मनरेगा: लोहरदगा के कुड़ू प्रखंड में 18 हजार 88 जॉबकार्ड, साल भर में 202 लोगों को ही मिला सौ दिन का रोजगार

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लोहरदगा। मनरेगा योजना पहले ही प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान स्थापित करती रही है, जिसके कारण मनरेगा मजदूर परेशान रहे हैं। अब केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के बजट में की गयी भारी कटौती और उसमें किये गए तकनीकी बदलाव के चलते योजना से मजदूरों का मोहभंग हो रहा है।

दरअसल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली एनएमएमएस के द्वारा मज़दूरों की उपस्थिति दर्ज करने के साथ-साथ आधार आधारित भुगतान प्रणाली एबीपीएस को जरूरी कर दिया गया है जिससे मनरेगा मजदूर काम और अपनी मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं, साथ ही उनका मनरेगा योजना से मोहभंग होने लगा है।

यहां दोहराना होगा कि केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना मनरेगा जिसे 2 अक्टूबर 2005 को कानूनी जामा पहनाकर प्रत्येक वित्तीय वर्ष में गांव के एक परिवार को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी की गई थी।

अब स्थिति यह हो गई है कि मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने वाली “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (मनरेगा) से मजदूरों का मोहभंग होता जा रहा है।

काम करते मनरेगा कर्मी

इसी आलोक में बता दें कि वित्तीय वर्ष 2022-2023 में झारखंड के लोहरदगा जिले के कुड़ू प्रखंड की 14 पंचायतों में मनरेगा से निबंधित 18 हजार 88 जॉबकार्ड धारकों में महज 202 जाॅब कार्ड धारकों को एक साल में 100 दिन का रोजगार मिला है। अतः रोजगार की अनुपलब्धता के कारण कई निबंधित मजदूर रोजगार की तलाश में सपरिवार दूसरे प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं।आलम यह है कि मनरेगा की योजनाओं में मजदूर रोजगार नहीं करना चाहते।

वहीं दूसरी तरफ बड़ी मुश्किल से मनरेगा के तहत चयनित रोजगार सेवक, मनरेगा मेट तथा मनरेगाकर्मी मजदूरों को काम में लगा कर योजनाओं को समय पर पूरा करवाते हैं। लेकिन मजदूरों की मजदूरी का भुगतान दिलाने में सफल नहीं हो पाते। यही वजह है कि मजदूर मनरेगा योजना के तहत काम करना नहीं चाहते और रोजगार सेवक, मनरेगा मेट तथा मनरेगाकर्मी से पैसों के लिए झगड़ा तक कर बैठते हैं, जिसकी वजह से ये लोग भी मनरेगा योजना में विशेष रूचि नहीं लेते।

आंकड़े बताते हैं कि लोहरदगा जिले के कुड़ू प्रखंड की 14 पंचायतों में मनरेगा के तहत निबंधित जॉबकार्ड धारकों की संख्या 18,088 है। जबकि कुल निबंधित मजदूरों की संख्या 34,506 है।

इसमें आदिवासी मजदूरों की संख्या 8,394, दलित मजदूरों की संख्या 1,134, ओबीसी मजदूरों की संख्या 7,580, यानी इन मजदूरों कुल संख्या 17,108 है, वहीं अन्य श्रेणी के कुल मजदूरों की संख्या 17,398 है।  

निबंधित मजदूरों में पिछले वित्तीय वर्ष में काम मांगने के लिए 6,918 मजदूर परिवारों ने मनरेगा के कर्मियों को आवेदन दिया था, जबकि काम मिला 1,993 मजदूर परिवारों को।

काम करते मनरेगा कर्मी

प्रखंड के 14 पंचायतों में पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 200 से अधिक विकास योजनाओं का संचालन मनरेगा से किया गया, इसमें बिरसा मुंडा हरित क्रांति योजना के तहत वृक्षारोपण, जमीन समतलीकरण, सिंचाई कुप खुदाई कार्य, डोभा निर्माण, तालाब जिर्णोद्धार, रिचार्ज पीट निर्माण, टीसीबी निर्माण, कच्ची नाली निर्माण तथा अन्य वैसी विकास योजनाएं जिनमें बजट राशि का 60 प्रतिशत मजदूरों में और 40 प्रतिशत सामाग्री में खर्च की गयी। बावजूद इसके मनरेगा से निबंधित मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पाया। आज भी प्रखंड से मजदूर सपरिवार रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं।

बीडीओ मनोरंजन कुमार ने बताते हैं कि मनरेगा एक कानून है। इस अधिनियम के तहत मजदूरों को रोजगार मांगने के लिए आवेदन देना होता है, आवेदन देने के 15 दिनों के भीतर मजदूरों को रोजगार देना प्रखंड प्रशासन का काम है। नहीं देने पर बेरोजगारी भत्ता तब तक दिया जायेगा, जब तक काम मांगने वाले मजदूर को रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता। मनरेगा में मजदूरों को काम देने के लिए प्रखंड कर्मी लगे हुए हैं लेकिन मजदूर काम करें तब न।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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