा है। हालांकि अधिकारियों का दावा है कि ऑगर मशीन काम कर रही है और इंदौर से मंगवाई गई मशीन को स्टैंडबाई में रखा जाएगा। टनल बना रही कंपनी ने टनल में फंसे लोगों की सूची फिर से जारी की है। इस सूची में अब 40 की जगह 41 नाम हैं।

इस बीच मजदूर यूनियन सीटू के प्रांतीय अध्यक्ष राजेन्द्र नेगी 18 नवंबर को घटनास्थल पर पहुंचे। ‘जनचौक’ के साथ हुई बातचीत में उन्होंने मौके की ताजा स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि टनल से मजदूरों को जल्दी निकाल पाने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। हालांकि उनका कहना है कि सभी मजदूर सुरक्षित हैं और जिनके परिजन वहां पहुंच पा रहे हैं, उनसे अंदर फंसे लोगों की पाइप के जरिये बातचीत करवाई जा रही है। उसी पाइप से फंसे हुए लोगों को ऑक्सीजन और खाना भी भिजवाया जा रहा है।

राजेन्द्र नेगी के अनुसार उन्हें मौके पर जाने से रोकने के कई प्रयास किये गये, लेकिन जब उन्होंने धमकी दी कि यदि उन्हें मौके पर नहीं जाने दिया गया तो वे यहीं धरने पर बैठ जाएंगे और ऐसी स्थिति में बड़ा हंगामा हो सकता है। तब जाकर एक सरकारी गाड़ी से अधिकारियों के साथ उन्हें मौके पर जाने दिया गया। उनका कहना है कि सुरंग के बाहर मौजूद मजदूरों को किसी से मिलने और बात करने नहीं दिया जा रहा है। इसके बावजूद मजदूर हर दिन इकट्ठा होकर विरोध दर्ज कर रहे हैं।

आज यानी 18 नवंबर को भी दोपहर के वक्त मजदूरों ने विरोध दर्ज किया और आरोप लगाया कि रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने में लापरवाही की जा रही है। राजेन्द्र नेगी ने बताया कि सुरंग के बाहर उन्हें कुछ ऐसे मजदूरों से बात करने का मौका मिला, जो इसी सुरंग में काम करते हैं। दिन की शिफ्ट होने के कारण वे घटना के वक्त घर पर थे। मजदूरों ने बताया कि उन्हें कंपनी के अधिकारियों ने किसी से भी बात करने से सख्त मना किया है।

नेगी ने मजदूरों से हुई बातचीत के हवाले से यह भी बताया कि जिस जगह भूस्खलन हुआ है, उसी जगह पहले भी भूस्खलन हुआ था। 6 महीने तक मरम्मत के बाद भी उसे बंद नहीं किया जा सका तो तिरपाल से ढक दिया गया था। राजेन्द्र नेगी के अनुसार जब उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि टनल निर्माण के दौरान ह्यूम पाइप क्यों नहीं थी, तो उन्हें चौंकाने वाली सूचना दी गई। बताया गया कि पहले ह्यूम पाइप लगाई गयी थी, लेकिन 5 महीने पहले कंपनी से उसे निकाल दिया था।

जिस टनल में दुर्घटना हुई, वह चारधाम सड़क परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के पर्यावरणीय आकलन के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक हाई पावर्ड कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी ने परियोजना को लेकर कई आपत्तियां दर्ज की थीं और कई सुझाव भी दिये थे। लेकिन केन्द्र सरकार ने रक्षा मंत्रालय को आगे करके इसे सामरिक महत्व की परियोजना बताकर सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी ले ली थी।

हाई पावर्ड कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ. रवि चोपड़ा इन दिनों लंदन में हैं। ‘जनचौक’ ने इस घटना के संदर्भ में उनसे टेलीफोन पर बातचीत की। डॉ. चोपड़ा ने कहा कि “यह हादसा अप्रत्याशित नहीं है, हालांकि 40 मजदूर वहां फंसे हुए हैं तो यह चिन्ताजनक अवश्य है।”

उनका कहना है कि “हाई पावर्ड कमेटी के कार्यकाल में हमने कई जगहों का अध्ययन किया। इतनी बड़ी योजना के लिए जिस सोच, विचार और विवेक की जरूरत थी, हमने उसका अभाव पाया। परियोजना का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) भी नहीं हुआ। जिस तरह के भूवैज्ञानिक अध्ययन और सर्वेक्षण की जरूरत थी, वह भी नहीं करवाया गया। ऐसी स्थिति में इस तरह का हादसा होना ही था।”

