बागेश्वर उप चुनाव: मुद्दे धराशाही, परिवारवाद की जीत

बागेश्वर। भारतीय जनता पार्टी और उसके तमाम छोटे-बड़े नेता बेशक परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते रहे हों, लेकिन भाजपा का अपना परिवारवाद एक बार फिर से उसे उत्तराखंड के बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव में जीत दिलाने में सफल रहा है। इस बार भाजपा की जीत का अंतर बेशक 2022 की तुलना में बहुत कम रहा हो, लेकिन यह भी सच है कि उसका वोट पहले के मुकाबले इस बार बढ़ा है और यह बढ़त सहानुभूति के साथ ही पार्टी द्वारा चुनाव में हाथ खोलकर किये जाने वाले खर्च के कारण मिली है।

कांग्रेस ने इस उप चुनाव में अच्छी मेहनत की। पार्टी के कार्यकर्ता आर्थिक संसाधनों की कमी के बावजूद पूरी मेहनत से चुनाव प्रचार में जुटे रहे। लेकिन इस पार्टी को मिले वोटों की संख्या पर नजर डालें तो यह 2022 के चुनाव की तुलना निराशाजनक है। 2022 में कांग्रेस और उसके मौजूदा उम्मीदवार ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। दोनों को पिछली बार मिले वोटों की संख्या करीब 35 हजार थी, जो इस बार 30 हजार हो गई।

बागेश्वर उप चुनाव के नतीजे एक यह भी संकेत देते हैं कि इस राज्य में चुनाव में अब मुद्दे नहीं, सिर्फ भावनाएं चलेंगी। चुनाव में कांग्रेस ने शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही अंकिता हत्याकांड को भी मुद्दा बनाने का भरसक प्रयास किया था।

जनचौक ने कांग्रेस की कुछ चुनाव सभाओं में यह बात महसूस की थी। दूसरी तरफ भाजपा के पास पूर्ववर्ती विधायक स्वर्गीय चंदन रामदास की पत्नी के लिए सहानुभूति वोट बटोरने के अलावा कोई मुद्दा था ही नहीं। खुद पार्टी की प्रत्याशी पार्वती दास ने पूरे चुनाव अभियान में भाषण देने और वोटर्स से कोई वादा करने के बजाय सिर्फ रोकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास करती रहीं।

जनचौक के लिए चुनाव कवरेज करने के लिए मैं 25 और 26 अगस्त को बागेश्वर में था। ठीक इसी दौरान देहरादून से बेरोजगार संघ के नेता बॉबी पंवार अपने साथियों के साथ बागेश्वर गये थे और रोजगार को लेकर लोगों से बातचीत करना चाहते थे। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इस घटना के बाद लगने लगा था कि पुलिस का यह कदम सत्ताधारी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ।

बागेश्वर के लोगों ने न तो बेरोजगार युवकों की सुनी, न उन्हें पहाड़ की बेटी अंकिता की भाजपा नेता के बेटे द्वारा निर्ममतापूर्वक हत्या किये जाने का कोई मलाल था और न ही विकास के मुद्दों से कोई लेना-देना। उन्हें तो बस उम्मीदवार के आंसू नजर आये, क्योंकि उनके विधायक पति की कुछ समय पहले मृत्यु हो गई थी।

बागेश्वर सुरक्षित विधानसभा सीट पर 2022 में भाजपा उम्मीदवार चंदन रामदास से करीब 30 हजार वोट हासिल करके जीत दर्ज की थी। उस समय दूसरे नंबर पर कांग्रेस के उम्मीदवार रंजीत दास रहे थे और उन्होंने 19 हजार के करीब वोट हासिल किये थे। वसंत कुमार ने आम आदर्मी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा था और 15 हजार से ज्यादा वोट हासिल किये थे।

इस बार वसंत कुमार को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था। राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन था कि 2022 की स्थिति बरकरार रखने में सफल रहे तो कांग्रेस चुनाव जीत सकती है। वैसे भी चंदन राम दास ने तीन बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन उनके कामकाज को लेकर लोग बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं नजर आ रहे थे।

इसके अलावा मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भाजपा के टिकट किसी योग्य नेता को देने के बजाए दिवंगत चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को दिये जाने से भी नाराज था। इस सबके बावजूद कांग्रेस और वसंत कुमार पिछली बार दोनों को मिलाकर हासिल किये गये करीब 35 हजार वोट फिर से अपने पाले में ले आने में सफल नहीं हो पाये। इस बार करीब 4 हजार वोट पार्वती दास के आंसुओं में बह गये और भाजपा के परिवारवाद को मजबूत करने में सफल रहे।

