झारखंड: लव-लैंड जिहाद के बाद अब आदिवासी आबादी में तथाकथित कमी के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में जुटी भाजपा

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रांची। भाजपा के केंद्रीय नेता से लेकर मंत्री व सांसद-विधायक रोज व रोज राग आलाप रहे हैं कि राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की आबादी गिर रही है और उनकी जनसंख्या 16 प्रतिशत कम हो गई है। ये घुसपैठिए राज्य की आदिवासी लड़कियों से शादी करके लैंड जिहाद के माध्यम से आदिवासियों की जमीन को हड़प रहे हैं।

झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो यह कह कर कि “राज्य में संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की आबादी गिर रही है और उनकी जनसंख्या 16% कम हो गई है” संसद में सनसनी फैला दी थी।

उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार पर आरोप लगाते हुए था कि “झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार के संरक्षण में ये घुसपैठिए आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए।”

निशिकांत दुबे के इस आरोप को राष्ट्रीय मीडिया ने ऐसे हाथों-हाथ लिया, मानो उन्हें अपने टीआरपी का एक बड़ा खजाना मिल गया हो। उसके बाद उनके द्वारा बड़े पैमाने पर आदिवासियों पर मुस्लिमों के अत्याचार और खास तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के अत्याचार की सनसनीखेज कहानियां बनाकर समाचार परोसा जाने लगा।

इसके बाद दुबे के इस आरोप की बखिया तब उधड़ी, जब संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर दायर एक याचिका पर रांची हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

इस नोटिस के जवाब में 12 सितम्बर, 2024 को दिए हलफ़नामे में भाजपा गठबंधन की केंद्र सरकार ने माना कि हाल के ज़मीन विवाद के मामलों में बंगलादेशी घुसपैठियों का कोई जुड़ाव स्थापित नहीं हुआ है। लेकिन आदिवासियों की जनसंख्या कम हुई है।

वहीं आरएसएस-भाजपा के आईटी सेल ने जमीन संबंधी स्थानीय विवादों को कथित बंगलादेशी घुसपैठियों के साथ जोड़कर पेश किया और इसमें रोहिंग्या मुस्लिमों का तड़का भी लगाया गया।

भाजपाई प्रचार माध्यमों द्वारा गढ़ी गई कहानियों को ‘विश्वसनीय’ बनाकर पेश किया गया, ताकि उन्हें आम जनता के गले उतारकर आगामी विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल खेला जा सके।

भाजपा के मुस्लिम विरोधी प्रचार अभियान को और गाढ़ा करने के लिए अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य व भाजपा नेता आशा लकड़ा ने 28 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में संथाल परगना क्षेत्र की उन 10 आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों (पंचायत स्तरीय) की एक सूची जारी की, जिनके पति मुस्लिम हैं।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ये सभी रोहिंग्या मुसलमान व बंगलादेशी घुसपैठिये हैं, जिन्होंने आदिवासी महिलाओं को फंसाया हैं। इस प्रकार, इस सूची को भाजपा के कथित दावों के ‘प्रमाण’ के रूप में प्रचारित किया गया।

जबकि इसकी एक फैक्ट फाइंडिंग जांच में पाया गया कि आशा लकड़ा ने जिन महिलाओं की सूची जारी की है उनमें से 6 महिलाओं ने स्थानीय मुस्लिमों से शादी की है और चार के पति तो आदिवासी ही हैं।

इससे भाजपा का यह दावा भी ध्वस्त हो जाता है कि आदिवासियों की जमीन हथियाने के लिए बंगलादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादियां कर रहे हैं, जिसके कारण आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट आ रही है।

इसी बीच भाजपा कार्यकर्ता जमशेदपुर निवासी दानियल दानिश ने झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दावा किया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों से शादी कर ज़मीन लूटी जा रही है व घुसपैठ हो रही है।

इसी याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। जिसके आलोक में केन्द्र सरकार ने एक हलफ़नामा दाखिल किया जिसमें भाजपा गठबंधन की केंद्र सरकार ने माना कि हाल के ज़मीन विवाद के मामलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का कोई जुड़ाव स्थापित नहीं हुआ है।

बावजूद मीडिया में अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर भाजपा का दुष्प्रचार अभियान जारी है, जो बताता है कि नफरत की राजनीति करके और समाज को बांटकर चुनाव जीतने के लिए भाजपा कितनी लालायित है और वह इसके लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

दरअसल भाजपा को विगत 2024 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित पांच सीटों पर हुई बुरी तरह हार ने बौखला दिया है और वह अगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटों को इस प्रकार के धार्मिक ध्रुवीकरण के माध्यम से प्राप्त करना चाहती है।

भाजपा के नेता अच्छी तरह जानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा अदालत में दिए गए हलफ़नामा का कोई असर आम आदिवासी ही नहीं आम आदमी तक नहीं जा सकता है। यह खबर आम आदमी तक इसलिए नहीं जा सकता है, क्योंकि इस खबर को स्थानीय मीडिया कोई महत्व नहीं देगा।

