रायपुर। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का मेडिकल कालेज, चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कालेज पिछले साल काफी सुर्ख़ियों में बना रहा। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच इस निजी मेडिकल कालेज का अधिग्रहण आखिरकार 29 जुलाई 2021 को सदन से कराने में सफलता प्राप्त कर ली थी। ऐसा माना जा रहा था कि सरकार को इसके लिए प्रति वर्ष उसकी मूल लागत से दुगुनी कीमत अर्थात 140 करोड़ रूपये चुकाने होंगे।

काफी हो-हल्ले के बाद प्रदेश में इस विषय पर सरगर्मी तो कम हो गई, लेकिन पिछले 6 माह से इसके पूर्व कर्मचारी धरना-प्रदर्शन करते आ रहे हैं। इसके पीछे की वजह निजी मेडिकल कालेज के पुराने कर्मचारियों की बर्खास्तगी है। इस पूरे विवाद और आज इस मेडिकल कालेज के पुराने कर्मचारी किस हाल में हैं, इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है।
असल में दुर्ग में इस मेडिकल कालेज की स्थापना वर्ष 2013 में की गई। इस मेडिकल कालेज का नाम चंदूलाल चन्द्राकर मेमोरियल हॉस्पिटल था जिसके निदेशक मंगल प्रसाद चंद्राकर असल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दामाद, क्षितिज चंद्राकर के चाचा बताये जाते हैं। चन्दूलाल चंद्राकर कांग्रेस के दुर्ग से सांसद रहे हैं, और केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं, उनकी मौत के बाद उनकी याद में इस अस्पताल की स्थापना की गई थी। इसके लिए भारी ऋण लिया गया था, लेकिन बाद में यह विवाद में उलझ गया। मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने 2018 में इसकी मान्यता भी रद्द कर दी थी, जिसके बाद अस्पताल ने राज्य सरकार से इसके अधिग्रहण की सिफारिश की थी।
28 जुलाई को अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री बघेल ने तब कहा था कि छात्रों के अभिभावकों के साथ चर्चा में उन्हें आश्वस्त किया है कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखा जायेगा। इसके लिए आवश्यक कदम राज्य सरकार द्वारा उठाये जायेंगे। इस बयान के अगले ही दिन सदन में बिल के जरिये इस कालेज का अधिग्रहण कर लिया गया, हालांकि इस विषय में अनियमितता और फेवर का आरोप विपक्ष की ओर से जमकर लगाया गया। लेकिन इस विधेयक के साथ ही इसके कर्मचारियों का भविष्य भी इस मेडिकल कालेज से हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया था, जिसके बारे में वे पूरी तरह से अंजान थे। असल में विधेयक में संस्थान में मौजूदा कर्मचारियों को हटाकर नई सरकारी भर्तियों का ऐलान था।

आज उन संघर्षरत कर्मचारियों को आंदोलन करते 6 महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन राज्य इस बारे में पूरी तरह से मौन है। जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन के नेता देवराज साहू ने जनचौक संवावदाता को बताया “उनका यह आंदोलन आगे भी लोकतांत्रिक तरीके से जारी रहेगा। जब तक सभी 101 कर्मचारियों को फिर से बहाल नहीं किया जाता है, यह आंदोलन नहीं रुकेगा।” सीसीएम मेडिकल कॉलेज के मेन गेट के बगल में ही कर्मचारियों ने एक पंडाल बना कर रखा है, जहाँ से वे अपना धरना जारी रखे हुए हैं।
क्या है पूरा मामला?
पिछले साल राज्य सरकार के द्वारा दुर्ग के कचंदुर में चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण के बाद वहां पर पहले से कार्यरत कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया था। बर्खास्त कर्मचारियों में से ही एक धनुष साहू ने बताया कि वे उस समय से मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हैं जब बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन भी पूरा नहीं हुआ था। शुरुआत में बिल्डिंग के निर्माण कार्य को भी हम लोग ही देखते थे। मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस का कोर्स चालू हो रहा था, जिसके लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) की टीम की विजिट से पहले एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट की स्थापना अनिवार्य थी। इसके साथ ही कम से कम 300 बेड का हस्पताल भी चालू हालत में होना अनिवार्य था, जिसके आधार पर मेडिकल कॉलेज को मान्यता मिलनी थी।

