Sunday, April 28, 2024

धनबाद के कोयलांचल में भू-धंसान और गोफ बनने के चलते दहशत के माहौल में जी रहे हैं लोग

धनबाद। 15 अगस्त को जहां पूरे देश सहित धनबाद जिले के लोग आजादी का वर्षगांठ मना रहे थे, वहीं जिले का सिजुआ कोलियरी के जोगता में अचानक एक बड़ा सा गोफ बन जाने से तीन लोग उसमें समा गये। जिले के कोयलांचल क्षेत्र अंतर्गत बीसीसीएल का सिजुआ-कनकनी कोलियरी का पूरा इलाका डेंजर जोन के रूप में चिह्नित है। इसी क्षेत्र के जोगता 11 नंबर में पिछले 14 अगस्त की रात को भू-धंसान के बाद 200 मीटर के दायरे में एक बड़ा सा गोफ हो गया। जिसमें पास का एक हनुमान मंदिर सहित एक ही परिवार के तीन लोग समा गये।

खैरियत रही कि हादसे के तुरंत बाद पड़ोसियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना गोफ में उतरकर उन तीनों को निकाल लिया जिससे तीनों की जान बच गई। लोगों ने तत्काल उन्हें निचितपुर के अस्पताल में भर्ती कराया जहां घायलों की गंभीर हालत को देखते हुए पीएमसीएच धनबाद रेफर कर दिया गया। जहां घायलों का अभी भी इलाज चल रहा है।

14 अगस्त की रात जोगता 11 नंबर बस्ती के लोग घरों में सो रहे थे। तभी अचानक धमाका हुआ, जमीन थरथराने लगी, गोफ बना और उसका दायरा बढ़ने लगा। एक मकान और हनुमान मंदिर भरभराकर उसमें समा गया। मकान में सोये 43 साल के श्याम बहादुर, 14 साल का उनका बेटा अरुण कुमार और 9 साल का तरुण कुमार उस गोफ में गिर गए। धमाके की आवाज और परिवार के लोगों की चीख पुकार से पड़ोसी जाग गए। वे भी जान बचाने के लिए बाहर भागे, लोगों में हड़कंप मच गया।

पड़ोसियों को गोफ में गिरा देख मोहल्ले के युवक अपनी जान की परवाह किए बिना उनको बचाने के लिए वे दौड़ पड़े। उनकी सामूहिक कोशिश रंग लाई। तीनों को मौत के मुंह से बचा लिया गया।

उन सबको बचाने वालों में श्याम बहादुर के भाई राम बहादुर ने बताया कि ‘जब हादसा हुआ तब रात के सवा दो बजे थे। आवाज सुनकर हम जब बाहर निकले तो देखा भाई का मकान गोफ में गिर गया है। मकान के साथ ही भाई और बच्चे भी गिर गए थे। वे हम सबका नाम लेकर चिल्लाए। हमने देखा, वे एक दीवार के मलबे में दबे हुए थे। तब दिमाग सन्न रह गया, कलेजा मुंह को आ गया। क्या करें, कैसे करें, दिमाग काम नहीं कर रहा था। तभी पड़ोसी धनपत भुइयां और विनोद भी आ गए’।

राम बहादुर ने आगे बताया कि ‘हम तीनों ने तय किया कि जो होगा देखा जाएगा, गोफ से इनको निकाल कर ही रहेंगे। बस हम गोफ में कूद गए। जमीन दरक रही थी, न जाने कहां से ताकत आ गई, डर भी भाग गया था। हम तीनों किसी तरह करके तीनों को मलबे से बाहर निकाल लाए। उनकी हालत खराब थी, इसलिए तुरंत अस्पताल ले गए’।

धनपत भुइयां और राम बहादुर ने बताया कि “जोगता 11 नंबर बस्ती के नीचे आग धधक रही है। पूर्व में हुए खनन के कारण यहां धंसान कई बार हो चुका है, भूमिगत आग भी बढ़ रही है। वे बताते हैं कि “यहां लगभग 1,500 की आबादी है, जो जमीन से निकलती गैस के बीच जीवन गुजारने को मजबूर है। यहां जिंदगी रोज काले साए के बीच गुजर रही है। कई साल से हम लोग पुनर्वास की मांग उठा रहे हैं, बावजूद इसके कोई सुन नहीं रहा है। आखिर हम जाएं तो कहां जाएं”? बता दें कि झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार के प्लान में इस बस्ती का भी नाम है।