डॉ. चोपड़ा के अनुसार “किसी भी सुरंग को बनाते समय हादसे की आशंका तो रहती ही है। इसलिए इस तरह की योजनाओं में डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान की जरूरत होती है। हादसा होने के एक हफ्ते बाद भी जिस तरह से वहां फंसे हुए लोगों को नहीं निकाला जा सका है, उससे साफ है कि टनल बनाने वाली कंपनी के पास कोई डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान था ही नहीं। न ही एनएचआईडीसीएल ने इस तरफ कोई ध्यान दिया था।”

डॉ. चोपड़ा का कहना है कि “हमने एनएचआईडीसीएल (राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम) की कई परियोजनाएं देखी हैं। निगम की परियोजनाओं में तरह-तरह की लापरवाहियां हम देख चुके हैं। इन लापरवाहियों को लेकर निगम को सूचित भी किया गया, लेकिन कभी भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया।” वे कहते हैं, “यह घटना किसी भी हालत में चौंकाने वाली घटना नहीं है। लेकिन, 40 लोगों की जिन्दगी वहां फंसी हुई है, यह बेहद अफसोसजनक है।”

भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती का कहना है कि “यह विकास के नाम पर मानव जीवन को खतरे में डालना है। इतने बड़े निर्माण में आपदा स्थितियों के लिए कोई प्राविधान न किया जाना सामूहिक हत्या की पृष्ठभूमि तैयार करने जैसा आपराधिक कृत्य है।” वे कहते हैं कि “टनल निर्माण शुरू होने से पहले उसे बनाने वाली कंपनियों के सेफ्टी प्रोटोकॉल की रोबस्ट ऑडिटिंग होनी चाहिए।”

मौके से मिली खबरों के अनुसार टनल में फंसे कुछ लोगों के परिजन अब घटनास्थल पर पहुंचने लगे हैं। पाइप के जरिये सुरंग में फंसे परिजनों से उनकी बात करवाई जाती है। हालांकि यह बातचीत बहुत संक्षिप्त होती है। क्योंकि इसी पाइप से खाने की चीजें और ऑक्सीजन भी मजदूरों तक भेजी जा रही है। पाइप से हुई बातचीत से ही टनल के अंदर सभी 41 लोगों के सुरक्षित होने की सूचना मिल पा रही है।

इस बीच झारखंड के तीन अधिकारियों का दल मौके पर मौजूद है। टनल में फंसे सबसे ज्यादा 15 मजदूर झारखंड के ही हैं। सीपीआई (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी के अनुसार झारखंड के बगोदर विधानसभा क्षेत्र से उनकी पार्टी के विधायक विनोद कुमार सिंह को इस घटना में झारखंड के कई मजदूरों के फंसे होने की सूचना दी गई थी।

सूचना मिलते ही माले विधायक ने राज्य के श्रम सचिव ओर मुख्यमंत्री सचिवालय से बात की। इसके तुरंत बाद राज्य के एक आईएएस और दो राज्य सेवा के अधिकारियों को मौके पर भेज दिया गया। तीन अधिकारी लगातार सिलक्यारा में बने हुए हैं। उड़ीसा सरकार के एक प्रतिनिधि के भी मौके पर मौजूद होने की सूचना है।

उत्तरकाशी जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से सुबह दिये गये अंतिम अपडेट के अनुसार टनल में फंसे सभी लोग सुरक्षित हैं। वे टनल के भीतर दो किमी तक चल सकते हैं। उन्हें हर आधे घंटे में काजू, भीगे हुए चने, सूखे चने, पॉपकार्न भेजे जा रहे हैं। यह समान पाइप के माध्यम से ही पहुंचाए जा रहे हैं। फंसे हुए लोगों से बातचीत करने और ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए भी इसी पाइप का सहारा लिया जा रहा है।

इस बीच अधिकारियों के अनुसार तीन रेस्क्यू प्लान पर एक साथ काम किया जा रहा है। पहले प्लान के तहत ड्रिलिंग मशीन से 900 मिमी के पाइप को फंसे हुए लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। अब तक 24 मीटर पाइप मलबे से अंदर डाल दिया गया है। मलबा 70 मीटर तक होने की आशंका है। दूसरा प्लान टनल को ऊपर से काटना है। इस प्लान पर पहले दिन भी काम हुआ था, लेकिन फिर से मलबा गिरने के कारण इसे बंद कर दिया गया था। तीसरा प्लान टनल के साथ एक और टनल बनाना है।

संभावना है कि मजदूर टनल के मुहाने के करीब 200 मीटर अंदर फंसे हुए हैं। इस तरह से 200 मीटर टनल बनाकर फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि ये सारे प्लान एक हफ्ते बाद क्यों बनाये जा रहे हैं। पहले ही दिन इन पर क्यों काम शुरू नहीं किया गया।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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