Tuesday, March 19, 2024

यूपी में दलितों की ज़मीन पर कब्जा होगा आसान, योगी सरकार ला रही नया कानून

यूपी में दलितों की जमीन को लेकर एक नई सुगबुगाहट देखने को मिल सकती है। योगी सरकार ने यूपी टाउनशिप नीति 2023 को हरी झंडी दे दी है। इसके तहत एससी, एसटी की जमीन लेने के लिए अब डीएम से परमिशन की जरूरत नहीं रहेगी।

सरकार का कहना है कि ऐसा लोगों की आवासीय ज़रुरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। इसके लिए मौजूदा दूसरे नियमों में भी संशोधन किया जा रहा है।

दरअसल सरकार ने ‘इंटीग्रेटेट टाउनशिप नीति-2014’में संशोधन करके नई ‘उत्तर प्रदेश टाउनशिप नीति-2023’तैयार की है और जल्द ही इस नीति को कैबिनेट की मंजूरी मिल सकती है।

वैसे इस नीति में कई और भी नियम हैं, जिन्हें बदला गया है लेकिन सबसे ज्यादा विवादों में अगर कुछ है तो यही प्रावधान है। ज़ाहिर है इस नए नियम को लेकर विरोध के स्वर उठने थे और उठे भी।

आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस आर दारापुरी ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि ”ये फैसला दलितों से उनकी ज़मीन छीनने की एक साजिश है। उन्होंने आगे कहा कि जिलाधिकारी की परमिशन का मकसद दलितों/आदिवासियों की जमीन को आसानी से खरीदने को रोकना था, जिससे कि उन के पास अपनी जमीन बची रहे जिसका उनके लिए बहुत महत्व है।

इससे होगा ये कि इनकी जमीन दूसरे लोग लालच या दबाव में खरीद लेंगे, जिससे कि ये तेजी से भूमिहीन हो जाएंगे”। उन्होंने आगे कहा कि- इससे पहले समाजवादी सरकार ने दलितों/ आदिवासियों की जमीन सिर्फ दलितों और आदिवासियों के ही खरीदने की शर्त को खत्म कर दिया था, इससे बड़ी तादाद में दलित-आदिवासियों की जमीन बिक गई थी।

अब अगर ये योगी सरकार डीएम की परमिशन खत्म करने से जुड़ा प्रावधान लागू कर देती है तो इससे बड़ी तादाद में ये वर्ग अपनी जमीन से हाथ धो बैठेंगे ।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूपी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने कहा है कि ”उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार अधिनियम 1950 के तहत कांग्रेस सरकार ने दलितों को ज़मीन का मालिक बनाने और उनके जमीनों की रक्षा के लिए यह कानून बनाया था। जिससे दलितों को दिए गए जमीन के पट्टे उनसे ऊंची जातियों के लोग नहीं छीन पाते थे।

दलितों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण में इस कानून का सबसे बड़ा योगदान है। अब प्रदेश सरकार फिर से दलितों की जमीनों पर कब्जा दिलाने के लिए इस कानून को बदल रही है। अब भाजपा के लोग दलितों की जमीन धमकाकर लिखवा लेंगे।

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी एक ट्वीट के जरिए इस फैसले पर आपत्ति दर्ज करवाई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने ही बनाए कानून को ठेंगा दिखाया है।

आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने इस बदलाव पर योगी आदित्यनाथ को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर वो जमीनी लड़ाई लड़ने को भी तैयार हैं।

एक ट्वीट के जरिए चंद्रशेखर ने कहा कि ”हमारे पुरखों ने धरती का सीना चीरकर जमीनों को उपजाऊ बनाया लेकिन राजाओं, सामंतों ने छल-बल से हड़प लिया।बाबा साहब ने आजादी के आंदोलन में जमीनों को वापस लेने का आंदोलन किया। देश की स्वतंत्र सरकार ने जमींदारी उन्मूलन करके दलितों, वंचितों के साथ न्याय करने का वादा किया था।”

एक और ट्वीट में चंद्रशेखर ने ये भी कहा कि-इसीलिए कांशीराम साहब ने कहा ” जो जमीन सरकारी है,वो जमीन हमारी हैं” लेकिन योगी सरकार का नया हुक्मनामा दलितों,आदिवासियों की खून पसीने से सींची गई जमीनों को शोषक सामंतों के हवाले करने की साजिश है। इसे हम नहीं होने देंगे। अपने पुरखों की जमीन हम लेकर रहेंगे। जमीन की लड़ाई जमीन पर लड़ेंगे।

पहले ये समझना भी जरूरी है कि नियम आखिर क्या थे और कैसे बदले ?

