Sunday, April 28, 2024

महिला जन संवाद यात्रा: हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अस्मिता, हमार अधिकार

जौनपुर। “बात करें महिलाओं के अधिकार और आजादी की तो महिलाएं आज भी लाचारी भरा जीवन जीने को बाध्य हैं। उन्हें कहीं घूंघट की ओट में तो कहीं पुरुष सत्ता के पीछे चलना पड़ता है। अधिकार होने के बाद भी वह मुखौटा बनी हुई नज़र आती हैं।” यह कहते हुए पूनम तमाम उदाहरण देती है। वह “ग्राम पंचायतों से लेकर देश की सर्वोच्च पंचायत की रहनुमाई करने वाली उन महिला जनप्रतिनिधियों का भी बखूबी उल्लेख करना नहीं भूलती हैं जो कहने को जनता द्वारा चुनी हुई जनप्रतिनिधि होने के बाद भी उनके सारे दायित्वों की कमान उनके पति यानी पुरुष सत्ता के पास होती है।”

पूनम की बातों का समर्थन करते हुए सौहार्द फेलो नीरा आर्या कहती हैं महिला अधिकार की बातें खूब होती हैं, लेकिन कहीं-कहीं महिलाओं के अधिकार और अस्मिता में महिलाओं को खुद से भी लड़ना पड़ जाता है। महिलाओं के हक़ अधिकार की बात किसी पर्व विशेष पर ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह हर दिन हर समय होनी चाहिए। महिलाओं के शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा “जब तक महिलाएं शिक्षित नहीं बनेगी तब तक वह जागरूक नहीं हो सकती। जागरूकता के साथ-साथ शिक्षा बहुत बड़ी महिला के विकास की कुंजी है।”

जन संवाद यात्रा में कई गांवों की महिलाएं हुई शामिल

आधी आबादी की आजादी, अधिकार, अस्मिता पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में 13 मार्च से शुरू होकर 31 मार्च 2024 तक चलने वाले कार्यक्रम में विभिन्न संगठनों के साझा मंच द्वारा महिलाओं किशोरियों के जनसंवाद में दमदारी के साथ आवाज बुलंद की गई।

जौनपुर जनपद के केराकत विकास खंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम छितौना में दिशा फाउंडेशन कबीर पीस सेंटर के साथ ही ग्लोबल कैंपेनिंग दलित वूमेन एवं तारा एजुकेशनल ट्रस्ट ने संयुक्त रूप से “हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अस्मिता, हमार अधिकार” विषय महिला जन संवाद यात्रा का पहला पड़ाव संपन्न हुआ। जन संवाद यात्रा के दौरान कई गांवों की महिलाएं इसमें शामिल हुईं जिसमें शामिल महिलाओं ने अपने जीवन के अनेक पहलुओं पर खुलकर चर्चा किया। चर्चा के दौरान पूनम ने अपनी बात रखते हुए बताया कि “समाज में जिसके पास धन और संपत्ति है, वहीं सब कुछ करता है, और निर्णय भी वहीं करता हैं। महिलाएं सिर्फ पुरुषों की सेवक भर हैं।”

दरअसल, आधी आबादी की आजादी, अधिकार, अस्मिता पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में 13 मार्च से शुरू होकर 31 मार्च 2024 तक चलने वाला यह साझा जन संवाद यात्रा जौनपुर के विभिन्न क्षेत्रों भागों मसलन, करंजाकला, केराकत, मुफ्तीगंज विकास खंड क्षेत्र में चलाया जा रहा है जहां दिशा फाउंडेशन कबीर पीस सेंटर के साथ ही ग्लोबल कैंपेनिंग दलित वूमेन एवं तारा एजुकेशनल ट्रस्ट के संयुक्त प्रयासों से विभिन्न गांवों बस्तियों में यात्रा के जरिए महिलाओं, किशोरियों, छात्रोंओ को जागरूक और शिक्षित बनाने के क्रम में उनके अधिकारों पर भी खुलकर चर्चा विमर्श किया जा रहा है। इसमें गांव की उन महिलाओं, किशोरियों को खुलकर बोलने अपनी बात रखने की आजादी दी जा रही है जिन्हें घरों में बोलने की मनाही है उन्हें भरपूर अवसर प्रदान किया जा रहा है कि वह बोले और जाने भी वह कहा और किस प्रकार से अपनी बात को रख और कह सकती हैं।

महिलाओं के श्रम का कोई मोल नहीं होता

साधना यादव ने कहा “गांव महिलाएं सबसे ज्यादा श्रम करती हैं, सही तौर पर देखा जाए तो खेती किसानी से लेकर घर आंगन तक सबसे अधिक लगाव यदि किसी का है तो वह महिला का ही हैं, जो घर में सबसे अधिक श्रम करती है, लेकिन उसके श्रम का कोई मोल नहीं होता हैं।”

शोभना स्मृति ने अपनी बात रखते हुए कहा कि “संविधान ने जो भी अधिकार दिए वह भी हमसे छिना जा रहा है, खास कर महिलाओं के ऊपर हर तरफ से हमले किए जा रहे, सावित्री बाई फुले से शुरु हुई महिलाओं के हक की लड़ाई आज पूरे भारत में फैल गयी है, हम दुनियां में बराबरी और अमन, चैन की स्थापना तभी कर सकते हैं जब हमें बराबरी का अधिकार मिल जायेगा। हमारी लड़ाई देश के साथ ही पूरी दुनियां में न्याय और शांति की स्थापना की लड़ाई हैं, महिला हमेशा अपनी बात को मनवाने के लिए शांति और अहिंसा से लड़ी है, प्यार और वात्सल्य औरत से ही मिलता हैं।”

वहीं बुजुर्ग महिला मीरा देवी ने कहा कि “सत्तर साल से हम यहीं माटी में अपन जीवन खपा देहली, लेकिन अभी तक हमरे पास कुछ भी नाहीं हौ? जो जमीन जयादात है वह सब बेटों और पति के ही नाम से है। हम उसी में ही अपनी खुशी और सुख देखती रही, लेकिन कोई भी जीवन का सुख और खुशी नहीं मिली।” कामरेड बचाऊ राम ने कहा कि समाज जैसे जातियों, धर्मों, संप्रदायों में बटा है ठीक उसी प्रकार से महिलाएं भी बंटी हुई हैं। इसी बटवारे की वजह से शोषण भी मौजूद है। समाज में विशेष कर जितने भी श्रम और निर्माण करने वाले हैं, वह चाहे महिला हो चाहे पुरुष, वह किसी भी जाति धर्म के हों भाषा, क्षेत्र के हों सभी को एक साथ आकर अपने हकों और अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी पड़ेगी।”

संविधान पर बढ़ता खतरा

जनसंवाद यात्रा में सामाजिक कार्यकर्ता संतोष पांडे ने मौजूदा दौर में संविधान पर बढ़ते खतरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि “हम अपने जन प्रतिनिधियों से सवाल भी नहीं पूछ पाते हैं, वे पांच साल के बाद ही दिखाई देते हैं तो आखिरकार क्यों और किस लिए? उन्होंने वतर्मान में आवाज उठाने पर शासन सत्ता के प्रहारों की चर्चा करते हुए कहा “वर्तमान में न्याय और हक की बात भी यदि आप करोगे तो आप ‘अपराधी, राष्ट्रद्रोही’ करार दे दिए जाओगे।” आकांक्षा ने महिलाओं से जुड़ी कविता सुना कर महिलाओं के अधिकार की बात को रखा।

जनसंवाद यात्रा कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता, सौहार्द फेलो नीरा आर्या ने संविधान में महिलाओं के अधिकारों पर बात करते हुए कहा कि “समाज में सबसे खराब स्थिति महिलाओं की हैं। महिलाए घर से बाहर तक सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं, इसके बाद भी महिलाएं अपेक्षित रहती हैं। उन्हें कोई समान भी लेना हो तो वह महिला पति और बेटे की अनुमति के बैगर नहीं ले सकती हैं, जबकि संविधान ने सभी को बराबरी का अधिकार दिया है। बावजूद इसके यह असमानता भरा भेदभाव क्यों?

कार्यक्रम का संचालन करते हुए सविता ने महिलाओं के साथ असमानता भरें बर्ताव ‘शहरीकरण आबोहवा के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते प्रभाव पर खुलकर अपनी बात रखा। इसी तरह पूनम, अंबिका, चंद्रकला, सुषमा, करिश्मा, रजिया, सीमा, लाल प्रकाश राही, लीला मौर्य, मंजू, सारदा, सीता, दयाराम, कैलाश, रामजीत अंस समेत अन्य ने भी अपनी बातों को साझा करते हुए महिलाओं के अधिकार अस्मिता पर चर्चा करते हुए महिलाओं को शिक्षित बनाने को सर्वोपरि माना कहा शिक्षक बने बिना अधिकार की बात करना बेमानी है। खुद शिक्षित बने दूसरे को भी प्रेरित करें, तभी जाकर असमानता की खांई को पाटा जा सकता है और समता मूलक समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।

जन संवाद यात्रा में सैकड़ों की संख्या में महिलाओं समेत दर्जनों पुरुष और युवा भी शामिल हुएं। अंत में घर-घर शिक्षा का दिया जलाएंगे, ‘नशाखोरी-कुप्रथाओं को दूर भगाएंगे’ का नारा लगाते हुए सभी को संकल्प दिलाया गया कि वह अपने परिवार को नशाखोरी-कुप्रथाओं जैसी जकड़नों से मुक्त कराकर शिक्षित और संस्कारित बनायेंगे।

(जौनपुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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