2002 का गुजरात नरसंहार 2023 में मणिपुर में दोहराया जा रहा है। उत्तर भारत के लिए पूर्वोत्तर के राज्य आज भी प्रधानमंत्री के दौरों या दिल्ली, बेंगलुरु में उनके साथ नस्लीय भेदभाव की घटना के कारण ही सुर्खियां बनती हैं, और तभी यदाकदा हमारी निगाहें उस ओर जाती हैं। कभी-कभार हमारे बीच से यदि कोई परिवार सिक्किम, मणिपुर, मिजोरम या अरुणाचल में गर्मियों की छुट्टियां बिताने जाता है, तभी वह पल आता है जब हमें थोड़ा नजदीक से उनके समाज को देखने का मौका मिल पाता है। लेकिन ऐसे लोग महज 1% से अधिक नहीं होंगे, और उस दौरान भी हम पर्यटक की भूमिका में होते हैं और उत्तर-पूर्व के व्यवसायिक पहलू से ही परिचित हो पाते हैं।
लेकिन पिछले 75 दिनों से मणिपुर लगातार जल रहा है, 35 लाख की छोटी सी आबादी में मैतेई, कुकी और नागा समेत कुल 34 से अधिक जातीय समूह रहते हैं। इस बारे में संभवतः 1% लोगों को भी कल तक जानकारी नहीं थी। मैतेई खुद को हिंदू मानते हैं, और वहां पर हाल के वर्षों में बजरंग दल की तरह अरंबाई टैंगोल और मैतेई लिपुन नामक सांस्कृतिक संगठन राज्य में अपने समुदाय को हिंदुत्ववादी विचारधारा के आधार पर संगठित कर रहे हैं, बड़े पैमाने पर हथियारों की ट्रेनिंग सहित कुकी समुदाय पर लगातार हमले कर रहे हैं, ये बातें शेष भारत की जानकारी में रत्ती भर नहीं था।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मणिपुर पर पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है। देर रात केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भी मणिपुर में महिलाओं के साथ हो रहे घृणित व्यवहार पर अपनी ख़ामोशी को तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन पीएम मोदी ने इस घटना के बारे में क्या कहा, यह जानना जरुरी है।
उन्होंने कहा, “आज जब मैं लोकतंत्र के मंदिर के पास खड़ा हूं तो मेरा हृदय पीड़ा और क्रोध से भरा हुआ है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप और गुनाह करने वाले कितने हैं और कौन हैं, वह अपनी जगह पर है लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ लोगों को शर्मशार होना पड़ रहा है। मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करना चाहता हूं कि वे अपने राज्य में कानून-व्यवस्था को और मजबूत करें। खासकर हमारी माताओं और बहनों की रक्षा के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं।
ऐसी घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ या चाहे मणिपुर की हो- इस देश में हिंदुस्तान के किसी भी कोने में, किसी भी राज्य में राजनीतिक वाद-विवाद से उपर उठकर कानून-व्यवस्था का महात्म्य है, उसका सम्मान बरकारर रखना चाहिए। और मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि किसी भी गुनाहगार को बक्शा नहीं जायेगा। कानून अपनी पूरी शक्ति और सख्ती से एक के बाद एक कदम उठाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ ये जो हुआ है, उसे कभी माफ़ नहीं किया जा सकता है। बहुत-बहुत धन्यवाद दोस्तों।”
सबसे बड़ा सवाल यह है कि पीएम मोदी ने मणिपुर के बारे में आज ही मुहं क्यों खोला? ऐसी कौन सी नैतिक मजबूरी आन पड़ी जो उन्हें इस बारे में बोलने के लिए विवश होना पड़ा है। यदि कल रात के सोशल मीडिया पर ध्यान दें तो कल भारत के इतिहास का एक काला दिन था। लोग जब काम से छूटकर अपने घरों की ओर लौट रहे थे या घर पहुंच गये थे, यह वीडियो वायरल होने लगा। देखते ही देखते लाखों की संख्या में लोग, विशेषकर देश की आम महिलाओं तक ने ट्वीट, फेसबुक पोस्ट में अपनी पीड़ा, बेबसी और देश की इस हालत को बयां करना शुरू कर दिया था।
कथित राष्ट्रीय मीडिया ने काफी देर तक खुद को रोके रखा, लेकिन रात 10:30 बजे होते-होते विकेट गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसने थमने का नाम नहीं लिया। मशहूर चित्रा त्रिपाठी, रुबिका लियाकत यहां तक कि सुधीर चौधरी तक का वीडियो देख खून खौलने लगा। चौधरी ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को टैग करते हुए उनके इस्तीफे तक की सलाह दे डाली। यहां तक कि केंद्र सरकार को भी अपनी चुप्पी तोड़ने का अनुरोध कर दिया।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी इस वीभत्स घटना से परेशान दिखीं, और 9 वर्ष में पहली बार उन्हें अपने आचरण से विपरीत बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन उन्होंने देश को जानकारी दी कि उन्होंने इस मुद्दे पर बीरेन सिंह से बातकर इस घटना को अंजाम देने वाले तत्वों के खिलाफ जांच और सजा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जायेगी, का आश्वासन हासिल कर लिया है।