धनुष साहू पूरी कहानी आगे बताते हैं, “2015 तक एमसीआई से मान्यता मिली हुई थी। यहां एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स आधे छत्तीसगढ़ प्री-मेडिकल टेस्ट और आधे मैनेजमेंट कोटा से भरे जाते रहे। मैनेजमेंट कोटा के लिए सीजीमेट का एक टेस्ट करवाकर अनाप-शनाप पैसा लेकर छात्रों की भर्ती की जाती थी। 2016 में मोदी सरकार द्वारा नीट के माध्यम से भर्ती की अनिवार्यता के बाद मैनेजमेंट कोटे की संभावना लगभग समाप्त हो गयी। और मेडिकल काउन्सिल को भी कालेज से कई शिकायतें थीं। 2018 से कॉलेज मैनेजमेंट राज्य सरकार से अधिग्रहण करने हेतु पत्र व्यवहार करने लगी और धीरे धीरे इसकी प्रक्रिया शुरू हुई, जिसका अंतिम परिणाम सितम्बर 2021 में देखने को मिला।”
यूनियन अध्यक्ष कलादास डहरिया सवाल उठाते हैं “जब अधिग्रहण करना ही था तो कर्मचारियों को क्यों अलग किया गया? यह कर्मचारियों के साथ सरासर खिलवाड़ और धोखा है।”
अधिग्रहण और कर्मचारियों का सवाल
28 जुलाई 2021 छत्तीसगढ़ राजपत्र में प्रकाशित चंदूलाल चंद्राकर स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, दुर्ग (अधिग्रहण) विधेयक, 2021 को सितंबर में लागू करते हुए राज्य की बघेल सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। लेकिन इसके कंडिका 12 (1-3) के अनुसार कोई व्यक्ति यदि सरकार में निहित होने के पूर्व मेडिकल कॉलेज में था, भले ही वह नियमित सेवा, संविदा सेवा में रहा हो, या आउटसोर्स द्वारा कार्यरत हो, वह सरकार की सेवा में रहने का कोई दावा नहीं करेगा। ऐसे कर्मचारियों के वेतन अथवा अन्य देय राशि के भुगतान के लिए, सरकार की कोई देयता नहीं होगी। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति का पूर्व में की गई सेवा के संबंध में देय राशि लंबित है, तो उन्हें पूर्व स्वामियों से उक्त राशि की वसूली का अधिकार होगा।
इस तरह सरकारी फरमान के माध्यम से 101 कर्मचारियों को नए मैनेजमेंट ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसमें नर्स, ऑफिस स्टाफ, लैब तकनीशियन, ओटी तकनीशियन, ड्राइवर, वार्ड अटेन्डेन्ट, कंप्यूटर ऑपरेटर, एक्स-रे तकनीशियन, इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, गार्ड, सफाई कर्मचारी इत्यादि शामिल थे।
अत्यंत गरीबी में जीवन बिता रही परमिला यादव यहां सफाई का काम करती थीं। यही उनके आसरे का एकमात्र सहारा था। अन्य कर्मचारियों में अनीता साहू, राजकुमारी साहू, शीला साहू और ममता देशलहरा का भी यही हाल है। ममता बताती हैं “यहां इतने साल काम करने के ईनाम के रूप में शायद सरकार ने हमें बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसा करना हम सबको मौत के मुंह में धकेलने के समान ही है।”

मेडिकल कॉलेज की पूर्व महिला गार्ड सिम्हाचलम के अनुसार “कुल मिलकर हमको अधिक तकलीफ में डालना ही इस अधिग्रहण का उद्देश्य रहा। जब सरकारी होने की बात चल रही थी तब मैनेजमेंट हमको बताता था कि आप लोग अब जल्द ही सरकारी कर्मचारी बन जायेंगे। हम लोगों को भी लगा कि 4-5 हजार की नौकरी से हमारी स्थिति अब बेहतर होगी। लेकिन यहां तो पूरा खेल ही अलग निकला।”
संगठन की उपाध्यक्ष दीपा रंधावा यहां लैब तकनीशियन के रूप में काम करती थीं, और फर्माश्यूटिकल में आगे पढ़ाई करने का उनका विचार था। वे कहती हैं, “शुरुआत में 4000 में से कट-पिटकर 3500 मिलता था, और 6 सालों में बढ़कर 7500 हुआ, जिसमें से 6500 रूपये ही हाथ में आते थे, पर अब सारा सपना मटियामेट हो गया। लेकिन अपने हक़ अधिकार के लिए हम लड़ेंगे।”
देवराज साहू 2014 से यहां कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थे। एक भूमिहीन परिवार के देवराज आज काफी कठिन परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं। वे बताते हैं, “शुरुआत में तनख्वाह 6500 थी और अंतिम सैलरी 11000 बनी, जो कट-पिटकर 9500 मिलता था। 3 सितंबर के बाद से सब कुछ चला गया। कहाँ तो आस थी कि अधिग्रहण के बाद सरकारी नौकरी हो जायेगी तो ये दिन बहुरेंगे। हमारे साथ ऐसा अन्याय हमारी ही राज्य सरकार ने क्यों किया?”
इसी तर्ज पर धनुष साहू बताते हैं कि उनकी नियुक्ति 8000 में हुई थी, जो अंत में जाकर 11000 तक बढ़ा, जिसमें से 9800 हाथ में आता था।
खटखटाया न्यायालय का दरवाजा
इस बीच मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने 176 नर्सिंग पदों की भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया। इस भर्ती के खिलाफ जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज कर्मचारी संघ ने याचिका लगाई। उच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब माँगा, जो कोर्ट के अनुसार संतोषजनक नहीं रहा। इस सन्दर्भ में हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया है।
संघ की वकील शालिनी गेरा ने बताया कि “भर्ती पर रोक लगाने के लिए स्टे आर्डर मिला है। अधिनियम को ध्यान से पढ़ने और अध्ययन करने पर पता चलता है कि अधिग्रहण का उद्देश्य एक कार्यात्मक कॉलेज का अधिग्रहण था। सरकार के द्वारा सार्वजनिक धन का उपयोग कर एक निजी संस्थान को अधिग्रहीत किया गया, तब क्या बिना कर्मचारी के खाली इमारत और उपकरण को ही आप कार्यात्मक संस्थान मानेंगे? कोई भी संस्थान कार्यात्मक तभी होता है जब वह वास्तव में कार्यरत हो, जिसके लिए स्टाफ का होना जरूरी है। अन्यथा उसे एक मृत संस्था करार देंगे। सरकार ऐसे कैसे कर्मचारियों को अलग कर एक संस्थान को कार्यरत मान सकती है?”
आंदोलन जारी रहेगा
संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि सीएम मेडिकल कॉलेज के सरकारी अधिग्रहण के बाद यहां से निकाले गए पूर्व कर्मचारी लगातार आंदोलनरत हैं। उन्होंने पहले शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई लड़ी। इस बीच जनवरी माह में यूनियन के कार्यकर्ता निरंतर आमरण अनशन पर थे, जिसके बाद 2 फरवरी से यूनियन के महासचिव सुमित परधनिया अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठ गए।

अध्यक्ष कलादास डहरिया के अनुसार 7 तारीख को प्रशासन और आंदोलनकारियों के एक प्रतिनिधि मंडल के बीच कलेक्ट्रेट ऑफिस में वार्ता हुई, जिसमें आंदोलनरत कर्मचारियों के दस्तावेजों को स्वास्थ्य सचिव के निर्देशानुसार अगले दो दिनों में जमा करने के लिए कहा गया, जिससे कि भर्ती प्रक्रिया के लिए दस्तावेजों का आकलन किया जा सके। इस आश्वासन के आधार पर 7 तारीख शाम 6:00 बजे तहसीलदार ने जेवरा सिरसा थाना प्रभारी की उपस्थिति में सुमित परधनिया को जूस पिलाकर आमरण अनशन तुड़वाया। प्रतिनिधिमंडल ने यह स्पष्ट किया कि दस्तावेज भेजने के पश्चात कार्यवाही नहीं होने पर लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन जारी रखेंगे।
इससे पहले 6 तारीख को आंदोलनकारियों और पुलिस प्रशासन के बीच काफी गहमागहमी का माहौल रहा और कर्मचारियों ने उनकी मांग पूरा हुए बिना आंदोलन से उठने से इंकार कर दिया।
सिम्हाचलम कहती हैं “बिना सैलरी के पिछले चार-पांच माह से आंदोलनरत हैं और घर की माली स्थिति और भी बिगड़ गयी है। अस्पताल प्रबंधन और सरकार हमारी कोई भी गुहार नहीं सुन रही है। हमने कलेक्टर, मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल सभी को आवेदन दिया है। कई बार सड़कों पर रैली, धरना प्रदर्शन किया, पर केवल हताशा ही हाथ लगी।”
आंदोलन को विभिन्न मानव अधिकार संगठनों, ट्रेड यूनियन संगठनों और किसान संगठनों ने भी अपना समर्थन दिया है। बघेल सरकार के लिए अपनों पर करम और प्रदेश के कर्मचारियों पर सितम ढाने की यह अदा भविष्य में कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है, और सत्ता में आने को बैचेन भाजपा जो अभी खामोश है, इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना सकती है।
-छत्तीसगढ़ से गोल्डी एम. जॉर्ज की रिपोर्ट