झारखंड में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना : चढ़ रहा भ्रष्टाचार की भेंट

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झारखंड। उल्लेखनीय है कि 2001 की जनगणना के आधार पर 30 नवंबर, 2006 को सच्चर कमेटी की 403 पन्नों की एक रिपोर्ट लोकसभा में पेश की गई थी। सच्चर कमेटी का गठन साल 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री मरहूम डा. मनमोहन सिंह ने किया था।

इस कमेटी की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर ने की थी। इस रिपोर्ट में भारत में मुस्लिम समुदाय के पिछड़ेपन को उजागर किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि मुस्लिम समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार सरकारी नौकरियों में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व सिर्फ़ 4.9 प्रतिशत था। रिपोर्ट में यह भी तथ्य सामने आया था कि बैंक लोन लेने में मुस्लिम समुदाय को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के समावेशी विकास के लिए सुझाव और समाधान दिए गए थे।

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि भारतीय मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति दलितों से भी बदतर है। यह रिपोर्ट ने एक कड़वी सच्चाई को उजागर करते हुए बताया था, जिसमें देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा और आर्थिक स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी।

इसके परिणामस्वरूप, यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने मुसलमानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए एक 15 सूत्री कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से उनके आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर बदलाव लाना था। इस योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना, जो 2008 में शुरू की गई थी।

जब यह योजना शुरू हुई, तो आम जनता के बीच इसका प्रचार बहुत सीमित था। झारखंड राज्य में उर्दू अखबार कौमी तंज़ीम के आखिरी पन्ने पर इस योजना का एक छोटा सा विज्ञापन छपा था, लेकिन इसके बावजूद सामान्य जनता को इस योजना के बारे में जानकारी नहीं मिल पा रही थी।

इन हालातों को देखते हुए झारखंड के बोकारो जिला के एक समाजसेवी और यूनाइटेड मिल्ली फोरम के जनरल सेक्रेटरी अफजल अनीस ने फोरम के बैनर तले इस योजना को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की पहल की।

यूनाइटेड मिल्ली फोरम (यूएमएफ़) का गठन 2004 में रांची विश्वविधालय के अवकाश प्राप्त एक प्रोफेसर डा. हसन रजा की पहल पर झारखंड की राजधानी रांची के बरियातू मैदान में आयोजित एक कार्यशाला में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर स्व. किशन पटनायक शामिल हुए थे।

फोरम का मुख्य उद्देश्य समाज में समानता, न्याय और इंसाफ की स्थिरता को बढ़ावा देने को लेकर हुआ था। इसके गठन से पहले झारखंड के रामगढ़ जिले का चितरपुर में एक महत्वपूर्ण वर्कशॉप आयोजित की गई थी, जिसमें मुसलमानों के साथ-साथ कई हिंदू दानिश्वर भी शामिल हुए थे।

फोरम के मुख्य उद्देश्य पर अफ़जल अनीस बताते हैं कि हमारा मकसद मुस्लिम समाज में राजनीतिक जागरूकता चलाना और हर व्यक्ति को उसके अधिकारों की पूरी जानकारी और उसे प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाना है।

फोरम उन सभी लोगों के लिए खुला है जो इंसाफ की ख्वाहिश रखते हैं और समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के हक-हुकूक के लिए आवाज़ उठाते हैं। जो लोग हुकूके-इंसानी की लड़ाई लड़ रहे हैं, सूचना अधिकार की बात कर रहे हैं, और काम का अधिकार, भोजन के अधिकार जैसी बुनियादी जरूरतों को लागू करने की लड़ाई में शामिल हैं, वे सभी इस फोरम का हिस्सा बन सकते हैं।

यूएमएएफ में सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल हो सकते हैं। इसमें हिन्दू, मुस्लिम, आदिवासी, गैर-आदिवासी सभी वर्गों के लोग एक समान रूप से सदस्य बन सकते हैं। इसका उद्देश्य समाज में जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और सामाजिक विषमताओं को समाप्त करना है। यूएमएएफ का यह मानना है कि एकता और समानता के आधार पर ही समाज में असल विकास संभव है।

हालांकि, फोरम का उद्देश्य सभी वर्गों के लिए समानता और न्याय को बढ़ावा देना है, फिर भी मुस्लिम समाज पर विशेष ध्यान दिया गया है। दरअसल, मुस्लिम समुदाय को आज भी विभिन्न मोर्चों पर अन्याय और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

समाज के हाशिए पर रहने के कारण उन्हें सियासी और सामाजिक समानता में कमी महसूस हो रही है। यूएमएएफ का मानना है कि इस समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से सशक्त बनाना बेहद जरूरी है।

हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि फोरम सिर्फ मुस्लिम समाज के लिए काम करेगा, बल्कि इसका उद्देश्य समग्र रूप से समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ पहुंचाना है।

यूएमएएफ के दीर्घकालिक दृष्टिकोण में एक ऐसा समाज बनाना है, जिसमें हर व्यक्ति को उसके अधिकार प्राप्त हों, उसे समान अवसर मिलें, और उसके साथ भेदभाव न किया जाए। यह फोरम एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है, जिसमें हर किसी की आवाज़ सुनी जाए और उसे उसका हक मिले।

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद फोरम के पहल पर पर्चे छपवाए गए, जिन्हें विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों, चाय-गुमटी, बाजार व मस्जिदों में बांटा गया। जुमा के दिन मस्जिदों से इस योजना के बारे में एलान कराया गया, ताकि मुस्लिम समुदाय के लोग इस योजना की जानकारी हासिल कर उसका लाभ उठा सकें।

इसके अलावा, राज्य के विभिन्न जिलों में शिविरों का आयोजन किया गया, जहां छात्रों को निशुल्क रूप से छात्रवृत्ति के फॉर्म भरवाए गए। इस कार्य में राज्य सरकार के नोडल अधिकारियों और झारखंड राज्य अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम का भी सहयोग लिया गया।

इस जागरूकता अभियान का परिणाम काफी सकारात्मक रहा। राज्य के कई जिलों में छात्रवृत्ति की राशि छात्रों के खातों में आने लगी। इससे न केवल माता-पिता को अपने बच्चों को आगे पढ़ाने के लिए प्रेरणा मिली, बल्कि छात्रों में भी शिक्षा के प्रति एक नई ललक पैदा हुई।

अब छात्र अपनी मेहनत को और बढ़ाकर 50 प्रतिशत से अधिक अंक लाने के लिए प्रयास करने लगे। जो छात्र पहले आर्थिक कारणों से अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे, वे भी इस योजना का लाभ उठाकर अपनी शिक्षा पूरी कर सके।

कई ऐसे छात्र थे जिनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इस योजना से उन्हें सहारा मिला और उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। परिणामतः आज कई ऐसे छात्र सरकारी नौकरी कर रहे हैं और अपने परिवारों का नाम रोशन कर रहे हैं।

इस योजना का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा कि इसने मुसलमानों के बीच शिक्षा के महत्व को और भी स्पष्ट किया। शिक्षा से न केवल व्यक्ति की जीवनशैली बदलती है, बल्कि पूरे समाज में विकास की एक नई राह भी खोलती है।

जब एक समाज के सदस्य शिक्षित होते हैं, तो वे समाज की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना न केवल मुसलमानों के लिए एक उम्मीद की किरण बन कर आई, बल्कि इसने उनके शिक्षा के मार्ग को सरल और सुलभ बना दिया। यह योजना अब एक मिसाल बन चुकी है, जो यह सिद्ध करती है कि अगर सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो समाज के निचले तबके को भी शिक्षा और समृद्धि की ओर अग्रसर किया जा सकता है।

यूनाइटेड मिल्ली फोरम झारखंड की भूमिका

यूनाइटेड मिल्ली फोरम ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगठन ने राज्य के विभिन्न जिलों में इस छात्रवृत्ति योजना को प्रभावी रूप से लागू करने और लाभार्थियों तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया है। यूएमएफ़ के प्रयासों से हजारों छात्रों को इस योजना का लाभ मिला है, जिससे उनकी शिक्षा में स्थायित्व और सफलता के नए रास्ते खुले हैं।

योजना का उद्देश्य और लाभ

अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना का मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े और शिक्षा में कमजोर अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत छात्रों को विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियां मिलती हैं।

जैसे:-
1. प्री-मैट्रिक छात्रवृति योजना:-

यह योजना स्कूल के स्तर कक्षा प्रथम से दशम तक के  छात्रों को दी जाती है, जिससे उन्हें शिक्षा के प्रारंभिक स्तर पर ही मदद मिल सके।

2. पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना:-

आई.ए., बी.ए., एम.ए., डिप्लोमा इत्यादि उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली इस छात्रवृत्ति से अल्पसंख्यक छात्र अपनी पढ़ाई को जारी रखने में सक्षम होते हैं।

3. मेरिट-कम-मिन्स छात्रवृत्ति योजना:-

इस योजना के तहत उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र (मेडिकल, एल.एल.बी. इत्यादि) शिक्षा प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं।

यूनाइटेड मिल्ली फोरम झारखंड ने इस छात्रवृत्ति योजना को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगठन ने कई जिलों में जागरूकता अभियान चलाए, जिससे छात्रों और उनके परिवारों को इस योजना के लाभ के बारे में जानकारी मिली।

इसके अलावा, यूएमएफ़ ने विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जानकारी और आवेदन पत्र वितरण के लिए कार्यशालाएं आयोजित की, ताकि अधिक से अधिक छात्र इस योजना का लाभ उठा सकें।

फोरम के सदस्य और कार्यकर्ता स्थानीय समुदायों में गए और छात्रों को आवेदन प्रक्रिया, पात्रता मापदंड, और आवश्यक दस्तावेज़ों के बारे में मार्गदर्शन दिया। इस पहल ने कई छात्रों को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने का अवसर दिया, जो जिनके लिए पहले उच्च शिक्षा में दाखिला लेना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

सामाजिक प्रभाव और सफलता

यूनाइटेड मिल्ली फोरम की मेहनत और समर्पण से, झारखंड के अल्पसंख्यक छात्रों की शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इस योजना के माध्यम से छात्रों को न केवल आर्थिक सहायता मिली, बल्कि उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई। उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष किया, और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए यह एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बन गया।

यूनाइटेड मिल्ली फोरम की योगदान ने राज्य के अल्पसंख्यक छात्रों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोले हैं। उनके निरंतर प्रयासों और समर्पण से, यह योजना अधिक प्रभावी और सफल रही है। इसके माध्यम से, सरकार की योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंच रहा है और यह सामाजिक समरसता और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

फर्जीवाड़े और घोटाले की घटनाओं पर फोरम की भूमिका

भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे छात्रवृत्ति योजनाओं का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना था। इस योजना के तहत छात्रों को वित्तीय मदद दी जाती थी, जिससे वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें और समाज में अपना योगदान दे सकें।

लेकिन जब इस योजना में फर्जीवाड़े और घोटाले की घटनाएं सामने आईं, तो यह एक गंभीर चिंता का विषय बन गया, जिससे ना केवल योजना की साख पर सवाल उठे, बल्कि हजारों छात्रों को इसका सीधा असर भी हुआ।

झारखंड राज्य में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना में एक बड़ा घोटाला सामने आया जब कई विद्यालयों और अधिकारियों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्तियां जारी की जा रही थीं।

जिसकी जानकारी होते ही मिल्ली फोरम ने इसका पर्दाफाश किया। मामले का खुलासा होने के बाद, राज्य सरकार ने इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश दिए। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पहल पर एक विशेष टीम बनाई गई, जिससे घोटाले के आरोपों की सख्ती से जांच की जा सके।

राज्य के धनबाद जिले में एक बड़ा घोटाला सामने आया, जिसमें लगभग 9 करोड़ 99 लाख रुपए की धोखाधड़ी का मामला पकड़ा गया। इसके बाद, 96 स्कूलों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए और जिले के नोडल पदाधिकारी सह जिला कल्याण पदाधिकारी, और विभाग के लिपिक को निलंबित कर दिया गया।

यह घटनाक्रम झारखंड के प्रशासनिक तंत्र में एक खलबली का कारण बना और यह दिखाया कि किस तरह से कुछ जिम्मेदार लोग योजना का गलत लाभ उठा रहे थे।

नोडल पदाधिकारियों में डर और इससे छात्रों पर असर

इस घोटाले के उजागर होने के बाद, राज्य के सभी नोडल पदाधिकारियों के अंदर डर का माहौल बन गया। निलंबन और जांच की प्रक्रिया ने उन्हें इस योजना के तहत छात्रों के आवेदन सत्यापित करने में हिचकिचाहट और भय पैदा कर दिया। अब वे आवेदन पत्रों को सही तरीके से सत्यापित करने के बजाय डरने लगे कि कहीं कोई अनियमितता या धोखाधड़ी का मामला न बन जाए।

इस डर के कारण छात्रों के आवेदन सही तरीके से सत्यापित नहीं हो पाए, जिससे कई छात्रों को छात्रवृत्ति प्राप्त नहीं हो सकी। यह स्थिति उन हजारों छात्रों के लिए निराशाजनक साबित हुई, जो इस योजना के तहत शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर रहे थे।

यूनाइटेड मिल्ली फोरम के जनरल सेक्रेटरी अफजल अनीस बताते हैं कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजना एक महत्वपूर्ण सहारा है। यह योजना उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने और बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