वहीं भाजपा के आला नेता भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम का दुष्प्रचार अभियान का हिस्सा हैं। यही वजह है इतनी किरकिरी होने के बाद भी झारखंड के भाजपा नेता व सांसद निशिकांत दुबे बांग्लादेशी घुसपैठियों के दुष्प्रचार का तीर चलाए जा रहे हैं।

भाजपा के इस दुष्प्रचार पर झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान ने एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की है, जो भाजपा के इस दुष्प्रचार को पूरी तरह बेनकाब कर देता है।

जनगणना के आंकड़ों की छानबीन करते हुए इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी 24 लाख, मुस्लिमों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख बढ़ी है। अतः भाजपा का यह दावा कि हिंदुओं और आदिवासियों की आबादी घट रही है, पूरी तरह झूठा प्रचार है।

अपने दावे को विश्वसनीय बनाने के लिए भाजपा का प्रचार है कि 1951 में संथाल परगना क्षेत्र में हिन्दुओं की आबादी 90.37% थी, जो 2011 में घटकर 67.95% रह गई है।

रिपोर्ट में इस दावे की भी पोल खोली गई है और बताया गया है कि 1951 की जनगणना में केवल 6 धर्म कोड (हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन व बौद्ध) में जनगणना की गयी थी और आदिवासी समुदाय को हिंदू ही मान लिया गया था। लेकिन 2011 में अनेक आदिवासियों ने अपने को ‘अन्य या सरना’ में लिखित रूप में दर्ज कराया था।

इस प्रकार, 1951 में इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 23.22 लाख में आदिवासियों और हिंदुओं की संयुक्त आबादी 20.99 लाख थी, तो 2011 में यहां की कुल जनसंख्या 69.68 लाख में हिंदुओं की जनसंख्या (आदिवासी हिंदू सहित) बढ़कर, भाजपा के दावे के अनुसार ही, 47.35 लाख हो गई है और इसमें गैर-हिन्दू आदिवासी शामिल नहीं है।

जनसंख्या के इन आंकड़ों और इसके विश्लेषण से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में हिंदुओं की आबादी घटी नहीं है।

तो क्या आदिवासियों की आबादी घटी है?

जी नहीं, उनकी भी आबादी 1951 के 10.87 लाख से बढ़कर 2011 में 19.59 लाख हो गई है। मतलब आबादी बढ़ी है, लेकिन कुल जनसंख्या के अनुपात में उनका प्रतिशत 46.8% से गिरकर 28.11% रह गया है।

आदिवासी आबादी की वृद्धि दर में आई इस गिरावट की भी फैक्ट फाइंडिंग टीम ने छानबीन की है जिसमें अपर्याप्त पोषण, स्वास्थ्य व्यवस्था में कमी, आर्थिक तंगी, जमीन से उनका अलगाव और रोजगार की खोज और बेहतर जीवन की आशा में पलायन को इसका कारण सामने आया है।

मतलब साफ है कि आदिवासियों की आबादी घटने के कारणों में केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार है।

दूसरी तरफ यह भी सच है कि इसी अवधि में मुस्लिमों की आबादी में बढ़ोत्तरी हुई है, जो कुल आबादी के अनुपात में 9.44% से बढ़कर 22.73% हो गयी है। लेकिन इसका कारण बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ नहीं है, बल्कि झारखंड के अन्य जिलों, बंगाल व बिहार से आए मुस्लिम हैं, जो यहां आकर बस गए हैं।

केंद्र सरकार ने भी हाई कोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया है। इनमें से कुछ मुस्लिमों का स्थानीय आदिवासियों से जमीन संबंधी विवाद चल रहा है, जिन्होंने आदिवासियों से जमीन अनौपचारिक दान-पत्र की व्यवस्था के जरिए खरीद लिया है। इन्हीं विवादों को भाजपा द्वारा आदिवासी बनाम बांग्लादेशी घुसपैठियों का रंग देकर प्रचारित किया जा रहा है।

स्पष्ट है कि संथाल परगना टेनेंसी एक्ट का कड़ाई से पालन नहीं किया गया है, जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी के हाथ में जाने से रोकता है। इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है।

बताते चलें कि संथाल परगना के जिन गांवों में हिंसा की घटनाएं घटी हैं और जिन्हें भाजपा ने जोर-शोर से उछाला है, वहां का दौरा करने पर फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि इन गांवों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है और जमीन संबंधी जो भी विवाद हुए हैं, वे स्थानीय नागरिकों के बीच ही हुए हैं।

भाजपा ने किसी भी मुस्लिम के साथ हुए विवाद को बांग्लादेशी घुसपैठिए के रूप में उछालने का घृणित काम किया है।

फैक्ट फाइंडिंग टीम को इन गांवों के किसी भी व्यक्ति ने एक भी बांग्लादेशी घुसपैठिये के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी। सबने बताया कि उन्हें घुसपैठ की बात सोशल मीडिया से ही मालूम हुई है। यहां तक कि तारानगर-इलामी में रहने वाले भाजपा के मंडल अध्यक्ष ने भी इस टीम को बताया कि उनके क्षेत्र में रहने वाले सभी मुस्लिम वहीं के निवासी हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि फैक्ट फाइंडिंग टीम को संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं द्वारा हिंदू या मुस्लिम या गैर–आदिवासी पुरुष से शादी करने के कई उदाहरण मिले हैं, लेकिन इन सभी महिलाओं ने अपनी सहमति और आपसी पसंद से शादी की है।

