Tuesday, March 19, 2024

अकाली दल की सीएए की मुखालफत से बीजेपी बेचैन, ढींडसा से हाथ मिलाने की तैयारी

नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिरोमणि अकाली दल के रोज बदलते रुख से नाराज भाजपा ने अब बादल दल के प्रतिद्वंदी अकाली नेताओं से बाकायदा हाथ मिलाने की तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि हरसिमरत कौर बादल के मंत्री पद के लालच के चलते शिरोमणि अकाली दल फिलहाल गठबंधन तोड़ने की पहल नहीं कर रहा, लेकिन भाजपा ने पिंड छुड़ाने का फैसला कर लिया है।

भाजपा, बागी वरिष्ठ अकाली नेता और राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा के साथ खुलेआम नज़दीकियां बढ़ा रही है। इसी सिलसिले के तहत सोमवार की देर रात नवनियुक्त भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ढींडसा से लंबी मुलाकात की। हालांकि दोनों पक्ष इसे ‘बधाई मिलन’ और ‘शिष्टाचार मुलाकात’ बता रहे हैं, लेकिन दोनों के बीच भविष्य की अहम रणनीति पर विस्तार से चर्चा हुई और कुछ शर्तों का आदान-प्रदान हुआ।

खुद सुखदेव सिंह ढींडसा और भाजपा के कुछ नेताओं ने इस मुलाकात की पुष्टि की है। पहले इस मुलाकात को गुप्त रखने की हर संभव कोशिश की गई, लेकिन धीरे-धीरे जब खबर बाहर आई तो शिरोमणि अकाली दल में हड़कंप मच गया तथा प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने आनन-फानन में वरिष्ठ नेताओं की मीटिंग बुलाकर आगे की रणनीति पर विचार विमर्श किया।

सोमवार को ही सुखबीर ने दबी जुबान से कहा था कि बेशक दिल्ली और हरियाणा में अकाली-भाजपा गठबंधन टूट गया है, लेकिन पंजाब में फिलहाल कायम रहेगा। उनका यह बयान तब आया था जब उनकी पार्टी के अति वरिष्ठ नेता राज्यसभा सांसद बलविंदर सिंह भूंदड़ का सीएए को खारिज करने वाला बयान आया।

सुखदेव सिंह ढींडसा शिरोमणि अकाली दल के बड़े कद के नेता रहे हैं। भाजपा से उनके गहरे रिश्ते हैं। इसी के चलते प्रकाश सिंह बादल से सलाह किए बगैर पिछले साल केंद्र सरकार ने उन्हें पदमश्री से नवाजा था और बादलों ने इसका इस कदर बुरा माना कि ढींडसा को पार्टी की ओर से औपचारिक बधाई भी नहीं दी गई।

बाद में ढींडसा ने सुखबीर सिंह बादल पर तानाशाही और मनमर्जी करने के आरोप लगाकर खुली बगावत कर दी और पार्टी को अलविदा कह कर, अन्य बागियों द्वारा गठित टकसाली अकाली दल में चले गए। उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा ने भी विधानसभा में शिरोमणि अकाली दल का विधायक दल का पद त्याग कर अपने पिता का साथ देते हुए टकसाली अकाली दल का दामन थाम लिया। दोनों पिता-पुत्र मालवा की कई सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं।

इन दिनों दिल्ली के बागी अकाली डीएसजीपीसी के पूर्व प्रधान मनजीत सिंह जीके और पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया भी उनके साथ हैं। इनकी एकजुटता और हालिया सक्रियता शिरोमणि अकाली दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर आई है। खासतौर से तब जब अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने की कगार पर है।

जेपी नड्डा से सुखदेव सिंह ढींडसा की मुलाकात के मायने एकदम साफ हैं। भाजपा ने पंजाब में ठोस विकल्प ढूंढ लिया है। सूत्रों के मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद अकाली-भाजपा गठबंधन पूरी तरह टूट सकता है और भाजपा ढींडसा के टकसाली अकाली दल के साथ गठजोड़ कर सकती है।

अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने की सूरत में हरसिमरत कौर बादल का मंत्रिमंडल से बाहर आना यकीनी है और कयास है कि सुखदेव सिंह ढींडसा को केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा। यह बादलों के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। यकीनन बादल परिवार को उन मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है जो अभी तक इसलिए उनसे दूर हैं कि पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन अभी कायम है।

शिरोमणि अकाली दल के सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल ने चल रहे तमाम घटनाक्रम पर खामोशी अख्तियार की हुई है। बीते दिनों जालंधर में राज्य भाजपा के नए अध्यक्ष अश्विनी शर्मा की ताजपोशी के समारोह में पार्टी की शिखर लीडरशिप ने खुलेआम कहा था कि अब वह बादलों की पिछलग्गू नहीं बनेगी, छोटे के बजाए ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभाएगी और बराबर की सीटें लेगी।

माना जाता है कि भाजपा आलाकमान के इशारों से पार्टी की राज्य इकाई ने इस तरह खुलेआम शिरोमणि अकाली दल को ललकारा और अपने आगामी रुख का इजहार किया। इससे पहले हरियाणा में गठबंधन सुखबीर सिंह बादल की पहल पर टूट चुका था और बाद में दिल्ली में भाजपा की जवाबी पहल पर टूटा। प्रकाश सिंह बादल तब भी खामोश रहे और अब भी खामोश हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक पर पहले शिरोमणि अकाली दल ने लोकसभा में सरकार का समर्थन किया था और हरसिमरत कौर बादल ने पंजाब आकर जगह-जगह सीएए के पक्ष में दलीलें दीं। अब सुखबीर सिंह बादल और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मुखर हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक में बदलाव करके मुसलमानों को भी उसमें शामिल किया जाए। भाजपा को यह सिरे से नागवार लगा और यह भी कि बादल के सबसे करीबी बलविंदर सिंह भूंदड़ ने देश में अल्पसंख्यक विरोधी माहौल होने की बात तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीखी आलोचना सार्वजनिक तौर पर की।

एसजीपीसी के प्रधान और श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने भी आरएसएस मुखिया की आलोचना करते हुए देश में अल्पसंख्यकों के असुरक्षित होने की बात कई बार दोहराई और अब भी वे यह सब पुरजोर तरीके से कह रहे हैं। दोनों सर्वोच्च सिख संस्थाओं की कमान शिरोमणि अकाली दल के हाथ में है। भाजपा इस से भी बेहद चिढ़ी हुई है।

दिल्ली में गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने सुखदेव सिंह ढींडसा को प्रकाश सिंह बादल के विकल्प के तौर पर देखना अथवा लेना शुरू कर दिया है। तय है कि जेपी नड्डा और सुखदेव सिंह ढींडसा की मुलाकात राजनीति में नए गुल खिलाएगी। बेशक दोनों की ओर से इसे साधारण मुलाकात कहा जा रहा है लेकिन राजनीति पर इसका असाधारण असर पड़ेगा। दिल्ली में हुई इस मुलाकात के बाद पंजाब के बड़े भाजपा नेता सुखदेव सिंह ढींडसा और परमिंदर सिंह ढींडसा के संपर्क में हैं। यह तो साधारण नहीं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)

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