लेकिन जब सत्यापन प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है, तो इसके परिणामस्वरूप कई छात्र छात्रवृत्ति से वंचित हो जाते हैं। यह उन छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है, जो पहले ही वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और जिन्हें इस योजना से काफी उम्मीदें थीं।

इस घोटाले ने न केवल प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाया, बल्कि योजना की सफलता और इसके उद्देश्य को भी कमजोर कर दिया। अफजल अनीस कहते हैं कि भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए चलाए जाने वाली छात्रवृत्ति योजनाएं शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है।

इन योजनाओं का उद्देश्य अल्पसंख्यक छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है, ताकि वे अपनी पढ़ाई को जारी रख सकें और समाज में एक सकारात्मक योगदान दे सकें। लेकिन इस योजना के संचालन में कई बाधाएं और समस्याओं के पैदा होने से छात्रों को इसका लाभ प्राप्त करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना की एक बड़ी समस्या यह है कि अधिकतर विद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों को इस योजना के बारे में जानकारी नहीं है।

छात्र जब छात्रवृत्ति के लिए ऑनलाइन आवेदन भरते हैं, तो कई बार विद्यालयों और महाविद्यालयों के पास सही जानकारी और संसाधनों का अभाव होता है, जिससे उनके द्वारा ऑनलाइन सत्यापन में देरी होती है या फिर सत्यापन पूरी तरह से नहीं हो पाता है। इसके कारण छात्रों का आवेदन समय पर प्रक्रिया में नहीं आ पाता है और वे छात्रवृत्ति से वंचित हो जाते हैं।
                                                                                                                                                                          अफजल अनीस बताते हैं कि यूनाइटेड मिल्ली फोरम (यूएमएफ़) ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए कई बार पहल की। जिसका नतीजा यह होता है कि यूएमएफ़ के प्रयासों के बाद यदि विद्यालय और महाविद्यालय सत्यापन प्रक्रिया को सही ढंग से पूरा कर भी देते हैं, तो फिर जिला नोडल पदाधिकारी के द्वारा सत्यापन में देरी की जाती है।

इसके बाद अंतिम समय में जब समय सीमा समाप्त हो जाती है, तो विद्यालय और महाविद्यालय से फिर से सत्यापन कराया जाता है, जिससे छात्रों के आवेदन की प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाती है।

इसके अतिरिक्त दूसरे राज्यों में पढ़ने वाले छात्रों के आवेदन को अक्सर सत्यापित ही नहीं किया जाता है। जब ये छात्र अपनी शिकायत लेकर जिला कल्याण पदाधिकारी के पास पहुंचते हैं, तो उन्हें यह बताया जाता है कि उनके आवेदन की जांच के लिए इ-मेल संबंधित जिले के उपायुक्त (जिलाधिकारी) को भेज दिया गया है।

इस स्थिति में छात्र और उनके परिवार वाले एक स्थान से दूसरे स्थान तक दौड़ते रहते हैं और अंततः वे छात्रवृत्ति से वंचित रह जाते हैं।

ऐसे मामलों के खुलासे के बाद यूनाइटेड मिल्ली फोरम ने बार-बार विभागीय अधिकारियों और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री से इस मुद्दे पर शिकायत की। संगठन ने समस्या को गंभीरता से उठाया और प्रशासन से सुधार की मांग की, लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

अब स्थिति यह हो गई है कि छात्र, छात्रवृत्ति के लिए आवेदन ही नहीं करना चाहते हैं। उन्हें यह अनुभव हो चुका है कि आवेदन करने के बाद भी यदि वे दौड़-भाग करें, तो अंत में उन्हें छात्रवृत्ति का लाभ नहीं मिलेगा। यह स्थिति छात्रों के बीच निराशा और असंतोष का कारण बन रही है।

कहना ना होगा कि जब छात्रों को इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो उनकी पढ़ाई और भविष्य प्रभावित होता है। यह स्थिति विशेष रूप से उन छात्रों के लिए गंभीर है, जो पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। वे इस छात्रवृत्ति योजना के माध्यम से अपने सपनों को पूरा करने की उम्मीद रखते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया की जटिलता और देरी के कारण उनका सपना टूट जाता है।

अफजल अनीस कहते हैं कि यूनाइटेड मिल्ली फोरम प्रशासन से इस समस्या को तुरंत सुलझाने के लिए कदम उठाने की मांग करता है, क्योंकि अगर यही स्थिति बनी रही तो न केवल छात्रों का हक मारा जाएगा, बल्कि समाज में इस योजना की विश्वसनीयता भी कमजोर हो जाएगी।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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