टीम को ऐसा एक भी मामला नहीं मिला, जिसमें किसी आदिवासी महिला की बांग्लादेशी घुसपैठिये से शादी हुई हो और न ही स्थानीय ग्रामीणों को ऐसे किसी मामले की जानकारी है।

स्थानीय प्रशासन ने भी उच्च न्यायालय में कहा है कि क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं हैं। चुनाव आयोग द्वारा बनाई टीम (जिसमें भाजपा के सदस्य भी थे) ने भी अपनी जांच में कुछ नहीं पाया है। इसके बावजूद भाजपा लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद आदि के नाम पर साम्प्रदायिकता व झूठ फैला रही है।

यह इसका बहुत ही खुला एजेंडा है और वह एजेंडा है, झारखंड में हिंदुओं, मुस्लिमों और आदिवासियों के बीच सांप्रदायिक विभाजन करके, उनमें दरार पैदा करके चुनावी वैतरणी पार करना। अपने इसी दुष्प्रचार को विश्वसनीय बनाने के लिए अब भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को इस काम में लगा दिया है।

लेकिन जनता सब समझ रही है और लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ भाजपा की हार का सिलसिला झारखंड में रुकने वाला नहीं है।

संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ की जांच और इसपर रोक की मांग वाली जनहित याचिका पर 20 सितंबर को भी झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई। कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी और केंद्र एवं राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

सुनवाई के दौरान वर्चुअल माध्यम से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने झारखंड सरकार की ओर से दलील पेश करते हुए कहा कि झारखंड में अगले कुछ महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें इस मुद्दे का इस्तेमाल पॉलिटिकल एजेंडा के रूप में किया जा रहा है।

कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले में जो शपथ पत्र दाखिल किया है, उसमें झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रवेश के संबंध में कोई डाटा नहीं है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक मामला पेंडिंग है। हाईकोर्ट ने इसपर कहा कि अगर इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बन जाती है तो क्या दिक्कत है?

केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र ने अंतिम जनगणना के आधार पर जो डाटा पेश किया है, उससे साफ है कि संथाल परगना में आदिवासियों की संख्या में कमी आई है।

इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल कर बताया गया था कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के मामलों की जांच के लिए केंद्र सरकार और झारखंड सरकार की ओर से संयुक्त रूप से फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित की जाएगी।

इस मामले में 30 सितंबर तक केंद्र सरकार के गृह सचिव एवं झारखंड के मुख्य सचिव की बैठक प्रस्तावित है। प्रस्तावित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का उद्देश्य झारखंड के देवघर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़, दुमका और जामताड़ा में अवैध घुसपैठियों की पहचान और ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस भेजने की व्यवस्था के बारे में सरकार को सुझाव देना है।

मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर क़ानूनी कार्रवाई की की मांग

झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज्य के मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक को पत्र लिख कर मांग की है कि हाल के दिनों में भाजपा के नेताओं के सांप्रदायिक भाषण के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाई हो।

महासभा ने कहा है कि पिछले कई दिनों से प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, असम के मुख्यमंत्री समेत अनेक केंद्रीय मंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय नेता एवं राज्य स्तरीय नेता लगातार झारखंड में अपने चुनावी सभाओं में नफरती भाषण दे रहे हैं।

लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर भारतीय मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं और राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। इससे झारखंड में विभिन्न समुदायों में नफ़रत और साम्प्रदायिकता फैलने की पूरी संभावना है।

पत्र में कहा गया है कि इन नेताओं द्वारा चुनावी भाषणों में विभिन्न झूठी बातों के आधार पर मुसलमानों के विरुद्ध अन्य समुदायों में धार्मिक विद्वेष पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह झारखंडी समाज के तानाबाना और सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए हानिकारक है।

गौर करें, संसद में केंद्र सरकार ने जवाब दिया है कि कानून में न लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे शब्द हैं और न ही ऐसे कोई मामले हैं। यह भी गौर करें कि उच्च न्यायलय में चल रहे बांग्लादेशी घुसपैठ से सम्बंधित मामले में केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि संथाल परगना के हाल के ज़मीन विवाद के मामलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का जुड़ाव स्थापित नहीं हुआ है।

इस सम्बन्ध में झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान ने अपने विस्तृत तथ्यान्वेषण में भी यही पाया था।

महासभा ने मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक को याद दिलाया है कि सर्वोच्च न्यायलय ने अपने कई आदेशों में नफरती भाषणों (हेट स्पीच) के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई करने का स्पष्ट दिशानिर्देश दिया है।

इस आधार पर महासभा ने मांग की है कि राज्य में जो भी राजनैतिक नेता धार्मिक व सांप्रदायिक नफ़रत फ़ैलाने के लिए नफरती भाषण दें, उनके विरुद्ध तुरंत क़ानूनी कार्यवाई हो।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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