झारखंड: एक ऐसा गांव जो गढ़ रहा है समृद्धि का नया अध्याय

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लातेहार। झारखंड के लातेहार जिला से दक्षिण की ओर अवस्थित है महुआडाड़ प्रखण्ड जो जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है। इस प्रखंड का एक गांव है जोरी, जो रेगाईं पंचायत के अंतर्गत आता है। पहाड़ की तराई में बसा जोरी गांव दो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। इस गांव में बसते हैं 200 आदिवासी परिवार। जहां ग्रामिणों ने समृद्धि का नया अध्याय गढ़ दिया है। कभी इन परिवारों का गुजारा बाजार में जलावन की लकड़ी बेचकर चलता था, जो आज इनके खेत-खलिहान खरीफ और रबी की फसलों से लहलहा रहे हैं।

कहना ना होगा कि पहाड़ियां कई दफा ग्रामीणों के दैनिक जीवन को भी पहाड़ बना देती है। लेकिन जब वहां के निवासी अपने पारंपरिक ज्ञान, आपसी सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से अपने सपनों को आकार देने लगते हैं तो यही पहाड़ उनके ग्रामीण जीवन के लिए वरदान साबित होने लगते हैं।

जोरी गांव की पिछली तीन पीढ़ियों के बुजुर्गों ने अपने भावी पीढ़ियों के लिए ऐसे ही सुनहरे सपने बुने थे, जिसे वर्त्तमान पीढ़ी आकार दे रही है। ग्राम प्रधान छलकू नागेसिया की माने तो वर्त्तमान पीढ़ी भी अपने पूर्वजों के आदर्शों को अपनाते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का भरसक प्रयास कर रही है।

ढाई दशक पूर्व तक जोरी गांव के इन 200 आदिवासी परिवारों का गुजारा पूर्णत: स्थानीय बाजार महुआडाड़ में जलावन की लकड़ी बेचकर चलता था। जो आज इन आदिवासियों के खेत-खलिहान जीरा फूल जैसे सुगंधित चावल के धान से लहलहा रहे हैं। यही नहीं इस गांव के किसान रबी फसल के रूप में बटुरा (छोटा मटर) मसूर और गेहूँ की ऊपज भी वृहत पैमाने पर करने लगे हैं। गांव के युवा अजित लकड़ा बताते हैं कि सामान्य बारिश की स्थिति में 2 लाख से अधिक का धान प्रत्येक वर्ष बेचते हैं। विगत वर्ष जब राज्य के अधिकांश हिस्से सुखाड़ की चपेट में थे तब भी हमने 27 हजार रुपये का धान बेचा था। इस वर्ष बारिश जिस तरह से साकारात्मक रूप से दिख रही है, तो जाहिर है धान की बम्पर ऊपज होने की पूरी संभावना है।

बता दें कि जोरी गांव की आर्थिक समृद्धि की कहानी गांव से करीब 1 किलोमीटर पश्चिम दूर अवस्थित लेटो नदी के घघरी नामक स्थल पर स्थित पहाड़ी नदी से नहर निर्माण के बाद शुरू होती है। इस बावत ग्रामीण छलकु नगेसिया बताते हैं कि “करीब तीन पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वजों क्रमश: सुखन बूढ़ा, भुखला बूढ़ा, चुटिया बूढ़ा और पौलूस मास्टर सरीखे लोगों ने “मिशन” द्वारा संचालित काम के बदले अनाज योजना से हर्रा बांध और हगरी बांध का निर्माण किया था। आज ये दोनों बांध धान खेत में तब्दील हो चुके हैं।”

छलकु आगे बताते हैं कि “उन दिनों बुजुर्गों ने अपने खुद के ज्ञान से उसी घघरी के पास बड़े पत्थरों से लेटो नदी के पानी को डायवर्ट कर पहले हर्रा बांध तक पहुंचाया फिर बाद में हगरी बांध में पानी को संग्रहित किया। बरसात के दिनों में गांव के सभी पानी वाले जगहों में मछलियां भी भरपूर मिला करती थी। साथ में जंगलों से नाना प्रकार के कन्द-मूल और फल फूल भी। दोनों बांधों के अगल-बगल, लेटो नदी और गांव के आस-पास बुजुर्गों ने धान की खेतों का निर्माण अपनी मेहनत से आजीवन करते रहे।”