अंजना ओम कश्यप भी मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर ट्वीट कर इस घटना को रूह कंपा देने वाला बता रही हैं। आज वे इसे महिलाओं को नग्न करना नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के नग्न हो जाने के रूप में देख रही हैं। लेकिन पीएम मोदी के लिए संभवतः सबसे बड़ा दबाव सीधे न्यायपालिका से मिला, जब देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ की टिप्पणी मीडिया में सुर्खियां बनने लगीं कि “हम सरकार को इस बारे में कार्रवाई करने के लिए जरा सा वक्त दे रहे हैं, यदि देर हुई तो हम आवश्यक कदम उठा लेंगे।”
पीएम मोदी जो पिछले 75 दिनों से मणिपुर पर मुंह खोलने की मांग को पूरी तरह से खारिज कर चुके थे, अपनी अमेरिकी यात्रा तक में इसका खामियाजा भुगत चुके थे। विपक्षी दलों की बार-बार मांग, कुकी महिलाओं का जंतर-मंतर पर प्रदर्शन और मौन जुलूस, गृहमंत्री के आवास तक प्रदर्शन उनके राजनीतिक एजेंडा को डिगाने में विफल रहा।
अमेरिकी राजदूत ने अपने कोलकाता प्रवास के दौरान एक संवावदाता के प्रश्न के जवाब में मणिपुर में हस्तक्षेप की इच्छा जताई। इस कड़े विरोध के बजाय भारतीय विदेश मंत्रालय कंबल ओढ़कर सो गया, क्योंकि यह अमेरिकी राजदूत था कोई पाकिस्तानी दूतावास होता तो अगले दिन तक उसे तलब कर लिखित माफ़ी मांग ली गई होती।
लेकिन हद तो तब हो गई जब पीएम मोदी के फ़्रांस दौरे के बीच यूरोपीय संघ की संसद में 80% सांसद मणिपुर में हिंसा की घटना पर प्रस्ताव लेकर विचार-विमर्श कर भारत के लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करने लगे। दो दर्जन से अधिक देशों के सांसद वाला यूरोपीय संघ की संसद के महत्व को भी धता बताते हुए पीएम मोदी ने मणिपुर पर एक शब्द नहीं निकाला था। लेकिन जब लगभग सारे हिंदुस्तान को एक सुर में मणिपुर की ये वीभत्स तस्वीर आईएसआईएस के आतंकवादियों के रूप में नजर आई, तो वाकई में पानी सिर से उपर चला गया था।
इसके फौरन बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी वायरल वीडियो पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है, “मेरी संवेदनाएं उन दोनों महिलाओं के प्रति हैं जिनके साथ बेहद अपमानजनक एवं अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया गया, जैसा कि कल सामने आए दुखद वीडियो में दिखाया गया है। वीडियो सामने आने के तुरंत बाद घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए मणिपुर पुलिस हरकत में आ गई और आज सुबह इस संबंध में पहली गिरफ्तारी की गई है।
फिलहाल मामले की गहन जांच चल रही है और हम इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि सभी अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो, जिसमें मृत्युदंड की संभावना पर भी विचार किया जाए। सब इस बात को जान लें, कि हमारे समाज में ऐसे घिनौने कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है।”
इसका त्वरित जवाब उनके ही ट्वीट में टिप्पणी में मिल जाता है। मिन ने बीरेन सिंह के ट्वीट पर टिप्पणी की है, “18 मई को एफआईआर दर्ज हो गई थी। कल तक आपकी सांप्रदायिक मणिपुर पुलिस क्या कर रही थी? हमें आपकी झूठी संवेदना नहीं चाहिए। आपका अरम्बाई, आपके लिपुन, वर्ल्ड मैतेई ऑर्गनाइजेशन, एसटी डिमांड कमेटी इस सबके लिए जिम्मेदार हैं। आप जानते हैं कि बलात्कारी कौन हैं लेकिन आपने कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि वे मैतेई हैं। वीडियो सामने आने पर ही आप हरकत में आने को मजबूर हुए हैं। पुलिस के समक्ष बलात्कार के 5 और मामले लंबित पड़े हैं, उनके बारे में आपका क्या कहना है? निरर्थक कम-अक्ल इंसान!!”