दरअसल यूपी में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 साल 2016 तक लागू था। जिसके तहत अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति को अपनी खेती की जमीन किसी गैर अनुसूचित जाति के व्यक्ति को बेचने के लिए जिलाधिकारी से मंजूरी लेना अनिवार्य है।

ये व्यवस्था 2016 से पहले लागू थी। इसके बाद 2016 में आई उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 98 (1)। जिसे उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियम, 2016 के प्रकाशन के साथ लागू किया गया था।

इसके मुताबिक अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाला कोई भी शख्स किसी भी गैर दलित को ना तो जमीन का बेच सकता है, ना गिफ्ट कर सकता है, ना गिरवी ना ही ट्रांसफर कर सकता है। ऐसा वो कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं कर सकता।

हालांकि पांच खास शर्तों के साथ ऐसा किया जा सकता है अगर-

  • जमीन का कोई जीवित उत्तरधिकारी ना हो
  • अगर शख्स किसी दूसरे जिले या राज्य में बस गया है, – या सामान्य रूप से दूसरे राज्य का निवासी हो गया हो
  • अगर शख्स या उसके परिवार का कोई सदस्य किसी घातक बीमारी से पीड़ित है
  • ज़मीन का मालिक कहीं दूसरे राज्य या जिले में जाकर बस गया हो
    अगर आवेदन की तिथि को आवेदक की ओर से ट्रांसफर की गई जमीन ऐसे हस्तांतरण के बाद 1.26 हेक्टेयर से कम नहीं हो जाती है।

दलितों की जमीन को खरीदने और बेचने को लेकर नियम इतने कड़े इसलिए थी कि पहले से ही कमज़ोर इस तबके को भूमिहीन होने से बचाया जा सके।

ऐसा देखने में आया है कि सामाजिक रूप से दबंग जातियां इनकी ज़मीन पर दबाव के तरीके इस्तेमाल कर इनकी जमीन हथिया लेती थीं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये सिर्फ दलित ही नहीं सभी किसानों के खिलाफ फैसला है।

इतिहासकार सुभाष कुशवाहा कहते हैं कि- बुनियादी रूप से ये फैसला शहरी क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण को और सरल बनाने के मकसद से किया गया है। इससे हर किसान को नुकसान होगा। जिसकी जमीन सरकार हड़प लेगी। कई बार दलितों की जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाता है।

अब बात करते हैं दलितों की। दलितों के पास वैसे भी नाम मात्र की जमीन है। ज्यादातर भूमहीन हैं। इसलिए उनकी जमीनें अधिग्रहित ना हों, इसके लिए पहले डीएम की इजाजत लेने का प्रावधान था। जिलाधिकारी परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर जमीन बेचने से रोक देता था।

अब एक बार फिर दलितों को जमीन से बेदखल किया जाना है। जमीनों का अधिग्रहण हर प्रकार से जनविरोधी नियम है। सरकार का यह नियम दलितों को दास बनाने में मदद करेगा, जो मनुस्मृति का विधान है।

भारत में दलितों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। कई सदियों तक इस वर्ग के साथ छुआछूत किया गया, भेदभाव किया गया। संविधान में मौलिक अधिकारों में इस तरह के प्रावधान किए गए जिससे कि ये भी समाज की मुख्य धारा के साथ जुड़ पाएं। लेकिन हालात ये हैं कि अभी भी क्रिमीलेयर को छोड़कर एक बड़ा वर्ग आज भी सामाजिक भेदभाव का दंश झेलने पर मजबूर है।

ऐसे में दलित जो कि पहले से ही भूमिहीन हैं, उन्हें और कमज़ोर बनाने के लिए भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। दलितों की जमीन पर भय दिखाकर और दबाव से कब्जा कर लिया जाता है, और ये तब भी होता था जबकि दलितों की जमीन को खरीदना कानूनन इतना आसान नहीं था। अब ज़रा सोचिए कि इस कानून के बाद ऐसा करना और कितना आसान हो जाएगा।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles