अपने गांवों को नारायणपुर जिले में शामिल करने के लिए 3000 ग्रामीणों की पदयात्रा

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बस्तर। हांथों में तिरंगा, गांधी जी की फ़ोटो, नंगे पैर हाथों में कुछ ज़रूरतों का सामान लिए छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर जिले के अंतागढ़ ब्लाक के 13 पंचायतों के 58 गांव के ग्रामीण निकल पड़े हैं रायपुर के लिए, इन्हें करीब 250 किलोमीटर का सफर तय करना होगा अपनी मांगों को महामहिम तक पहुंचाने में।

दरअसल छत्तीसगढ़ के अन्तागढ़ क्षेत्र अंतर्गत कोलर इलाके के 58 गांव के ग्रामीण राज्यपाल से मिलने पदयात्रा कर रहे हैं। इनकी मांग है कि 58 गांव को नारायणपुर जिले में शामिल किया जाए। इन्हीं मांगों को लेकर 45 दिन से ग्रामीण धरने पर बैठे हुए थे। ग्रामीणों की मांग अनसुनी किए जाने के बाद 58 गांव के 3 हजार ग्रामीण पैदल ही राजधानी रायपुर के लिए निकल पड़े हैं। खबर लिखे जाने तक ग्रामीणों की पैदल यात्रा कोलर से 60 किमी दूरी तय कर चुकी थी।

नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग को लेकर कांकेर जिले के 58 गांव के ग्रामीण रावघाट मंदिर के पास 45 दिन से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हुए थे।

ग्रामीण सोमनाथ उसेंडी ने बताया कि कांकेर जिले के 58 गांव के लोग वर्ष 2007 में नारायणपुर जिले के गठन के बाद से जिले में शामिल करने के लिए विभिन्न प्रकार से अपनी मांग शासन तक पहुंचाने में लगे हुए हैं। इनमें कोलर क्षेत्र से भैसगांव, कोलर, तालाबेड़ा, बैंहासालेभाट, फूलपाड़ एंव बण्डापाल क्षेत्र से कोसरोंडा, देवगांव, गवाडी, बण्डापाल, मातला- ब, अर्रा, मुल्ले व करमरी ग्राम पंचायत शामिल है। इन पंचायतों में निवासरत ग्रामीणों को शासकीय कार्य के लिए 150 किमी का सफर तय कर कांकेर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है, जबकि इन गांवों से नारायणपुर जिला मुख्यालय की दूरी मात्र 20 किमी है।

यही नहीं कांकेर जिले के 13 ग्राम पंचायत में निवासरत ग्रामीणों का रहन-सहन रिश्तेदारी, बाजार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं नारायणपुर जिला मुख्यालय से पूरी होती हैं। वहीं नारायणपुर जिला चिकित्सालय सहित रामकृष्ण आरोग्य धाम से इन ग्राम पचांयतों के ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधाए उपलब्ध होती हैं। इसके अलावा छात्र नारायणपुर के स्वामी आत्मानंद महाविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस तरह से इन 13 ग्राम पंचायतों में लोगों को नारायणपुर जिले से जन सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं।

पिछले दो साल में ऐसे कई मौके आए जब जल, जंगल और जमीन के लिए आदिवासियों को आंदोलन का रुख करना पड़ा। कभी पहाड़ियों पर माइनिंग, कभी देवी-देवताओं के स्थल, कभी कैंप के विरोध में बस्तर के आदिवासियों ने मुखर होकर प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार कर लिया।

(बस्तर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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