Saturday, April 27, 2024

किसानों का दिल्ली कूच क्या देश के ज्वलंत सवालों को चुनावी एजेंडा के केंद्र में ले आएगा?

13 फरवरी को किसान संगठनों ने फिर दिल्ली कूच का ऐलान किया है। यह फैसला पंजाब के अमृतसर जिले के जंडियाला गुरु कस्बे में 2 जनवरी को 18 किसान-मजदूर संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के संयुक्त आह्वान पर आयोजित किसानों की महापंचायत में किया गया। इसके समर्थन में 6 जनवरी को पंजाब के बरनाला में मालवा क्षेत्र के किसानों की विराट महापंचायत हुई।

दिल्ली कूच की तैयारी के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में जगह जगह किसानों की सभाएं और रैलियां होनी हैं। बताया जा रहा है कि जो संगठन अभी इसमें शामिल नहीं हैं, उनसे भी बातचीत करने के लिए कमेटी बनाई गयी है। जाहिर है तमाम किसान-संगठनों की व्यापक एकता उनके दिल्ली कूच की सफलता की अनिवार्य पूर्व शर्त है।

किसानों ने नारा दिया गया है-

13 फरवरी को हर गांव से 13 किसान, 13 ट्रॉलियां और 13 महीने का राशन लेकर दिल्ली के लिए कूच करेंगे।

दिल्ली कूच के दौरान किसान इन मांगों को प्रमुखता से उठाएंगे-

  • सभी फसलों की खरीद के लिए एमएसपी गारंटी का कानून बनाया जाए,
  • किसानों व खेत मजदूरों की संपूर्ण कर्ज मुक्ति हो,
  • 58 वर्ष से ऊपर के किसान और खेत मजदूरों के लिए 10 हजार रुपये प्रति माह की पेंशन योजना लागू की जाए, बिजली बिल 2020 पूरी तरह से रद्द किया जाए।
  • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल बीमा योजना लागू की जाए, 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में 2015 में किए गए संशोधनों को निरस्त कर प्रथम स्वरूप में लागू किया जाए, भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन के साथ किए गए समझौतों को रद्द किया जाए,
  • लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों का सजा दी जाए और दिल्ली कूच के दौरान पुलिस केस रद्द किए जाएं, किसान मोर्चों के शहीद परिवारों को वादे के मुताबिक मुआवजा दिया जाए और अन्य मांगें पूरी की जाएं।

जंडियाला गुरु अमृतसर और बरनाला की जिन किसान महापंचायतों से दिल्ली कूच का ऐलान हुआ, वहां उमड़ा किसानों का जनसमुद्र और उनका उत्साह गवाह है कि किसान 2020-21 की तरह मोदी सरकार से आर-पार के लिए एक बार फिर तैयार हो रहे हैं।

दरअसल, मोदी राज में कृषि संकट लगातार गहराता गया है, उनके ऐतिहासिक आंदोलन के स्थगन के समय MSP और अन्य सवालों पर किये गए समझौते से मोदी सरकार की वायदाखिलाफी का दंश किसानों को लगातार सालता रहा है। किसानों की आय दोगुना करने का मोदी का वायदा किसानों के साथ भद्दा मजाक साबित हो चुका है।

आंदोलन के समय लखीमपुर खीरी में किये गए किसान जनसंहार के आरोपी अजय मिश्रा टेनी को मोदी ने अब तक अपने मन्त्रिमण्डल में बनाये रखा है, सम्भव है उसे फिर से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी मिल जाय।

जाहिर है किसानों के लिए यह सब बेहद पीड़ादायी और अपमानजनक है। उनके अंदर छले जाने का अहसास और गहरा आक्रोश है।

सबसे बड़े बात यह कि किसानों की जो मूल मांग थी MSP की वह तो जहाँ की तहाँ रह गई।

सच तो यह है कि 2020 में कोविड की आपदा में अवसर तलाशते हुए मोदी सरकार ने अचानक 3 कॉरपोरेट-परस्त कानून लाकर किसानों पर एक नई लड़ाई थोप दी थी, उसके पहले देश भर के किसान बार-बार जंतर-मंतर पर धावा बोलकर MSP और कर्जमुक्ति के सवाल पर लड़ाई की ही  तैयारी कर रहे थे।

दरअसल, MSP के सवाल पर मोदी और भाजपा का रुख शुरू से ही किसानों के साथ धोखाधड़ी वाला रहा है। 2013-14 में चुनाव अभियान के दौरान  मोदी ने स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति के अनुरूप C2+50% MSP देने का वायदा करके किसानों का वोट बड़े पैमाने पर झटक लिया। लेकिन सरकार बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा एफिडेविट देकर कह दिया कि यह सम्भव नहीं है क्योंकि इस तरह MSP बढ़ाने से मार्केट distort होगा !