इस हादसे में राम बहादुर का घर दरक गया है। वह परिवार के साथ नीम के पेड़ के नीचे छावनी बनाकर रह रहे हैं। विनोद भी बच्चों के साथ पड़ोसी के घर शरण लिए हैं। धनपत बगल की एक दुकान की छावनी में अपना सामान रखे हुए हैं। इन सबके घर ऐसे दरक गए हैं कि वहां रहना खतरे से खाली नहीं।

श्याम बहादुर का घर तो ढह ही चुका है। कारू भुइयां अंगारपथरा में अपने रिश्तेदार के यहां परिवार को लेकर चले गये। कारू ने बताया कि मजदूरी करके जी लेंगे। यहां रहना तो खतरे से खाली नहीं है। बीसीसीएल कर्मी सरयू भुइयां को निचितपुर टाउनशिप में घर मिल गया है।

जोगता 11 नंबर बस्ती के एक मजदूर हरिचरण बाउरी का कहना है- “गांव में बिजली नहीं है। धुआं और गैस से आंखों में जलन होती है। हमारी पुनर्वास की व्यवस्था हो। मेरा घर सबसे खतरनाक जगह पर है”।

वहीं धनपत भुइयां का भी कहना है कि “हमारी पुनर्वास की व्यवस्था हो। जो हुआ काफी डरावना था, इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। हम हमेशा एक भय के साथ जी रहे हैं”।

मजदूर बिनोद भुइयां कहते हैं- “उस भयावह दृश्य को याद कर कलेजा कांप जाता है, जब तीन आदमी मिलकर तीन लोगों को निकाल रहे थे। डर लग रहा था कि क्या होगा। अब वैसी घटना नहीं हो, प्रबंधन इंतजाम करे”।

बता दें कि 2017 के इसी अगस्त माह में भी यहां बड़ी गोफ जैसी घटना घटित हुई थी। महेंद्र हाड़ी (मेहतर) कि पत्नी अनिता देवी जमींदोज होने से बाल-बाल बची थीं। अनिता अपने घर में बने शौचालय में शौच के लिए गयी थीं। जैसे ही वो शौचालय से बाहर निकलीं तभी जोरदार आवाज के साथ जमीन घंसी और गोफ हो गया। जिसमें पूरा शौचालय जमींदोज हो गया। तब प्रबंधन ने लोगों को सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास कराने के बजाय गोफ की भराई कर अपनी जिम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लिया था। इसके बाद लोग भी यहां रहने लगे थे।

इस संबंध में प्रबंधक का कहना है कि इस इलाके को डेढ़ दशक पूर्व ही डीजीएमएस तथा बीसीसीएल के सर्वे विभाग ने डेजर जोन के रूप में चिह्नित किया है। जोगता 11 नंबर में आग और गैस तेजी से फैल रही है। इसलिए जोगता को खाली करने को लेकर कई बार ग्रामीणों को कंपनी की ओर से नोटिस दिया गया है। इसके बावजूद कोई भी यहां से बस्ती छोड़कर जाने को तैयार नहीं है। यह इलाका अति डेजर जोन हो चुका है। इसलिए लोगों को अपनी जानमाल कि परवाह करते हुए अविलंब बस्ती को खाली कर देना चाहिए। वहीं दूसरी ओर यहां बसे हुए लोग प्रबंधन से सुरक्षित स्थान के साथ-साथ रोजी-रोजगार उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं।

जोगता 11 नंबर करीब 1500 लोगों की घनी आबादी वाला इलाका है। यहां 215 निजी आवास हैं, जबकि कंपनी के पहले से 30 आवास हैं। डेजर जोन की श्रेणी में चिह्नित होने के बाद कंपनी ने अपने कर्मियों को दूसरे स्थान पर आवास आवंटित कर उन्हें शिफ्ट कर दिया है। अभी मात्र दो-तीन परिवार ही कंपनी आवास में रहते हैं। उन्हें भी कंपनी की ओर से दूसरे स्थान पर आवास आवंटित कराया गया है। इसके बावजूद ये लोग अभी तक यहां से नहीं गये हैं।

