Saturday, April 20, 2024

खतरा मोल लेकर जीवन यापन करने को अभिशप्त बेघर व भूमिहीन

आए दिन ऐसी खबरें सुर्खियों में होती हैं कि सरकारी जमीन का अतिक्रमण कर बनाए गए घर को प्रशासन के किया जमींदोज, लोग हुए बेघर, ठंड में ठिठुर कर रात गुजरने को मजबूर, भू-संधान से कई घर हुए जमींदोज, कई की गई जान, कई हुए बेघर, प्रशासन ने दिया था जमीन खाली करने की नोटिस, लोगों ने खाली नहीं की जमीन।

कभी हमने सोचा, ऐसा क्यों होता है? कारण साफ है कि आजादी के 75 साल बाद भी बेघर व भूमिहीन लोगों को न तो एक अदद छत मिल पाई है और न ही किसी को कोई स्थाई रोजगार मिल पाया है। इतना ज़रूर हुआ है कि देश की जनता को योजनाओं की ढपोरशंखी घोषणाएं लगातार मिलती रही हैं। ताकि जनता इस आशा में कि आज नहीं तो उन्हें इन योजनाओं का लाभ ज़रूर मिलेगा।

ठीक उसी तरह जिस तरह कि कुत्ते के मुंह से इतनी दूरी पर एक हड्डी लटका दी जाए जो लाख उछलने के बाद भी कुत्ते के मुंह को हड्डी छू न पाए और कुत्ता इस आशा में उछलता रहे कि कभी न कभी वह हड्डी को वह पा ही लेगा। देश की जनता की भी स्थिति यही है, कारण साफ है कि कुछ पाने की आशा में जनता व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन न कर सके। यानी व्यवस्था बदलाव की सारी संभावनाएं हाशिए पर पड़ी रहे, चाहे सत्ता किसी की भी हो।

अब आते हैं कुछ घटनाओं पर, 12 जनवरी को झारखंड के रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 40-45 किलोमीटर दूर स्थित टाटा स्टील वेस्ट बोकारो डिवीजन के बोरिंग कैंप फायर ब्रिगेड के सामने रात करीब ढाई बजे एक तेज आवाज हुई। ठिठुरती रात में घरों में सोए लोग घबराकर जाग गए। दहशत के कारण लोग कड़ाके की ठंड में भी घरों से बाहर निकल गए। तब उन्हें पता चला कि भू-संधान होने की यह आवाज थी। क्योंकि इस आवाज के बाद कई घरों की दीवारें फट गई थीं और किसी के फूस व खपरैल छत भी टूटकर गिर गए थे। दहशत में लोग बाहर ही रात गुजारी। इस भू-धंसान से करीब आधा दर्जन से अधिक मकानों में दरारें पड़ गयीं है। जमीन के साथ मकान की दीवार दरकने से कई मकान क्षतिग्रस्त हो गये है। इस भू-धंसान के बाद और मकानों में हुए दरारें को देखकर लोग दहशत में हैं।

बता दें कि टाटा स्टील वेस्ट बोकारो डिवीजन के जिस क्षेत्र में भू-धंसान हुआ है। पहले उस जमीन के नीचे भूगर्भ खदान चला हुआ है। अपनी जमीन और अपना मकान न होने के कारण उसी जमीन के ऊपर कुछ दलित- आदिवासी व मजदूर लोगों द्वारा अस्थायी कच्चा मकान बनाया गया है। बताया जा रहा है कि उसी जमीन के धंसने से मकानों में दरार आयी हैं।

खबर के मुताबिक सबसे पहले शैलेश कुमार साव का मकान क्षतिग्रस्त हुआ। इनका परिवार सबसे पहले घर से बाहर निकाल कर मदद की गुहार लगाने लगा। रात में ही आसपास के लोग पहुंच कर सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त शैलेश कुमार साव, उसकी दो बहनें व उनके परिवार के अन्य लोगों को दिलासा दिलाते हुए उसका सामान घर से बाहर निकालने में मदद की। पीड़ित परिवार ने बताया कि रात्रि लगभग ढाई बजे जोरदार आवाज के साथ जमीन दरकने लगी। इससे उनके मकान की दीवारों में दरारें आने लगीं।

धीरे-धीरे आवाज के साथ दरारें बढ़ने लगीं। जमीन फटने की आवाज सुनकर गहरी नींद में सोये परिवार के सदस्य अचानक चौक गये। उस समय उन्हें घर में चोर घुसने की आशंका हुई, लेकिन कुछ देर बाद ही जब उनकी नजरें घर की दिवार और जमीन पर पड़ी तो सभी डर से कांप उठे। उनकी बहन रीना देवी व बहनोई शिवनंदन साव सहित उनका परिवार और उनकी बड़ी बहन (विधवा) सरिता देवी (पति स्व भुनेश्वर साव) एवं उसका परिवार बाहर निकल गए।

सुबह होते-होते शैलेश सहित आसपास के कई लोगों के मकान में भी दरारें पड़ गयी थीं। इससे क्षेत्र के लोगों में दहशत है। पीड़ित परिवार की सुरक्षा को लेकर कंपनी के अधिकारी तत्काल राहत कार्य में जुटे। घटना की सूचना मिलते ही राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के नेता व स्थानीय जनप्रतिनिधि मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। और अपनी राजनीतिक बतौलेबाजी से पीड़ित लोगों को तसल्ली दी।