बहरहाल पीएम मोदी ने देश की सर्वोच्च संस्था संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में संसद के भीतर जिस बात को कहना था, उसे संसद के बाहर कहकर अपनी औपचारिक भूमिका का निर्वाह कर दिया है। याद कीजिये 2014 के बाद से किस प्रकार अचानक से देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी थीं। जगह-जगह बीफ के नाम पर मुस्लिम समुदाय को हाईवे हो या घर, लिंच किया जाने लगा था। एक बार पीएम मोदी ने गुजरात में ऊना में दलितों पर अत्याचार के बाद, भीड़ की हिंसा के खिलाफ बयान दिया था। लेकिन हुआ क्या? क्या भगवाधारी भीड़ की हिंसा कम हुई? इस बयान को लेकर कुछ समय तक देश ने विचार किया, उन्होंने भी जो ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार थे। बाद में उन्हें भी अहसास हुआ कि यह पद की मजबूरी थी, उसकी गरिमा का प्रश्न था। यही वजह है कि पीएम मोदी द्वारा कड़ी आलोचना के बावजूद भीड़ की हिंसा बदस्तूर जारी है, और अब तो कमोबेश इसे रोजमर्रा के हिस्से के तौर पर देश ने ले लिया है।
मणिपुर की इस वीभत्स घटना पर उद्वेलित करोड़ों-करोड़ लोगों के उबाल को एक दिशा देकर शांत करने और ठंडा होने के उपाय से अधिक इसे जो भी समझते हैं, वे फिर अपनी भूल को दोहरा रहे हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री ने तो आज ही मीडिया के साथ बयान में गलती से कह दिया है कि एक वीडियो बाहर आ गया, हमारे यहां तो ऐसी सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं। उपर से इंटरनेट पर प्रतिबन्ध को जायज ठहराते हुए यहां तक कह डाला कि इसी वजह से हमने प्रतिबंध लगा रखा है।
सोचिये हमलावरों द्वारा मॉब लिंचिंग, बलात्कार या मणिपुर की महिलाओं को नग्न किये जाने का वीडियो न बनाया गया होता, तो क्या आप और देश खुद पर शर्मिंदा हो रहा होता? आप या तो समूचे अर्थ में लोकतांत्रिक हो सकते हैं, या फिर निरंकुशता के समर्थक। बीच का कोई रास्ता नहीं होता। जो देश आज एक वीडियो पर शर्म से गड़ा जा रहा है, उसे 3 मई से ही मणिपुर पर सार्थक हस्तक्षेप करने की जरूरत थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, आज हम भावावेश में हैं, हमारा लोकतंत्र भी भावावेश के स्तर पर है। इसे हमें स्वीकार करना होगा, तभी आगे का रास्ता सूझेगा, जिसे देश को मिलकर तलाशना होगा।
लेकिन एक सवाल 20 साल पहले और आज के भाजपा से भी पूछने की जरूरत है। 21 वर्ष पहले 2002 में गुजरात की सांप्रदायिक हिंसा और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के कत्लेआम पर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से बर्खास्त किये जाने पर अड़े हुए थे, तो मोदी के राजनीतिक गुरु और गृह मंत्री लाल कृष्ण अडवाणी ने अपने रणनीतिक कौशल का इस्तेमाल कर पीएम वाजपेयी को निरुपाय कर दिया था। लेकिन अपने गुजरात दौरे में उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को राजधर्म पर चलने की सलाह दी थी। 2023 में समय का चक्र बदला है। आज मणिपुर के मुख्यमंत्री को राजधर्म का पाठ कौन पढ़ाएगा? भारत की 140 करोड़ जनता को इसका जवाब स्वयं से पूछना चाहिए।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)