Monday, October 2, 2023

ज़किया जाफ़री पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी की कड़ी भर्त्सना

“देश में बढ़ता धार्मिक बहुसंख्यकवाद और सर्वभक्षी कारपोरेटी हमला लोकतंत्र और संविधानिक मूल्यों के लिए बड़े खतरे” पर 26 जून को झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा बगईचा, रांची में आयोजित एक सेमिनार में चर्चा हुई जिसमें राज्य के अनेक जन संगठनों व वाम राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

सेमिनार में उपस्थित प्रतिनिधियों ने ज़किया जाफ़री मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय और उसके बाद गुजरात पुलिस द्वारा तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा की। प्रतिनिधियों ने कहा कि न्यायालय ने न केवल ज़किया जाफ़री की याचिका को ख़ारिज किया बल्कि जो लोग गोधरा हादसे के बाद हुए सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के न्याय के लिए संघर्ष कर रहे थे, उनके विरुद्ध ही टिप्पणी की व कार्रवाई तक की बात की। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि 2002 में गोधरा हादसे के बाद गुजरात में हुए सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने के दोषी और हिंसा को न रोकने के दोषियों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय सवाल तक सुनने को तैयार नहीं है। कहा गया कि न्यायालय का उदासीन रवैया कई गंभीर सवाल खड़ा करता है। सरकार नहीं चाहती है कि कोई नागरिक उनके द्वारा किए गए हिंसा के विरुद्ध सवाल करे और जवाबदेही मांगे।

सेमिनार के प्रतिभागियों ने इसके विरोध में संलग्न वक्तव्य जारी किया और मांग की कि तीस्ता सीतलवाड़ व अन्य के विरुद्ध दर्ज की गयी फ़र्ज़ी प्राथमिकी को तुरंत वापस लिया जाए और उन्हें तुरंत छोड़ा जाए।

सेमिनार में झारखंड समेत देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद और हिंसा पर व्यापक चर्चा हुई। आदिवासी कार्यकर्ता वासवी कीड़ो ने बताया कि आरएसएस व भाजपा द्वारा आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन पर लगातार हमले के साथ-साथ उनके धर्म और संस्कृति पर भी हमला किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरना सनातन एक नहीं है। सरना धर्म अलग है और न कि हिन्दू धर्म का हिस्सा।

अफज़ल अनीस ने कहा कि धार्मिक बहुसंख्यकवाद का दयारा बढ़ता जा रहा है। आज सिर्फ मुसलमानों पर ही हमला नहीं हो रहा है बल्कि हर तरह के अल्पसंख्यकों पर हमला हो रहा है। देश फूलों के खुबसूरत गुलदस्ते जैसा है जिसे लगातार सुखाया जा रहा है। उन्होंने झारखंड एवं पूरे देशभर में होने वाली मॉबलिंचिंग की घटनाओं पर विचार करने की जरूरत पर जोर दिया।

आदिवासी मामलों के जानकार व लेखक अश्विनी पंकज ने इतिहस से चले आ रहे धर्म की परिभाषा, उसके स्वरूप पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों पर हिंदुत्व का हमला नयी बात नहीं है। दशकों से सोची-समझी राजनीति के तहत आदिवासियों को हिन्दू धर्म का हिस्सा बनाने का कोशिश की जाती रही है।

प्रोफेसर रवि भूषण ने अपनी बात रखते हुए कहा कि बहुसंख्यकवाद और धार्मिक बहुसंख्यकवाद शब्दों का प्रचलन साल 2014 के बाद से ही हो रहा है। यह दोनों विषय किसी भी रूप में अलग नहीं है। भारत बहुजातीय, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक देश है। बहुसंख्यकवाद कैंसर के रूप में हमारे समाज में फ़ैल रहा है। धार्मिक बहुसंख्यकवाद लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदल रहा है।

सेमिनार में आदिवासियों व पूरे देश में लगातार हो रहे कारपोरेटी हमले पर व्यापक चर्चा हुई।

सीपीएम के समीर दास ने अपनी बातें रखते हुए कहा कि कारपोरेटी हमला संप्रदायिकता से अलग नहीं है। समाज के वंचित लोगों में मोदी सरकार के संरक्षण में कारपोरेटी हमला हावी है। आर्थिक नीति के विकल्प के रूप में विकेन्द्रित व को-ऑपरेटिव ढांचा के माध्यम से आर्थिक विकास के साथ आम जनता के सशक्तीकरण का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि ज़मीनी स्तर पर जो कारपोरेटी हमला दिखाई दे रहा है; यह चिंतनीय है। निजीकरण या कॉर्पोरेट का हमला आदिवासी-मूलवासी पर लगातार हो रहा है। भोजन, शिक्षा, जल, जंगल, ज़मीन का दोहन ज़ारी है। मोदी सरकार अंतर्गत लैंड रिकॉर्ड का आधुनिकीकरण विकास के नाम पर गांवों को उजाड़ने और आदिवासियों को ख़त्म करने की एक साजिश है।

बेफि यूनियन के एम एल सिंह ने कहा कि देश में निजीकरण का हमला दशकों से चल रहा है जो मोदी सरकार के बाद और बढ़ गया है।

सीपीआई (माले) के शम्भू महतो ने सभी मुख्यधारा पार्टियों के जन विरोधी कॉर्पोरेट-मुखी रवैया पर सवाल उठाया। वहीं नंदिता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ धर्म के नाम पर समाज को तोड़ रही है और दूसरी तरफ देश को कॉर्पोरेट के हाथों बेच रही है। अग्निपथ योजना सबसे नया हमला है। साथ ही, उनकी जन-विरोधी नीतियों का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी लगातार हमला किया जा रहा है, जिसकी सबसे ताज़ा उदहारण है तीस्ता सीतलवाड़।

सेमिनार के अंत में चर्चा का समेकन मंथन ने किया और एलिना होरो ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सभी प्रतिभागियों ने देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद, हिंदुत्व और सर्वभक्षी कारपोरेटी हमले के विरुद्ध संघर्ष को सुदृढ़ कर आगे बढ़ने का निर्णय लिया।

कार्यक्रम का संचालन अलोका कुजूर, अम्बिका यादव, भरत भूषण चौधरी और प्रवीर पीटर ने किया।

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