Saturday, April 27, 2024

जोशीमठ प्रभावितों का मुआवजा सरकार के लिये बना जी का जंजाल

आपदाग्रस्त जोशीमठ में प्रभावितों को मुआवजे का मामला उत्तराखण्ड सरकार के लिये जी का जंजाल बनता जा रहा है। अपने को अधिक संवेदनशील साबित करने के लिये राज्य सरकार अब तक का सबसे बेहतर मुआवजा पैकेज देने का वायदा तो कर रही है, लेकिन वह सबसे बेहतर पैकेज क्या होगा, यह तय करने में सरकार के पशीने छूट रहे हैं। क्योंकि राज्य सरकार आर्थिक रूप से प्रभावितों को सन्तुष्ट करने की स्थिति में नहीं है और केन्द्र सरकार के नियम ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं।

ऐसी स्थिति में आंच केन्द्र सरकार की ओर भी जा रही है। क्योंकि मुआवजा केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के नियमों के हिसाब से ही बंटना है और वे नियम घावों पर नमक छिड़कने के जैसे ही हैं। यहां सवाल केवल सम्पत्ति की क्षति का नहीं बल्कि आजीविका की क्षति का भी है। सवाल लोगों के जीवन और उनके सपनों के बिखरने का भी है।

जोशीमठ को लेकर 4 फरवरी को दिल्ली में एनडीएमए की बैठक बुलाई गयी थी जो अपरिहार्य कारणों से टल गयी। जबकि जोशीमठ के हजारों प्रभावित परिवार ही नहीं बल्कि उत्तराखण्ड सरकार भी उस बैठक पर टकटकी लगाये बैठी थी। उस बैठक में उत्तराखण्ड और इस मामले में अध्ययनरत सभी विशेषज्ञ संस्थानों के प्रतिनिधि बुलाये गये थे।

इन विशेषज्ञ संस्थानों को बैठक में अपने अध्ययन की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करनी थी। साथ ही जोशीमठ के सुरक्षित पुनर्वास पर भी चर्चा होनी थी। राज्य सरकार को उम्मीद थी कि बैठक के निष्कर्षों के आधार पर एमडीएमए पुनर्वास के लिये एक पैकेज भी घोषित करेगा।

एनडीएमए के नियमों के अनुसार इस तरह की आपदा की स्थिति में केवल आवासीय भवनों, घरेलू सामान के नुकसान, खेतों और बगीचों के नुकसान आदि के लिये ही मुआवजे का प्रावधान है। इसमें होटल, दुकान या किसी भी आर्थिक गतिविधि वाले व्यावसायिक केन्द्र के नुकसान के लिये मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। एनडीएमए के नियमों में व्यावसायिक केन्द्रों को मुआवजे से बाहर रखा गया है।

यह प्रावधान सभवतः इंश्योरेंस की व्यवस्था के कारण रखा गया है। जबकि जोशीमठ बदरीनाथ यात्रा का बेस होने के साथ ही पर्यटन और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। वहां कई मंजिले होटलों के अलावा लोगों ने यात्रा सीजन में भीड़ को देखते हुये घरों पर ही यात्रियों के ठहरने के लिये कमरे बनाये हुये है। छोटे दुकानदरों, ढाबों और खोमचों का कोई बीमा नहीं है।

अगर एनडीएमए के प्रावधानों से मुआवजा बांटा जाता है तो जनाक्रोश भड़कने का अंदेशा है। वहां लोग पहले ही आक्रोशित हैं और निरंतर धरने प्रदर्शन चल रहे हैं। मुआवजे के मुद्दे के अलावा गुस्से का कारण जोशीमठ संकट पर चेतावनियों के बावजूद सरकार का चुप बैठे रहना भी है और अब जब कि जोशीमठ का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा धंस गया तो सरकारी तंत्र सक्रिय होकर बचाव के प्रयास कर रहा है।

अब तक राज्य सरकार प्रभावित 233 भूस्वामियों और लगभग 105 किरायेदारों को लगभग 4 करोड़ की आर्थिक सहायता दे चुकी है। इसमें मूल निवासियों को डेढ लाख और किरोदारों को 50-50 हजार की सहायता शामिल है। एनडीएमए के नियमों के अनुसार राज्य सरकार पहले ही मानकों से अधिक धन दे चुकी है।

एनडीएमए के नियमों में पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त आवासीय भवन का मुआवजा पहाड़ी क्षेत्रों में 1,30,000 रुपये प्रतिघर और मैदानी क्षेत्र में 1,20,000 प्रति घर तय है। आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त पक्के घर का मुआवजा 65,000 रुपये तथा कच्चे घर का 40,000 रुपये तय है। मकानों के साथ ही क्षतिग्रस्त झोपड़ी के लिये 8000 रुपये तथा पशुओं के बाड़े के लिये 3000 रुपये का मुआवजा तय है।

