झारखण्ड: विस्थापितों ने की तालाबंदी, जमशेदपुर में विकास भवन पर जड़ा ताला

झारखण्ड के सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत चाण्डिल के पुराना अधीक्षक कार्यालय के परिसर में अपनी मांगों को लेकर पिछले 16 दिनों से 84 मौजा के 116 गांव के विस्थापितों द्वारा अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है। लेकिन विस्थापितों की मांगों पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। विभाग द्वारा इस तरह से विस्थापितों की जा रही उपेक्षा से आक्रोशित आंदोलनकारियों ने एक जुलाई को जिले के जमशेदपुर में स्थित आदित्यपुर के विकास भवन कार्यालय के सभी कक्ष को ताला मारकर सील कर दिया।

पिछले 16 दिनों से अखिल झारखंड विस्थापित अधिकार मंच के बैनर तले 84 मौजा 116 गांव के विस्थापित अपनी दस सूत्री मांगों को लेकर पुराना अधीक्षक कार्यालय परिसर चांडिल में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। वहीं दूसरी तरफ विगत 129 दिनों से गोविंदपुर खीरी निवासी बुजुर्ग मनोहर महतो अपने साथी बुजुर्गों के इन्हीं दस सूत्री मांगों को लेकर आदित्यपुर विकास भवन के पुनर्वास कार्यालय के सामने अनशन पर बैठे हैं।

जमशेदपुर विकास भवन में तालाबंदी

लेकिन संबंधित विभाग के अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है। विभाग द्वारा ना तो वार्ता करने की पहल की गई, ना ही विस्थापितों की मांगों पर किसी तरह की सुनवाई करने का कोई संकेत दिया गया। इसलिए विस्थापितों आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है।

चाण्डिल डैम के लिए 2001 को ही 116 गांवों का भूअर्जन कर पूर्ण एवं आंशिक रूप से विस्थापित किया जा चुका है। परन्तु अभी तक इन विस्थापितों को पूरा नियोजन नहीं दिया जा सका है। जबकि विकास पुस्तिका में अंकित प्रावधान के अनुसार प्रत्येक विस्थापित परिवार को सरकारी नौकरी दिया जाना निश्चित किया गया है।

ऐसे में विस्थापितों की मांग है कि उन्हें या तो सरकारी नौकरी दी जाए या फिर जो उच्चतम न्यायालय द्वारा मध्यप्रदेश के सरदार सरोवर परियोजना के प्रत्येक विस्थापित परिवारों को 60 लाख मुआवजे की तर्ज पर चाण्डिल डैम के विस्थापितों को 1 करोड़ रूपए का मुआवजा दिया जाए।

1990 के पुर्नवास नीति के अनुसार सभी विस्थापितों को पुनर्वास के लिए 25 डिसमिल भूखंड दिया जाना था, परन्तु पुनरीक्षित पुनर्वास नीति 2012 के प्रावधानों कंडिका-5.1 (क) के मुताबिक, अब 12.5 डिसमिल दिया जाना है। जिसे विस्थापित मानने को तैयार नहीं हैं, वे पुन: 25 डिसमिल किये जाने की मांग कर रहे हैं।

वहीं विस्थापित मानते हैं कि अगर सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना चाण्डिल डैम विस्थापितों को पुनरीक्षित पुनर्वास नीति 2012 को आधार मानकर दिशा निर्देश पालन किया जाता है। तो वे मांग करते हैं कि 2012 वर्ष को आधार मानकर भूअर्जन अधिनियम की धारा-4 के अंतर्गत विकास पुस्तिका में अंकित सदस्यों की उम्र 2012 तक 18 वर्ष पूर्ण होने वाले सभी सदस्यों का नाम विकास पुस्तिका निर्गत किया जाए।

चाण्डिल डैम प्रबंधन द्वारा जमीन अधिग्रहण करने के आज 40 वर्ष हो रहे हैं, कई विकास पुस्तिका में परिवार प्रमुख की मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में विस्थापितों की मांग है कि उक्त विकास पुस्तिका के आश्रितों के नाम विकास पुस्तिका निर्गत किया जाए।

पुर्नवास की समस्या आज जो ज्यों की त्यों बनी हुई है। ऐसे में विस्थापितों की मांग है कि 116 गांवों की ही पुर्नवास सुविधायें पुनरीक्षित पुनर्वास नीति 2012 के प्रावधानों (कंडिका-5.5 ) के अनुसार मूलभूत सुविधा उपलब्ध करायी जाए एवं पुनर्वास स्थल पर बसे हुए विस्थापितों के नाम जमीन का पट्टा दिया जाए।

