पटना। सीपीआई (एमएल) समेत उसके जनसंगठनों ने आज गोरखपुर के बहुचर्चित शिशु चिकित्सक डॉ. कफील खान की अविलंब रिहाई की मांग को लेकर देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया। जिसमें बिहार से लेकर पंजाब और यूपी से लेकर राजस्थान और राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक लोगों ने हिस्सा लिया।
बिहार तकरीबन सभी जिलों में प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस मौके पर पटना में राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि सरकार की नीतियों-फैसलों का विरोध करने के कारण डॉ. कफील पर रासुका लगाकर जेल में बंद कर देना योगी सरकार का फासीवादी कदम है। अभी संकट की घड़ी में वे बाहर होते तो हम सबके काम आते।
उन्होंने कहा कि 2017 वाली घटना में सरकार ने उलटे डॉ. कफील को ही बच्चों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार ठहरा कर जेल भेज दिया था। खुद सरकार द्वारा गठित जांच दल ने 2 साल बाद सितम्बर 2019 में उन्हें दोषमुक्त घोषित कर दिया गया। लेकिन जांच दल ने उन्हें योगी जी से माफी मांगने को भी कहा। डॉ. कफील ने माफी नहीं मांगी और वे फिर योगी जी के निशाने पर आ गए।
उन्होंने बताया कि 12 दिसम्बर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के खिलाफ आयोजित सभा में उत्तेजक भाषण देने के झूठे आरोप में 29 जनवरी 2020 को पुनः उन्हें मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। 10 फरवरी 2020 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई। लेकिन जेल से रिहा करने में जान बूझ कर 3 दिन देरी की गई। 13 फरवरी को कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश फिर से जारी किया, लेकिन रिहाई के बजाय 14 फरवरी को उन पर 3 महीने के लिए रासुका लगा कर फिर डिटेन कर दिया गया। डिटेंशन की अवधि खत्म होने से पहले फिर 12 मई 2020 को रासुका की अवधि 3 महीने के लिए बढ़ा दी गई है।
इस तरह से यूपी की योगी सरकार ने डाॅ. कफील खान को तीसरी बार जेल में डाला है। 2017 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में आपराधिक सरकारी लापरवाही के कारण ऑक्सीजन के अभाव में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी, जिसके लिए डाॅ. कफील ने सरकार की आलोचना की थी। यही वजह है कि उनके पीछे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हाथ धोकर पड़ी हुई है।
पटना के नेताओं ने कहा कि विगत वर्ष की बाढ़ और पटना के जलजमाव के समय भी डाॅ. कफील ने कैंप लगाकर पटना सहित कई जगहों पर लोगों का इलाज किया था। ऐसे समाजसेवी चिकित्सक को राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर यूपी की सरकार जेल में सड़ाकर मार देना चाहती है। ऐसा हम किसी भी सूरत में नहीं होने देंगे।
मुजफ्फरपुर से डाॅ. कफील खान का विशेष संबंध रहा है। आज वहां इन संगठनों के नेतृत्व में जगह-जगह प्रदर्शन किया गया। गायघाट में आयोजित कार्यक्रम में माले के वरिष्ठ नेता जितेन्द्र यादव, विवेक कुमार, विकास कुमार, अशोक कुमार शामिल हुए। शहर में जिला सचिव कृष्णमोहन के नेतृत्व में विरोध दर्ज किया गया। मुसहरी ब्लाॅक में आइसा व इनौस ने प्रदर्शन किया। ऐपवा की कार्यकर्ताओं ने भी इसमें हिस्सा लिया। इस मौके पर कृष्णमोहन ने कहा कि डॉ. कफील पड़ोस के गोरखपुर के होने के कारण बिहार से सजीव रूप से जुड़े रहे हैं। जब चमकी बुखार से मुजफ्फरपुर में हाहाकार मचा हुआ था, उन्होंने यहां कैम्प लगाकर बच्चों का इलाज किया और उनका मुजफ्फरपुर से गहरा संबंध स्थापित हो गया है।
राजधानी पटना में राज्य कार्यालय में आयोजित प्रतिवाद में पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, केंद्रीय कमेटी के सदस्य बृजबिहारी पांडेय, ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, प्रदीप झा, राज्य कमेटी के सदस्य प्रकाश कुमार, विभा गुप्ता आदि नेताओं ने पोस्टर लेकर डाॅ. कफील की अविलंब रिहाई की मांग की।
आरा में माले विधायक सुदामा प्रसाद, राजू यादव, जवाहर लाल सिंह, गड़हनी में इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, जगदीशपुर में इनौस के राज्य अध्यक्ष अजीत कुशवाहा; मनेर में आइसा के राष्ट्रीय महासचिव संदीप सौरभ, पूर्णिया में आइसा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोख्तार, आरा में राज्य सचिव सबीर कुमार, दरभंगा में संदीप चैधरी व प्रिंस कर्ण, कटिहार में काजिम इरफानी के नेतृत्व में आज का प्रतिवाद संगठित किया गया। मुजफ्फरपुर में इंसाफ मंच के सूरज कुमार सिंह, आफताब आलम, फहद जमां आदि के नेतृत्व में इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने डाॅ. कफील की रिहाई की मांग उठाई। दरभंगा में इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष नेयाज अहमद ने प्रतिवाद किया।
सिवान में माले विधायक सत्यदेव राम व पूर्व विधायक अमरनाथ यादव, बारसोई में महबूब आलम, धनरूआ में खेग्रामस के राज्य सचिव गोपाल रविदास, पालीगंज में अनवर हुसैन, अरवल में महानंद, जहानाबाद में रामबलि सिंह यादव आदि प्रमुख नेताओं ने प्रतिवाद दर्ज किया।
राज्य कार्यालय के अलावा पटना में पार्टी के वरिष्ठ नेता व पोलित ब्यूरो के सदस्य राजाराम सिंह ने भी अपने घर से विरोध दर्ज किया। राजधानी पटना में राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत दीघा में माले नेताओं ने प्रतिवाद दर्ज किया।
इसी तरह से यूपी में भी डॉ. कफील की रिहाई को लिए जगह-जगह प्रदर्शन हुआ। जिसमें वाराणसी, लखनऊ, देवरिया, इलाहाबाद और पीलीभीत तथा लखीमपुर की इकाइयों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
इसके साथ ही पंजाब में भी डॉ. कफील की रिहाई की मांग के साथ लोग सड़कों पर उतरे। ये सभी लोग इस बात पर अचरज जाहिर कर रहे थे कि एक समय जो कोरोना जैसी महामारी पूरे देश को लील जाना चाहती है और उसमें सबसे ज्यादा जरूरत चिकित्सकों की है तब डॉ. कफील जैसे लोगों को जेल के भीतर डाला गया है।
नेताओं ने कहा कि यह पूरा प्रकरण बीजेपी सरकार के क्रूर चेहरे का पर्दाफाश कर देता है। साथ ही इस बात को लेकर भी गहरी चिंता जाहिर की गयी कि सरकार कोर्ट के निर्देशों का खुला उल्लंघन कर रही है जिसमें उसने कहा है कि जेलों में संक्रमण की आशंका को देखते हुए ज्यादातर कैदियों को जमानत या फिर पैरोल पर रिहा कर देने की जरूरत है।
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