क्या भाजपा के अहंकार की भेंट चढ़ जाएगी अयोध्या?

अयोध्या शहर में भारतीय जनता पार्टी के कमल छाप झंडों की भरमार है और जगह-जगह पर हनुमान की आक्रामक मुद्रा वाले ध्वज भी फहरा रहे हैं, उसके बावजूद लगता है इस बार अयोध्या योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी के अहंकार का नाश करने जा रही है। आखिर कैसे राममंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने और योगी आदित्यनाथ जैसे आक्रामक हिंदुत्ववादी नेता के मुख्यमंत्री होने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अजेय छवि के बीच अयोध्या में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर हो गई?

अयोध्या (फैजाबाद) के वरिष्ठ पत्रकार और फैजाबाद प्रेस क्लब के अध्यक्ष त्रियुग नारायण तिवारी इस बार के विधानसभा चुनाव में अयोध्या सीट के बदले हुए माहौल का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जिस तरह पहले भाजपा की हवा बनती थी वैसी अब नहीं है। रथ निकलता था, कार्यकर्ताओं की टोली निकलती थी। लोगों में जोश होता था लेकिन इस बार ऐसा एकदम नहीं है। कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आए थे। 1500 कुर्सियां लगाई गई थीं। उनमें से कई खाली थीं। उनको जानबूझकर विलंब से लाया गया फिर भी ऐसा हो गया। अगर समय पर आ गए होते तो बड़ी निराशा होती। त्रियुग नारायण कहते हैं “अयोध्या सीट से मौजूदा विधायक और भाजपा उम्मीदवार वेद प्रकाश गुप्ता का नाम लेते ही लोग भागने लगते हैं। इसलिए उम्मीदवार से इतर संघ परिवार ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बजरंग दल के लोग मैदान में उतर आए हैं। वे नई-नई तरकीब निकाल रहे हैं।”

लेकिन स्थिति बदली हुई है। लोगों ने जिन वेद प्रकाश गुप्ता को 2017 में 50 हजार से ज्यादा वोटों से जिताया था, आज उन्हें लोग देखना तक नहीं पसंद करते और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पवन उर्फ तेजनारायण पांडेय को जिनसे लोग कल तक दूर से भगाते थे और परचा लेना नहीं चाहते थे उन्हें अपने घर पर बिठा रहे हैं और चाय पिला रहे हैं। वे कहते हैं कि इस बार बसपा ने रवि मौर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है। पिछली बार बसपा के द्वारा वजमी को खड़ा किया था, जिन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के वोट काटकर सपा को हराने में मदद की थी। उधर कांग्रेस ने भी रीता मौर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है।

अयोध्या सीट पर तकरीबन चार लाख मतदाता हैं। यहां तीस-चालीस हजार वोटों से समीकरण बनते-बिगड़ते हैं। इनमें 50,000 ब्राह्मण हैं। उनमें से चुरकीवाला, चंदनवाला और निकरवाला ब्राह्मण तो भाजपा के साथ रहेगा। लेकिन उससे अलग जो हैं वे सपा यानी तेजनारायण पांडेय के पास जा रहे हैं। बाकी 50,000 अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं। वे भी ज्यादातर सपा की ओर जा सकते हैं। लेकिन लोग अखिलेश यादव की सरकार बनाने के लिए वोट नहीं दे रहे हैं बल्कि योगी आदित्यनाथ को हराने के लिए मतदान कर रहे हैं। इसलिए मामला मुश्किल है भाजपा के लिए, परिणाम कुछ भी हो सकता है।

लोगों का कहना है कि फैजाबाद (अयोध्या) से भाजपा सासंद लल्लू सिंह भी योगी आदित्यनाथ से खिन्न हैं। इसकी एक वजह यह है कि अयोध्या में अपने पांच साल के कार्यकाल में 42 बार दौरा करने वाले योगी ने कभी उन्हें एक बार पूछा ही नहीं। वे अपने को ही सबसे बड़ा नेता मानते हैं। जबकि लल्लू सिंह ने इस जगह पर निरंतर आंदोलन किया है और भाजपा के लिए माहौल तैयार किया है।

वहीं अवध विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “तेज नारायण ने मुसलमानों को खुश करने के लिए बड़ी गलतियां की हैं। उन्होंने एक बार बकरीद पर बहुत सारा मीट बंटवाया था। इससे ब्राह्मणों की संवेदना आहत हुई थी।” उनका यह भी कहना है कि जब 2012 में तेजनारायण पांडेय जीते थे तब गुलशन बिंदू नाम की एक किन्नर को खड़ा किया गया था। उसने भाजपा के वोट काट लिए थे। इसलिए पवन पांडेय किसी तरह जीत गए थे। इस बार वैसा नहीं है। इसलिए भाजपा की प्रतिष्ठा की इस सीट को पवन जीत नहीं सकते क्योंकि उन्होंने अपनी बिरादरी को साधा नहीं।”