ग्रामीणों के अनुसार समय बीतने के साथ पूर्वजों द्वारा निर्मित पारंपरिक सिंचाई नहर मरम्मत के अभाव में जहां-तहां विखंडित हो गए थे। इसी बीच 2020 में वैश्विक महामारी संकट कोविड 19 का कहर आया। बाहर शहरों व स्थानीय बाजारों की सारी आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो गई। तभी ग्रामीणों ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के सहयोग से मनरेगा योजना को विस्तार से जाना और समझा। ग्राम सभा में जरूरी सार्वजनिक योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर प्रस्ताव पारित किया गया। जिसमें घाघरी से काठो पुल तक नहर जीर्णोंद्धार को ग्राम सभा ने पहली प्राथमिकता दी गई। उक्त योजना को दो भाग में प्रशासनिक स्वीकृति भी दिलाने में ग्रामीणों ने सफलता हासिल की। फिर ग्रामीणों ने मनरेगा में नियम संगत तरीके से काम की मांग की। ग्रामीणों को इसी नहर जीर्णोंद्धार में ग्राम पंचायत द्वारा काम आवंटित की गई।

लेकिन प्रारंभ में महुआडाड़ के राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों ने इन योजनाओं में ठेकेदारी करने की कोशिश शुरू कर दी। परंतु आदिवासियों के तीव्र विरोध के कारण उनको पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा। गांव की ही एक महिला मनरेगा मेठ बसंती देवी के कुशल नेतृत्व में मजदूरों ने ईमानदारी से कार्य किया, उनको निर्धारित अवधि में मजदूरी भी मिली। आज परिणाम यह है कि नहर जीर्णोंद्धार का काम पूरा भी हो गया। संयोगवश 2022 में घाघरी में एक अन्य सरकारी योजना से पक्का चेकडेम का निर्माण भी किया जा चुका है। यही वजह है कि आज जोरी गांव का लगभग 500 एकड़ से अधिक खेतों में नहर का पानी 24 घंटे सुलभ है।

ग्रामीणों से बातचीत से पता चलता है कि उनके संघर्ष और सफलता की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती है। जोरी ग्राम सभा को वन अधिकार कानून 2006 के तहत 252.04 एकड़ का पट्टा भी जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार निर्गत किया जा चुका है। हालांकि जोरी एवं मेढ़ारी ग्राम सभा के लोग 5 साल पूर्व से ही अपने वन संसाधनों का बेहत्तर प्रबंधन कार्य करने लगे हैं। जहां आज बांस, महुआ, घर बनाने हेतु कंडी, नाना प्रकार की औषधीय जड़ी – बूटी, फल – फूल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, जिसका ग्रामीण ग्राम सभा द्वारा तय नियमानुसार उपयोग करते हैं। ग्राम प्रधान स्वयं स्थानीय जड़ी बूटियों से गंभीर बीमारियों, यथा पत्थरी (स्टोन), पागलपन, मिरगी, लांघन का अचूक ईलाज करते हैं। उनके शब्दों में गंभीर रूप से टूटे हड्डियों का ईलाज सिर्फ 3 खुराक से ठीक कर देते हैं। वे सांप और बिच्छू द्वारा डसे विष को भी ईलाज से ठीक करते हैं।

ग्रामीण सरकार से यह अपेक्षा करते हैं कि इस उपयोगी नहर का कई जगहों पर मिट्टी कटाव से टूट जाने की संभावना है। ऐसी जगहों का विस्तृत आकलन कर प्राक्कलन तैयार करते हुए नहर को जरूरी स्थानों का पक्कीकरण किया जाए।

बता दें कि पिछले 18 अगस्त 2024 को राज्य के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक दौरे के तहत जोरी गांव का दौरा किया और इस तरह के साकारात्मक पहल की तारीफ की। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि जोरी गांव के इस विकास को प्रेरणा के रूप में राज्य के अन्य गांवों के बीच पहुंचाने और ऐसी पहल के लिए प्रेरित करने का काम करेंगे। सामाजिक कार्यकर्ताओं की इस टीम में जेम्स हेरेंज, अफसाना खातून, जितेंद्र सिंह, प्रशान्ता किण्डो, और विनय भूषण शामिल थे।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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