Friday, March 29, 2024

झारखंड के आदिवासी युवक की उत्तर प्रदेश मिर्जापुर के ईंट भट्ठे में संदिग्ध मौत, भट्ठा मालिक ने आनन फानन में जलाई लाश

झारखंड। रांची जिला अंतर्गत खलारी थाना के जामुनदोहर गांव निवासी 22 वर्षीय लालू लोहरा (आदिवासी) का शव बीते 21 अप्रैल की सुबह मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) के एक ईंट भट्ठा के परिसर में एक पेड़ पर फांसी के फंदे से झूलता हुआ पाया गया। लालू लोहरा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला अंतर्गत कच्छवा पुलिस स्टेशन क्षेत्र के लोहसपुर में एमडीएस मार्का वाले ईंट भट्ठे में काम करता था। उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही मनीषा उरांइन भी काम करती थी।

लालू अपने गांव के घर पर करीब एक साल तक मनीषा के साथ रहा, उसके बाद वे दोनों मिर्जापुर के उक्त ईंट भट्ठे में काम करने गए थे। लालू लोहरा आदिवासी समुदाय से आता है और मनीषा भी आदिवासी समुदाय की है। मनीषा लातेहार जिला अंतर्गत बालूमाथ थाना के सीरम गांव की रहने वाली है जो भगेया पंचायत के तहत आता है।

वहीं लालू की बहन मालो देवी और बहनोई महादेव लोहरा भी इसी ईंट भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर के भट्ठे पर काम करते थे, जो वहां से करीब तीन किमी की दूरी पर है। लालू लोहरा की मौत की खबर सुनकर जब वे लोग मौके पर पहुंचे तो पता चला कि भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर ने शव को उतारकर जला दिया। बहन मालो देवी और बहनोई महादेव लोहरा ने बताया कि भट्ठा मालिक ने न तो घटना की जानकारी पुलिस को दी न ही शव का पोस्टमार्टम कराया। आनन-फानन में शव जला दिया।

मालो ने जब घटना की सूचना पुलिस को नहीं दिए जाने के बावत भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर से बात की तो उसने बड़े ही रौब में कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। उसके बाद भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर ने मालो देवी को 21 हजार रुपये दिए और कहा कि घर जाकर अपने भाई का क्रियाकर्म कर लेना। गोपाल ठाकुर के बर्ताव से डरे सहमे मालो और उसका पति महादेव लोहरा लौटकर झारखंड अपने गांव जामुनदोहर आ गए।

लालू के पिता भरत लोहरा का कहना है कि ईंट भट्ठा मालिक ने ही लालू की हत्या करा दी है। लालू लोहरा पिछले करीब एक साल से लातेहार, बालूमाथ के सीरम की रहने वाली मनीषा उरांइन, पिता – बिनोद उरांव के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था। लालू और मनीषा सबसे पहले असम के एक ईंट भट्ठा में मिले थे। मनीषा जामुनदोहर में भी आकर चार-पांच महीने रही थी। मालो देवी ने बताया कि मिर्जापुर में लालू और मनीषा साथ-साथ ही रह रहे थे।

लालू की मौत से दो दिन पहले मनीषा ने लालू के साथ रहने से मना कर दिया। लालू ने भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर से कहा कि उसे छुट्टी दें, ताकि मनीषा को उसके घरवालों के पास पहुंचाकर आएं। मनीषा और लालू दोनों को भट्ठा मालिक को पैसे लौटाने थे। 20 अप्रैल की शाम भट्ठा मालिक ने मनीषा से बंद कमरे में कुछ बातचीत की और लालू से कहा कि मनीषा के भाई ने ऑनलाइन पैसे भेज दिए हैं।

इसके बाद मनीषा को यह कहकर ले गया कि उसे बनारस जाकर बस में बैठा देगा, ताकि वह घर पहुंच जाए और लालू को यह कहकर रोक दिया कि भट्ठा में कोयला कौन डालेगा। लालू ने फोन कर अपनी बहन को सारी बात बताई थी। इसके बाद ही सुबह लालू का शव मिला। वहीं दूसरी तरफ भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर और मनीषा का कहीं अता पता नहीं है। भट्ठे में काम करने वाले मजदूरों के बीच यह चर्चा है कि गोपाल ठाकुर ने मनीषा को कहीं छुपाकर रखा है।