लेकिन गुलशन बिंदू वाली इस थ्योरी को समाजवादी पार्टी के युवा नेता आशीष पांडेय उर्फ दीपू खारिज करते हैं। उनका कहना है कि गुलशन बिंदू ने दोनों पार्टियों के वोट काटे थे। क्योंकि उनकी परवरिश मुस्लिम परिवार में हुई थी और वे पैदा ब्राह्मण परिवार में हुई थीं। गुलशन बिंदू ने समाजवादी पार्टी से मेयर का चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गई थीं। बाद में जब विधायक का टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय लड़ गईं।

आशीष पांडेय का कहना है कि अयोध्या में सपा और भाजपा की सीधी लड़ाई है। लेकिन भगवान राम तो सबके हैं। भाजपा वाले मनीराम वाला मामला चला रहे हैं। वे राम की ब्रांडिंग कर रहे हैं। राम जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर जमीनें खरीदी और बेची जा रही हैं। बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। भाजपा के उम्मीदवार वेद प्रकाश गुप्ता ने यही काम किया है। उन्हें नजूल की बहुत सारी जमीनें हथिया लीं। पहले पट्टा कराया फिर उसे फ्री होल्ड करा लिया। उनका कहना है “राम मंदिर तो ट्रस्ट बना रहा है। वो तो बनेगा ही। उसे कोई सरकार रोक नहीं सकता। लेकिन अयोध्या का और कोई विकास भाजपा ने नहीं किया। न ही श्रवण क्षेत्र के विकास के लिए कुछ किया। उससे कहीं बढ़िया विकास तो समाजवादी पार्टी के शासन में हुआ। बिजली के केबलों को अंडरग्राउंड करवाया। चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर छायादार वृक्ष लगवाए। भजन संध्या स्थल बनवाए और दो फ्लाईओवरों का निर्माण कराया। यह लोग खाली दीपोत्सव करके वाहवाही चाहते हैं।”

समाजवादी पार्टी की मजबूती की थ्योरी को काटते हुए कम्युनिस्ट नेता सूर्यकांत पांडेय कहते हैं कि सिर्फ अतिरिक्त आत्मविश्वास से चुनाव नहीं जीता जा सकता। अगर समाजवादी पार्टी को इस सीट पर जीत हासिल करनी है तो प्रगतिशील ताकतों के साथ गठजोड़ बनाना होगा और संगठन को मजबूत करना होगा।

वहीं भाजपा के मौजूदा विधायक 74 वर्षीय उम्मीदवार वेद प्रकाश गुप्ता कहते हैं “अयोध्या में वैश्विक मानकों के अनुरूप विकास की पटकथा लिखी जा रही है। पर्यटकों और श्रद्धालुओं को सभी मानकों के मुताबिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए सरकार कटिबद्ध है। विकास परियोजनाओं के साकार रूप में आ जाने से अयोध्या पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगी।”

यह सही है कि अयोध्या में बहुत सारे पुराने मंदिर हैं। सड़कें संकरी हैं। अगर आप बाईपास से हनुमान गढ़ी और रामजन्मभूमि या कनक भवन तक चार पहिया वाहन से जाने लगिए तो कहीं न कहीं फंसने की नौबत जरूर आएगी। अगर सामने से कोई और चार पहिया वाहन वाहन आ गया तो दिक्कत है या तो आपको गाड़ी पीछे लेनी होगी या फिर अगला पीछे लेगा।

लेकिन सड़कों को चौड़ा करने की यही योजना भाजपा सरकार और उसके प्रतिनिधि के लिए गले की फांस बन रही है। जिन घरों को तोड़े जाने के निशान लगाए गए थे उनके लोग नाराज हैं। बीच में व्यापारियों ने दुकानें बंद करके प्रतिरोध भी जताया था।