इसी तरह बाढ़ की स्थिति में 3 सेमी तक गाद हटाने के लिये अधिकतम 18,000 रुपये और न्यूनतम 2200 रुपये तय है। जोशीमठ में बाढ़ नहीं आयी, इसलिये गाद का सवाल ही नहीं। मगर वहां गहरी और चौड़ी दरारों के कारण खेत ही बेकार हो गये हैं। हल चलाते समय हल और बैल दोनों ही दरारों और गड्ढों में फंस सकते हैं। जमीन भी खिसक रही हो तो फिर खेत कैसे सुरक्षित रह सकते हैं।

मुआवजे में बागवानी फसलों के लिये वर्षा सिंचित क्षेत्रों में 8,500 रुपये प्रति हेक्टेअर अधिकतम और 1,000 रुपये न्यूनतम तय है। इसी तरह सुनिश्चित सिंचित क्षेत्रों में अधिकतम मुआवजा 17,000 और न्यूनतम 2,000 रुपये है। बारामासी फसलों, एग्रो फारेस्ट्री (अपने खेतों में वृक्षारोपण) पर अधिकतम 22,500 और न्यूनतम 2,500 रुपये प्रति हेक्टेयर है।

ऐरी, मलबरी, और टसर के लिये 6,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और मूंगा के लिये 7,500 प्रति हेक्टेयर तय है। अगर सरकार इस हिसाब से मुआवजा बांटती है तो उसे भारी जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। करोड़ रुपये तक के मकान के लिये 1 लाख 30 हजार दोगे तो लोग भड़केंगे ही।

भू-धंसाव के कारण बरबाद हो रहे जोशीमठ में 30 जनवरी तक 863 मकानों पर दरारें और केवल 181 को असुरक्षित घोषित किया गया था। सरकारी भाषा में मकानों को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त घोषित नहीं किया गया है। सरकार द्वारा जो एक्सग्रेसिया दिया जाना है वह क्षति के आधार पर ही दिया जाना है।

जिन मकानों के नीचे धरती खिसक रही हो उनमें चाहे जितनी और जैसी भी दरारें हो, उन्हें कैसे सुरक्षित या आंशिक क्षतिग्रस्त माना जा सकता है? इसलिये जितने भी मकान भू-धंसाव के क्षेत्र में हैं वे सभी खतरे में हैं और उनको पूर्ण क्षतिग्रस्त ही माना जा सकता है।

बदरीनाथ में मास्टर प्लान के तहत निर्माण कार्य के लिये सरकार ने पुराने मकान, सराय और होटल और निजी आवास आदि ध्वस्त करा दिये। इसलिये जोशीमठ के आपदा प्रभावित अपने लिये भी बदरीनाथ का जैसा मुआवजा और पैकेज चाहते हैं। कुछ लोग टिहरी बांध विस्थापितों जैसा पैकेज देने की बात कर रहे हैं। मगर राज्य सरकार आर्थिक रूप से उस स्थिति में नहीं है।

बदरीनाथ में भारत सरकार के हिसाब से और उसी के परिव्यय से काम हो रहा है। टिहरी में बांध बनाकर प्रतिदिन अरबों रुपये के राजस्व अर्जित करने के लिये लोगों को विस्थापित किया गया। इसलिये टीएचडीसी के लिये मुआवजे की मुंहमांगी रकम देना मुश्किल नहीं था। किसी बड़े प्रायोजन के लिये हुये पुनर्वास और आपदा के कारण पुनर्वास के नियम बिल्कुल अलग होते हैं।

जोशीमठ में एनडीएमए के 10 अक्टूबर 2022 को संशोधित नियमों और मानकों के अनुसार ही मुआवजा दिया जाना है। एनडीएमए केवल जोशीमठ के लिये अपने नियमों से बाहर नहीं जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो सारे देश में उसी हिसाब से आपदा मुआवजा देना होगा। अगर राज्य सरकार अपनी ओर से मुआवजे की अतिरिक्त राशि देती है तो आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील उत्तराखण्ड में अन्य स्थानों में भी उतना ही मुआवजा देना पडे़गा।

उत्तराखण्ड में हर साल भूस्खलन, त्वरित बाढ़, बिजली गिरने, एवलांच जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती रहती हैं। भूकम्प का खतरा तो हर समय मंडराता ही रहता है। अगर बदरीनाथ के पैटर्न पर मुआवजा दिया गया तो प्रदेश भर में आपदा प्रभावितों को उसी पैटर्न पर मुआवजा दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में मुआवजे के मानकों में आम लोगों की आजीविका को अवश्य शामिल किया जाना चाहिये।

(उत्तराखंड से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की रिपोर्ट)

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