पुण्यतिथि पर विशेष: भगत सिंह के दिल में बसते थे करतार सिंह सराभा

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‘फांसी पर ही तो चढ़ा दोगे और क्या? हम इससे नहीं डरते!’

उक्त बयान भारत मां के उस सपूत के हैं, जो मात्र 19 वर्ष 5 महीने और 22 दिन की अल्पायु में अपने अन्य छः साथियों क्रमशः सुरैण सिंह, बख्शीश सिंह, हनाम सिंह, जगत सिंह, विष्णु गणेश पिंगले और सुरैण के साथ लाहौर जेल में अपनी मातृभूमि को विदेशी आक्रांताओं की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अशिष्ट, असभ्य ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा फाँसी पर झूलने से पूर्व अपने मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक अंग्रेज जज द्वारा यह पूछे जाने पर कि ‘वह अपना बयान सोच-समझकर दें, वरना उनके लिए परिणाम बहुत भयावह होगा’ के जवाब में दिया था।

मातृभूमि को स्वतंत्र करने को बेकरार यह तेज से भरा युवा फांसी होने से पूर्व मिलने आए अपने दादा जी से अपने लंम्बी उम्र पाकर मरने वाले परिचितों का हवाला देकर कहा था कि ‘दादा जी ! ये लम्बी उम्र पाकर मरे लोग कौन सी बड़ी उपलब्धि हासिल कर के मरे हैं? ‘

सन् 1907 में जन्मे शहीद-ए-आजम भगतसिंह पर शहीद करतार सिंह सराभा और उनके अन्य साथियों को ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों द्वारा फाँसी पर चढ़ाए जाने का बहुत गंभीर असर पड़ा था,वे अपने समय की सुप्रसिद्ध तत्कालीन पत्रिका चाँद के फाँसी के विशेष अंक में करतार सिंह सराभा पर बहुत लम्बा लेख लिखे थे, शहीद-ए-आजम अपनी जेब में अपने दिल के पास करतार सिंह सराभा का एक फोटो हमेशा रखा करते थे,तथा उन्हें अपना साथी,भाई और गुरू मानते थे।

शहीद करतार सिंह सराभा पर लिखी गई एक गजल को शहीद-ए-आजम एकांत  में गुनगुनाया करते थे,वह गज़ल निम्न लिखित है-

 ‘ यहीं  पाओगे  महशर  मैं  जबाँ  मेरा ,

  मैं बंदा  हिन्द वालों का  हूँ,है  हिन्दुस्तां मेरा,

  मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,

  यही मजहब  यही  फिरका  यही खानदां मेरा,

  मैं  उजड़े  हुए भारत का  यक मामूली जर्रा हूँ,

  यही  बस  इक  पता  यही  नामों-निशां   मेरा,

 मैं उठते-बैठते तेरे कदम चूम लूँ चूम ऐ भारत कहाँ किस्मत मैं अय भारत ! ये हर जाए ये जां जाए,

  तो समझूंगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा ‘

अमेरिकी महाद्वीप के दो देशों क्रमशः संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से अपनी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्र हुए इन देशों में रहने वाले कुछ दिलेर पंजाबी युवकों ने,जिनमें करतार सिंह सराभा और उनके साथ फाँसी पर चढ़े अन्य साथियों ने अपनी मातृभूमि भारत को भी ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए गदर पार्टी की स्थापना किए थे। इस पार्टी के घोषणापत्र में भारत के समस्त देश वासियों से फॉसिस्ट और बर्बर अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए सशर्त संघर्ष का आह्वान किया गया था, इसके लिए ये इस देश महान सपूत कनाडा और अमेरिका में अपनी खुशहाल और सुखमय भरी जिंदगी को त्याग कर पानी की बड़ी-बड़ी समुद्री जहाजों में चढ़कर अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने आ गये थे,अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई थी, वे इन जहाजों को किसी भी भारतीय बंदरगाह पर ठहरने ही नहीं दिए,जैसे-तैसे ये वीर रणबांकुरे पानी की जहाजों से उतरकर भारत में घुसे,परन्तु अंग्रेजों ने इनकी धर-पकड़ शुरू कर दी,लगभग सभी पकड़े गये,इन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और उक्तवर्णित लोगों को 16 नवम्बर 1915 को लाहौर जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया।

(निर्मल कुमार शर्मा का लेख।)

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