वह गुस्सा अयोध्या क्षेत्र के कारोबारियों और व्यापारियों में भी दिखाई देता है। अयोध्या बाईपास से हनुमान गढ़ी तक टेंपो चलाने वाले जयप्रकाश (50) बताते हैं “भले ही भाजपा सरकार ने मुसलमानों को दबा रखा है, लेकिन आम और गरीब आदमी को भी कोई राहत नहीं है। बल्कि अयोध्या के विकास से उसकी आफत है। हमारे घर पर निशान लगा दिया है नगर निगम ने। कब टूट जाए कहा नहीं जा सकता। उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है। नजूल की जमीन का दाखिल खारिज कराने गए तो कर्मचारी 20,000 रुपए रिश्वत मांगने लगे।” उन्हें यह भी डर है कि उनका डीजल वाला टेंपो कब बाहर कर दिया जाए कोई कह नहीं सकता। उसका कोई खास दाम नहीं मिलेगा। जो भाजपा के उम्मीदवार हैं वे न तो किसी की सुनते हैं और न ही किसी का हालचाल लेते हैं। इसलिए यहां तो कांटे की टक्कर है। कुछ भी हो सकता है।

वासुदेव घाट के रामस्वरूप यादव (25) अपनी भैंस चराते हुए मिल गए। भाजपा के प्रति उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उनका कहना था “भैया नरक के दिन आ गए हैं। राम मंदिर बनवा कर यह सत्यानाश कर रहे हैं। रोज गाएं मर रही हैं। उनका रखवाला कोई नहीं है। टेंपो भर भर कर रोज फेंकना पड़ता है। अगर जानवरों को चराने ले जाओ जो उन्हें जेल भेज दिया जाता है। एक ओर छुट्टा जानवरों ने आफत मचा रखी है तो दूसरी ओर गोशालाओं में जानवर बुरी तरह से मर रहे हैं।” वे तो यहां तक कहते हैं ‘ई सरकार राममंदिर बनाई कै सत्यानाश कै देत है। कहने के लिए राशन मिल रहा है फ्री लेकिन उसमें चीनी नहीं है। मिट्टी का तेल नहीं है। घर देने से ज्यादा घर उजारत हैं। बुलडोजर चल रहा है। बड़ी मुसीबत है हम लोग तो बाग में रह रहे हैं।’ उन्हें उम्मीद है कि इस बार अखिलेश की सरकार आएगी।

वासुदेव घाट के बंधे पर अपना जीवन बिता रहे बाबा रामदास कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। लेकिन वे मौजूदा सरकार की वाहवाही में भी कुछ नहीं कहते। वे बीतरागी हैं और अयोध्या के महंतों की तरह मठों में मालपुआ खाने वाले नहीं हैं। जबकि नगर निगम की ठेकेदारी करने वाले आशीष तिवारी कहते हैं कि इन लोगों ने ठेकेदारों से सारा काम करा लिया और पैसा देने को तैयार नहीं हैं। “गोशाला में भूसा सप्लाई करने वाले एक ठेकेदार का 4 करोड़ का बकाया है लेकिन भुगतान नहीं हुआ। जब उसने आत्मदाह के लिए धमकी दी तो उसका दस प्रतिशत पैसा रिलीज किया। बाबा जब भी अयोध्या आते हैं तो एक से दो करोड़ रुपए खर्च होता है। छह करोड़ रुपए तो दीपोत्सव पर खर्च कर दिया जाता है। लेकिन लोगों की रोजी-रोटी का ठिकाना नहीं है। अब संघ परिवार वाले नया खेल कर रहे हैं और जन्मभूमि की मिट्टी रामराज बताकर मिश्री के साथ बांट रहे हैं। इस तरह से वे लोगों की भावनाएं जगाना चाहते हैं।”

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी इशहाक खान मानते हैं कि अयोध्या सीट पर इस बार बड़ी कांटे की लड़ाई है। यहां भाजपा हार भी सकती है। वजह यह है कि भाजपा का शासन बहुत अच्छा नहीं रहा। जनता बेहद निराश है। हालांकि पिछली बार जो हार-जीत की खाई थी वह बहुत बड़ी थी। लेकिन इस बार मामला बहुत नजदीक का रहेगा। कोई भी हार जीत सकता है। वेद प्रकाश गुप्ता जी ने कोई काम किया नहीं। कहने के लिए विकास हो रहा है अयोध्या का, पर उसके नाम पर सिर्फ तोड़ फोड़ हो रही है। इशहाक खान बताते हैं कि जब वे फैजाबाद जिला पंचायत में वित्त अधिकारी थे तो वेद प्रकाश गुप्ता ने उनसे काफी लाभ लिया है। उस समय वेद गुप्ता संघर्ष कर रहे थे। उनके वेद प्रकाश गुप्ता से अच्छे संबंध हैं। वे आदमी बुरे नहीं हैं। लेकिन उनकी दिक्कत यह है कि भाजपा में विधायकों की कुछ सुनी नहीं जाती। जबकि उनकी तुलना में पवन पांडेय काफी सक्रिय हैं और वे जहां भी जनता के साथ परेशानी होती है वहां पहुंच जाते हैं। इसके अलावा वे हाई कमान के काफी करीबी माने जाते हैं। इसलिए जो भी काम होगा वे करवा लाते हैं। वे महंगाई को भी बड़ा मुद्दा मानते हैं जिससे भाजपा को नुकसान हो सकता है।