टाटा स्टील वेस्ट बोकारो डिवीजन के अधिकारियों ने बताया कि “कंपनी को खनन कार्यों से दूर और सेटलमेंट क्षेत्रों के पास भूमि और कुछ घरों में दरारें पड़ने की सूचना मिली है। कंपनी इस मामले की जांच कर रही है और इस घटना की सूचना संबंधित उच्चाधिकारियों को दे दी गयी है। एहतियात के तौर पर सुरक्षा के कदम उठाए गए हैं और कंपनी आसपास रहने वाले सभी लोगों को निकाल रही है।” उन्होंने यह भी बताया कि “वहां बसे लोगों को कई बार खतरे से संबंधित नोटिस भेज कर जमीन खाली करने कहा गया है।”

संदर्भवश बताना होगा कि पिछले 28 दिसम्बर 2022 को रांची के रेलवे-स्टेशन के ओवरब्रिज के नीचे बसी बस्ती (लोहरा कोचा) को रेलवे विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर जमींदोज कर दिया गया, जिसके बाद वहां बसे लगभग 40 दलित-आदिवासी-पिछड़े व मेहनतकश परिवार बेघर हो गए। इस तबाही के एक सप्ताह बाद भी अधिकांश परिवार वहीं या रोड के किनारे खुले आसमान के नीचे ठण्ड में रहने को विवश है।

10 जनवरी 2022 को प्रभावित लोगों ने उपायुक्त, रांची को एक पत्र देकर पुनर्वास व मुआवजे की मांग की थी। तो उपायुक्त ने एक तरफ यह कहते हुए कि रांची में जमीन बहुत महंगी है, अपना पल्ला झाड़ दिया। वहीं यह भी कह दिया कि अगर गरीब आदिवासी–दलित की नहीं तो सरकारी जमीन किसकी? जाहिर है उपायुक्त के कथन का निहितार्थ क्या हो सकता कहने की जरूरत नहीं होगी।

राज्य के ही धनबाद कोयलांचल में अवस्थित बस्ताकोला क्षेत्र में भूमिगत आग के बढ़ने से आसपास के दो दर्जन से अधिक घरों में दरार बढ़ गयी है। परियोजना की आग से बस्ती में गैस रिसाव होने लगी है। आग के बढ़ने से घनुडीह माडा कॉलोनी, मल्लाह बस्ती, गांधी चबूतरा, शिव मंदिर के पीछे, लालटेनगंज और घनुडीह के इलाके प्रभावित होने लगे हैं। आग और गैस रिसाव का सबसे अधिक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहा है। एक साल पहले माडा प्रबंधन ने घनुडीह माडा कॉलोनी को असुरक्षित क्षेत्र घोषित कर सुरक्षित स्थान पर शिफ्टिंग का आदेश दिया था, पर लोगों ने इसका विरोध किया।

क्षेत्र के दीपक, पुतुल हाड़ी, बाला हाड़ी ने बताया कि वर्षों से दर्जनों लोग घनुडीह माडा कॉलोनी, लालटेनगंज, मल्लाह बस्ती में रहते आ रहे हैं। मजबूरी में जान जोखिम में डालकर असंगठित गरीब लोग रहते आ रहे हैं। स्थानीय लोगों के साथ बीसीसीएल प्रबंधन और जरेडा भेदभाव की नीति अपनाता है। घनुडीह मल्लाह बस्ती निवासी रैयत तारा सिंह ने बताया कि बीसीसीएल प्रबंधन मनमानी कर रहा है। मेरी 21 डिसमिल रैयती जमीन है। राजा के हुकुमनामा से लेकर 2016 तक की जमीन का रसीद कटा हुआ है। कई बार बस्ताकोला क्षेत्रीय कार्यालय में प्रबंधन को कागजात उपलब्ध करा दिया है। बावजूद आज तक न जमीन का मुआवजा और न ही पुनर्वास के साथ घर मिला।

वहीं कोयलांचल के धनबाद- चंद्रपुरा रेलवे लाइन और कुसुंडा तेलुलमारी रेल लाइन के बीच स्थित बसेरिया चार नंबर बस्ती की बड़ी आबादी भूमिगत कोयला में लगी आग के ऊपर रहने को मजबूर हैं। लेकिन उन्हें वहां हटने की नोटिस भेजी जाती है वे कहां जाएं, इसकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है।

इन तमाम अव्यवस्थाओं की बीच कोयलांचल क्षेत्र झरिया मास्टर प्लान के तहत पहले चरण में 70 हाइ रिस्क फायर साइट से 12,323 परिवारों को हटाये जाने की योजना है। इनमें 2,110 लीगल टाइटल होल्डर व 10,213 नन लीगल टाइटल होल्डर शामिल हैं। सर्वाधिक 26 हाइ रिस्क साइट बीसीसीएल के पीबी एरिया में चिह्नित किये गये हैं। वहां से 4,344 नन एलटीएच परिवारों को पुनर्वासित करना है। इसके अलावा 998 कुसुंडा, 339 पीबी एरिया, 282 ब्लॉक-टू, 214 सिजुआ व 173 कतरास एरिया से एलटीएच परिवार सुरक्षित स्थान पर पुनर्वासित किये जायेंगे, जबकि नन एलटीएच की बात करें तो 2584 लोदना, 1214 सिजुआ, 944 बस्ताकोला व 483 परिवार कतरास एरिया से पुनर्वासित किये जायेंगे। योजनागत रूप से इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। लेकिन इसपर काम शुरू होगा? यह सवालों के घेरे में है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।