यहां रहने वाले गैर बीसीसीएल कर्मियों को सुरक्षित स्थान पर बसाने के लिए प्रबंधन तथा जरेडा की ओर से कई बार प्रयास भी किया गया, लेकिन रोजी-रोजगार का सवाल उनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या पैदा कर रहे हैं। इसी कारण लोग बस्ती खाली नहीं करना चाहते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वज कई दशकों से यहां रहते थे। बीसीसीएल प्रबंधन बस्ती के लोगों के लिए अगर सुरक्षित स्थान के साथ-साथ रोजी-रोजगार का संसाधन भी मुहैया कराये, तो वे लोग जाने को तैयार हैं। अन्यथा जान दे देगें, पर बस्ती खाली नहीं करेंगे। ग्रामीणों ने कहा कि सिजुआ इलाके में ही कहीं आसपास पुनर्वास कराया जाए, ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे।

इस तरह की भयावह घटनाएं इन क्षेत्रों के लिए कोई नयी बात नहीं हैं। बावजूद इसके न तो जिला प्रशासन, न बीसीसीएल प्रबंधन और न ही सरकार इस तरह के हादसों को लेकर संवेदनशील है। 

सिजुआ क्षेत्र के जोगता में 14 अगस्त की रात को हुई गोफ व भू-धंसान की घटना से अभी लोग उबर भी नहीं पाये थे कि 17 अगस्त के अहले-सुबह इस क्षेत्र के 22/12 स्थित जामा मस्जिद के अंदर के परिसर में भू-धंसान के बाद गोफ बन गया। जिससे लोगों में दहशत का महौल है। स्थानीय लोगों में बीसीसीएल प्रबंधन के प्रति रोष व्‍यक्‍त किया है। लोगों का आरोप है कि बीसीसीएल जानबूझकर पुनर्वास के कार्यों में लापरवाही बरत रहा है। इसके पीछे उनकी मंशा है कि बार-बार गोफ की घटना घटित होती रहे ताकि 22/12 के लोग डरकर स्वयं ही पलायन कर जाएं। जिससे कि बीसीसीएल को पुनर्वास कराने की जरूरत ही न पड़े।

वहीं 15 जुलाई को ही धनबाद जिले के ही झरिया में पहले से बने एक गोफ में एक व्यक्ति अचानक गिर गया। वह आदमी कोयला चुनकर अपना गुजर बसर करता था। कोयला चुनने के दौरान उसका पैर फिसला और वह गोफ में जा गिरा। सूचना मिलने के बाद बीसीसीएल की रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंची और मौके का जायजा लेने के बाद वापस लौट गई। टीम गोफ में गिरे आदमी को निकालने की जहमत नहीं उठाई और उसकी कब्र गोफ में ही बन गई।

रेस्कयू टीम के वापस लौटने को लेकर लोगों में आक्रोश तो दिखा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। बताया जाता है कि गोफ में गिरे आदमी का नाम परमेश्वर चौहान (40 वर्ष) है। परमेश्वर कोयला चुनकर और उसे बेचकर अपना गुजर बसर करता था। परमेश्वर का पूरा परिवार बेलगड़िया में शिफ्ट हो चुका है। बस वही अकेला घनुडीह में रहता था।

पिछले 11 अगस्त 2022 को धनबाद के सिजुआ भदरीचक में एक घर के आंगन में गोफ बन गया था, इस घटना में घर के लोग तो बाल-बाल बच गए थे। इस घर के मालिक मकसूद आलम यहां के रैयत हैं। जहां भू-धंसान के साथ गोफ बना, वहां बगल में ही टाटा जामाडोबा की भेलाटांड़ कोलियरी चल रही है। इसके पहले भी यहां तीन-चार घटनाएं हो चुकी है।

इसी 27 जून 2023 को धनबाद के कुसुंडा क्षेत्र के गोधर स्थित छः नंबर कालोनी के पास अहले सुबह तेज आवाज के साथ गोफ बना और उससे गैस रिसाव होने लगा। बाद में उसे बीसीसीएल प्रबंधन द्वारा भरा गया।

इस घटना से दो दिन पहले 13 अगस्त को धनबाद जिले के केंदुआडीह थाना क्षेत्र के गोधर 6 नंबर रेलवे साइडिंग के पास रहने वाले विनोद विश्वकर्मा के घर में भू-धंसान के कारण जोरदार आवाज के साथ गोफ बन गया। इस गोफ से गैस का रिसाव होने लगा, जिससे घर की एक महिला इसकी चपेट में आ गई और बेहोश हो गई। महिला को आनन-फानन में एसएनएमएमसीएच में भर्ती कराया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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