लेकिन वेद प्रकाश गुप्ता के चुनाव संचालक, अवध विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे प्रोफेसर बीबी मणि त्रिपाठी अयोध्या में भाजपा के प्रचार में पिछड़ने की और वजह बताते हैं। उनका कहना था कि पहले यह आशा थी कि इस सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ेंगे। इसलिए अलग किस्म की तैयारी थी। जब यह तय हुआ कि योगी गोरखपुर से लड़ेंगे और यहां से अब वेद प्रकाश गुप्ता ही लड़ेंगे तो अलग किस्म की तैयारी हुई। वे मानते हैं कि प्रत्याशी की उम्र भी एक कारक है। वे 74 साल के हैं जबकि दूसरी ओर 45 साल का युवा प्रत्याशी है। वे थोड़े शिथिल हैं और पवन की तरह घर-घर नहीं पहुंच पा रहे हैं। सबके पैर नहीं छू रहे हैं। इसके अलावा पवन का टिकट लगभग तय था। इसलिए वेद गुप्ता उतने सक्रिय नहीं थे। लेकिन भाजपा के चुनाव जीतने में उनको कोई शंका नहीं है। उनका कहना है कि हर चुनाव को चुनौती मानकर लड़ना चाहिए। लेकिन यहां किसी प्रकार की सरकार विरोधी लहर नहीं है। मोदी और योगी के नाम पर लोग मन बना चुके हैं।

सड़कों के किनारे पर तोड़-फोड़ पर त्रिपाठी कहते हैं कि, जहां तक तोड़फोड़ की योजना और उसको लेकर नाराजगी की बात है तो उसे प्रशासन के संज्ञान में लाया गया है। सुग्रीव किले के पास जो पुराना बस अड्डा था वहां कुछ तोड़ फोड़ हुई है। लेकिन सहादत गंज से लेकर रकाब गंज तक जो तोड़फोड़ होनी थी उसे रोक दिया गया है। व्यापारियों ने इसका विरोध किया था। जहां तक अयोध्या में जमीन घोटाले की बात है तो त्रिपाठी का कहना था “जमीन जिसने पहले खरीदी थी, वह उसे बढ़े दामों पर तो बेचेगा ही। अब देखिए जब मैंने डिग्री कॉलेज में नौकरी शुरू की थी तो 300 रुपए महीने वेतन था। लेकिन तब काला नमक चावल खाते थे। आज मेरी पेंशन 86,000 रुपए है लेकिन अब वह चावल नहीं खा पाते।” प्रोफेसर त्रिपाठी को वेद प्रकाश गुप्ता की जीत के बारे में कोई शुबहा नहीं है।

अयोध्या 27 तारीख को अपना फैसला देगा कि भाजपा के लोगों ने सचमुच रामराज्य को समझा है और उसे कायम किया है या फिर जयश्रीराम का नारा लगाकर और रामराज्य का सपना दिखा कर अपनी मनमानी की है।

कहते हैं भगवान अहंकार का आहार करते हैं। रावण विद्वान भी था और योद्धा भी महान था लेकिन उसका अहंकार और उसकी वासना ने उसके वंश का नाश कर दिया। वासना चाहे सत्ता की हो, नारी की हो या धन की, वह विनाश की ओर ही ले जाती है। भगवान कृष्ण ने कर्ण से भी कहा था कि पौरुष और अहंकार में अंतर होता है। अहंकार से बचो वरना विनाश होगा। बाइबल में भी कहा गया है कि ऊंट सुई की नोक से गुजर सकता है लेकिन अहंकारी व्यक्ति को स्वर्ग का राज नहीं मिल सकता। यह बात महात्मा गांधी ने भी कही है कि “एक बच्चे तक को सत्य यानी ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं लेकिन अहंकारी को नहीं हो सकते, क्योंकि वह अपनी बात को ही रटता रहता है सत्य को देखने को तैयार नहीं होता।” अयोध्या में भाजपा का अहंकार ही उसके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।

(अरुण कुमार त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)  

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