अमित शाह ने साफ साफ कह दिया कि स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति के अनुरूप जमीन की कीमत जोड़ते हुए MSP देना असम्भव है।

मोदी सरकार के इस तरह अपने वायदे से साफ मुकर जाने के बाद देश भर के किसान-संगठन लामबन्द होने लगे। तब 28 फरवरी 2016 को मोदी ने बजट की पूर्वसन्ध्या पर किसानों की आय 2022 अर्थात आज़ादी के 75 साल होने तक- दोगुना करने का नया जुमला उछाल दिया।

दरअसल मोदी ने यह नायाब राजनीतिक कार्यशैली विकसित की है कि पहले वे जनता को लुभाने के लिए खूब आकर्षक वायदा करके वोट बटोर लेते हैं। फिर उसे भूल जाते हैं और एक नया जुमला उछाल कर गोलपोस्ट को आगे शिफ्ट कर देते हैं।

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए मोदी सरकार द्वारा 13 अप्रैल, 2016 को गठित अशोक दलवई कमेटी ने प्रति माह प्रति किसान- परिवार आय को 2015-16 के 8058 रुपये- से बढ़ाकर 2022-23 तक 22610 रुपये – ( current prices पर ) तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा।

कमेटी ने कहा कि इसके लिए 10.4% वार्षिक वृद्धि दर की जरूरत होगी। बहरहाल कमेटी ने यह नहीं बताया कि कृषि में यह अभूतपूर्व विकास दर हासिल करने के लिए सरकार क्या उपाय करने जा रही है।

2021 में हुए खेतिहर परिवारों के Situation Assessment सर्वे के अनुसार 2018-19 तक किसानों की प्रति परिवार मासिक आय महज 10218 रुपये- पहुंची थी, जाहिर है यह 2022 के 22610 रुपये- के लक्ष्य से कोसों दूर थी और इस रफ्तार से उसका लक्ष्य तक पहुंचना असम्भव था।

बहरहाल 2022 बीते 2 साल हो चुके हैं। आय दोगुनी करने का वायदा न पूरा होना था, न हुआ।

सच्चाई यह है कि कृषि क्षेत्र में घटते सरकारी निवेश, बढ़ती लागत कीमतों और फसलों का उचित मूल्य न मिल पाने के कारण मोदी शासन में कृषि संकट गहराता गया है और किसानों की हालत बद से बदतर होती गयी है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2022 के बीच मोदी राज में कृषि क्षेत्र से जुड़े 100474 खेतिहरों ने आत्महत्या की है।

सरकार ने एक समय दावा किया  कि 2013 के 52% की तुलना में 2019 में 50.2% किसानों पर ही कर्ज था, जबकि असलियत यह थी कि कर्ज में डूबे किसानों की संख्या 903 लाख से बढ़कर 930 लाख हो गयी थी और प्रति किसान कर्ज का औसत बोझ भी 1.6 गुना बढ़ गया था।

किसानों को संकट और घाटे से उबारने के नाम पर साल भर में दी जा रही 6 रुपये की PM किसान सम्मान निधि दरअसल सम्मान नहीं किसानों का अपमान और उनके साथ मजाक है। सबसे बड़ी बात यह कि यह 6 हजार राशि भी केवल जमीन के मालिक किसानों को ही मिलती है, कृषि श्रम में लगी बाकी खेतिहर आबादी इससे वंचित है।

कृषि मजदूरों की वास्तविक मजदूरी में वृद्धि नगण्य है। मनरेगा का बजट कम किया जा रहा है और तरह-तरह के तिकड़मों से-जिनमें सबसे ताजा आधार-आधारित नई भुगतान व्यवस्था है- बड़े पैमाने पर मजदूरों को उसके लाभ से वंचित किया जा रहा है।

किसानों व कृषि-निर्भर ग्रामीण आबादी की तबाही और कृषि-क्षेत्र के गहराते संकट के हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास और रोजगार सृजन के लिए नतीजे विध्वंसकारी हैं। ग्रामीण क्षेत्र में मांग के बेहद निम्न स्तर के कारण पूरी अर्थव्यवस्था अवरुद्ध है।

हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन और बड़े पैमाने पर रोजगार-सृजन की शर्त है कि कृषि-संकट के समाधान के माध्यम से किसानों और ग्रामीण गरीबों के जीवन में खुशहाली आये।

आज जब मन्दिर राजनीति द्वारा जनता के जीवन के सवालों को राजनीतिक एजेंडा से बाहर कर देने की साजिश हो रही है, उम्मीद है 13 फरवरी को किसानों का दिल्ली कूच ग्रामीण भारत के ज्वलन्त सवालों को चुनावी एजेंडा के केंद्र में ले आएगा।

क्या INDIA गठबंधन भारत के किसानों और  ग्रामीण गरीबों की ज्वलन्त माँगों को अपने साझा कार्यक्रम और घोषणापत्र में शामिल कर तथा उन्हें पूरा करने का ठोस आश्वासन देकर उन्हें अपने पीछे लामबन्द कर पायेगा?

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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