बेशक चुनाव नतीजों के लिहाज से कांग्रेस 2405 मतों से यह उप चुनाव हार गई हो, लेकिन जीत का अंतर 12 हजार से 24 सौ तक ले आना एक तरह से उसकी बड़ी कामयाबी है। हालांकि दूसरा पक्ष यह भी है कि भाजपा की पार्वती दास को इस बार 2022 में उनके पति भाजपा प्रत्याशी दिवंगत चंदन रामदास से ज्यादा वोट मिले हैं। चंदन रामदास को 2022 में 30,945 वोट मिले थे, जबकि उनकी मृत्यु के कारण हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी भाजपा उम्मीदवार पार्वती दास को 33,247 वोट मिले हैं। वसंत कुमार को 30,842 वोट मिले, यानी कि पिछले चुनाव में दिवंगत चंदन रामदास को मिले वोट से कुछ कम।

कांग्रेस का प्रदर्शन इसलिए भी संतोषजनक माना जाएगा कि उप चुनाव में सरकारी मशीनरी पूरी तरह से भाजपा के लिए काम कर रही थी। यहां तक कि वामपंथी दलों से जिला चुनाव अधिकारी की शिकायत भी चुनाव आयोग से की थी और चुनाव आयोग के निर्देश पर अब इस शिकायत की जांच भी हो रही है।

सत्ताधारी बीजेपी के इशारे पर ही चुनाव प्रचार अभियान के बीच बागेश्वर गये बेरोजगार संघ के नेताओं को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। संघ के नेता बॉबी पंवार ने जनचौक को गिरफ्तारी के दौरान के कुछ वीडियो फुटेज भी दिखाये थे, जिसमें गिरफ्तारी के समय भाजपा और बजरंग दल से जुड़े कुछ लोग भी पुलिस के साथ नजर आ रहे थे। बेरोजगार संघ के नेताओं को कोर्ट ने बिना शर्त जमानत पर रिहा कर दिया था, लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें बागेश्वर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने तक ही इजाजत नहीं दी।

इस उप चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा उत्तराखंड क्रांति दल, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। तीनों पार्टियों के उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 1752 वोट मिले थे। जब बागेश्वर उप चुनाव में नामांकन हुआ था, उससे पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन अस्तित्व में आ गया था। लेकिन, बागेश्वर में कांग्रेस में इन दलों से किसी तरह की कोई बातचीत नहीं की। यदि ऐसा किया जाता तो कांग्रेस की हार का अंतर कुछ कम जरूर हो सकता था।

बागेश्वर में संसाधनों की कमी भी कांग्रेस के हाथ से करीब 4 हजार वोट खिसकाने के लिए जिम्मेदार रही। जब चुनाव प्रचार अभियान चरम पर था, तो कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति के हाथ लगभग खाली थे। हालात यहां तक बन गये थे कि संचालन समिति से जुड़े एक पदाधिकारी ने भारी दबाव के चलते चुनाव प्रचार से हाथ खींचने तक की बात कह दी थी।

जनचौक ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के कुछ सीमावर्ती गांवों का जायजा लिया था। सिरीकोट में भाजपा और कांग्रेस के आर्थिक संसाधनों का अंतर साफ तौर पर नजर आया था। भाजपा के दर्जनभर कार्यकर्ता यहां प्रचार कर रहे थे, जबकि कांग्रेस एक जनसभा कर रही थी। भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए दिन के भोजन की शानदार व्यवस्था थी, लेकिन कांग्रेस की सभा में चाय तक की व्यवस्था चरमराई हुई थी।

कुछ गांवों में ऐसे भी लोग मिले, जो भाजपा को वोट नहीं देना चाहते थे, लेकिन उनकी यह भी शिकायत थी कि कांग्रेस की ओर से अब तक कोई भी उनके पास नहीं पहुंचा है। आर्थिक संसाधनों की कमी के चलते कांग्रेस ऐसे कई गांवों तक नहीं पहुंच पाई, जबकि भाजपा की ओर से बूथ स्तर तक के लिए बजट आवंटित किया गया था और हर बूथ पर एक सीनियर संघ कार्यकर्ता की तैनाती की गई थी।

ऐन नामांकन से पहले बीजेपी ने कांग्रेस को चुनाव से पहले की परास्त करने के लिए एक गहरी चाल चली थी। कांग्रेस अपने जिस नेता को टिकट देने जा रही थी, वह अचानक बीजेपी में शामिल हो गया। हालांकि कांग्रेस ने पूर्व आप नेता और पिछले चुनाव में 15 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने वाले वसंत कुमार को अपने साथ मिलाकर और पार्टी टिकट देकर इस नुकसान की काफी हद तक भरपाई कर दी थी।

बागेश्वर उप चुनाव को उत्तराखंड में 2024 के लोक सभा चुनाव की रिहर्सल के रूप में भी देखा जा रहा था। इस नजरिये से देखें तो कांग्रेस का प्रदर्शन पहले से बेहतर रहा है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उसे न सिर्फ अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव करने होंगे, बल्कि चुनाव में आर्थिक संसाधनों की तरफ भी ध्यान देना होगा।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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