विस्थापितों की मांग है कि चाण्डिल डैम द्वारा विस्थापन के बदले दी गयी नौकरी, निर्गत की गयी विकास पुस्तिका, निर्गत किया गया पुनर्वास पैकेज दिया जाए तथा पुनर्वास स्थल पर अधिग्रहण किए गए प्लॉट की CBI जांच हो।

विगत 28 सितंबर 2022 को अनशन के दौरान एक ट्रैक्टर बैठे लोगों को कुचलता हुआ निकल गया था। अब विस्थापितों की मांग है कि उस वक्त अनशन पर बैठे लोगों में कुचले जाने से घायल हुए व्यक्तियों को मुआवजा तथा नौकरी दी जाए। उनकी मांग है कि हमारी वार्ता सार्वजनिक रूप से 116 गांव के प्रतिनिधिमंडल के साथ सिर्फ केंद्रीय टीम अथवा केंद्रीय जल संसाधन विभाग के साथ ही की जाए।

विस्थापितों का मानना है कि चाण्डिल डैम के माध्यम से सृजित होने वाली हर योजना, रोजगार और लाभ का पहला अधिकार चाण्डिल डैम विस्थापितों को प्राप्त होना चाहिए।

जमशेदपुर में विस्थापितों का प्रदर्शन

उनका कहना है कि जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती तब तक चाण्डिल डैम का जल भंडारण 177 मीटर रखा जाए तथा 177 मीटर तक जलस्तर बढ़ाने से पहले डूबे क्षेत्र में प्रशासनिक जन सूचना जारी हो। लेकिन विस्थापितों की इन मांगों पर ना विभाग कोई वार्ता करने को तैयार है और ना ही इनकी मांगों पर कोई अन्य पहल की जा रही है। ऐसे में आन्दोलन रत विस्थापित आर-पार की लड़ाई का मूड बना चुके है।

आन्दोलनकारी व चाण्डिल बांध के दयापुर गांव के विस्थापित अनुप महतो ने बताया कि हम विस्थापितों का आन्दोलन चरणबद्ध तरीके से चला रहे हैं। इस आलोक में 1 जुलाई को दूसरा चरण था, जिसके तहत आदित्यपुर कार्यालय का गेट जाम तथा तालाबंदी का कार्यक्रम रहा। आंदोलन के तीसरे चरण में 5 जुलाई को इचागढ़ विधायक सविता महतो तथा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन के साथ-साथ धरना स्थल से चाण्डिल बांध तक महारैली का कार्यक्रम रखा गया है।

अनूप महतो ने कहा कि विभिन्न चरणों में 40 सालों से हमारे पूर्वजों से लेकर वर्तमान पीढ़ी अपने मौलिक अधिकारों की मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। चाण्डिल बांध विस्थापितों की मांगों को लेकर हमारे पूर्वज शहीद हुए हैं। प्रशासन द्वारा आंदोलन को कुचलने के लिए आन्दोलन स्थल पर गोली तक चलाई गई, लेकिन अभी तक सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया है। और ना ही हम विस्थापितों को अभी तक इंसाफ मिल पाया है। वहीं हमारी जमीन घर-बार सब चाण्डिल बांध में डूब चुके हैं और हम सभी बेघर हो गए।

वहीं कॉरपोरेट घराने पूंजीपति रोज व रोज फल-फूल रहे हैं। आज चाण्डिल बांध में टाटा घरानों जैसे कई उद्योगपतियों का करोड़ों में पैसा बकाया है और सरकार मौन है। सरकार के द्वारा जो नियम बनाया गया है, उसी को आधार बना कर हम मांग कर रहे हैं। किंतु सरकार हमारी अवहेलना कर रही है, जिसकी हम घोर निंदा करते हैं। आने वाले समय में हमारा आंदोलन और तेज होगा और हम अपना अधिकार अंत तक लेकर रहेंगे।

विस्थापित राकेश महतो ने कहा कि अबकी बार लड़ाई आर-पार की है, सरकार अगर हमारी बात नहीं मानती है तो हम डैम का पानी खोल कर अपना जमीन वापस लेंगे एवं उस जमीन पर हम खेती-बारी करके अपना जीवन यापन करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारी जो दस सूत्री मांग वह पूरी तरह जायज एवं न्याय सम्मत है।

जमशेदपुर में स्थित आदित्यपुर के विकास भवन कार्यालय में तालाबंदी के कार्यक्रम में विस्थापितों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जिनमें राकेश रंजन महतो, अनूप महतो (दयापुर), अनूप महतो (मुरु), विवेक सिंह, माधुरी महतो, निदेश मुर्मू, सुमित्रा महतो सहित सैकड़ों की संख्या में महिला और पुरुष उपस्थित थे।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखण्ड में रहते हैं।)

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