इस मामले में कोई खुलकर नहीं बोल रहा है। मामले की जानकारी पुलिस को नहीं होने से भी सब कुछ गुप्त और शान्त है। इस घटना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लालू लोहरा के शव को जलाते हुए किसी ने चुपके से वीडियो भी बना लिया है। इस घटना का दुखद पहलू यह है कि जब लालू के परिजनों ने भट्ठा मालिक गोपाल ठाकुर के खिलाफ खलारी थाना में मामला दर्ज कराना चाहा तो पुलिस से ने प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार कर दिया।

लालू लोहरा की संदेहास्पद स्थिति में मौत मामले की प्राथमिकी को लेकर स्थानीय मुखिया दीपमाला कुमारी, लालू के परिजन के साथ खलारी थाना गई, तो पूरी कहानी सुनने के बाद पुलिस ने यह कहकर मामला लेने से मना कर दिया कि मौत मिर्जापुर में हुई है, वहीं के संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज कराए।

झारखंड के लोगों के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि जिस अवधारणा के आलोक में झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ वह आज भी हाशिए पर पड़ा विकास की राह ताक रहा है। बिरसा मुंडा की अबुआ दिशुम अबुआ राज (अपना देश अपना राज) की अवधारणा भी दम तोड़ रहा है। क्योंकि राज्य के आदिवासी, दलित और गरीब मजदूर पिछड़े वर्ग के लोग आज भी बेरोजगारी और भूख के शिकार हैं।

बेरोजगारी का आलम यह है कि लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर हैं। लालू लोहरा जिस जामुन दोहर गांव का निवासी है वह क्षेत्र CCL के KDH परियोजना के अंतर्गत आता है। जामुन दोहर गांव कोयला खदान के मुहाने पर मात्र 50 से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। लगभग 40 घरों वाला इस गांव की आबादी लगभग 300 के आसपास है। गांव में आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के लोग बसते हैं।

आए गए दिन लोगों के घरों के अंदर जमीन के भीतर से आग और जहरीली गैस का रिसाव होता रहता है। खदान में कोयले के निकासी के लिए हैवी ब्लास्टिंग की वजह से सभी के घरों के दीवार और छत में दरारें आ चुकी हैं। कई वर्षों से उचित मुआवजे के नहीं मिलने की वजह से यहां के ग्रामीण विस्थापित होना नहीं चाहते। जिसका फायदा यहां के दलाल, बिचौलिए और छुटभैये नेता टाइप लोग उठाते रहते हैं। वे दिखावे का धरना प्रदर्शन करके सीधे सादे ग्रामीणों को बरगलाकर अपनी झोली भरने का काम करते हैं।

इन सबकी CCL के अधिकारियों से मिलीभगत रहती है। यहां के ग्रामीण नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। कोयले की खदान की वजह से भूमिगत पानी खदान के खाइयों में चले गये हैं, जिसके कारण यहां सैकड़ो मीटर गहराई की चापानल या कुएं की खुदाई होने के बाद भी पानी नसीब नहीं हो पाता है। पंचायत में पेय जल के लिए एक मात्र विकल्प है जलमीनार, लेकिन वह अभी क्षेत्र के प्रशासनिक फाइल में ही कैद है।

कहना ना होगा इस क्षेत्र में भले ही सीसीएल की अनेकों परियोजनाएं, कई प्राइवेट कंपनी, आउटसोर्सिंग कम्पनी होने के बावजूद पर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार नहीं के बराबर है। कोयला क्षेत्र होने के कारण यहां मनरेगा योजना के तहत होने वाले कार्यों की भी संभावना बहुत कम है। जिसके कारण यहां के लालू जैसे दर्जनों ग्रामीण बेरोजगार दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन करते हैं और दूसरे राज्यों में हर तरह के शोषण और उत्पीड़न के शिकार होते हैं।

महिलाओं का कई तरह से शोषण होता है। पुरुष मजदूरों का तो केवल श्रम का शोषण होता है जबकि महिलाएं कई स्तर पर शोषण का शिकार होती हैं। कहीं घरों में कैद कर काम करवाया जाता है तो कहीं वे यौन शोषण का शिकार होती हैं। इन घटनाओं से संबंधित खबरें आए दिन सुर्ख़ियों में होती हैं। खलारी प्रखंड का जामुन दोहर गांव विश्रामपुर पंचायत के अंतर्गत आता है जो झारखंड की राजधानी रांची जिला अंतर्गत जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर है।

जो यहां की बदहाली का सबसे बड़ा कारण है। क्योंकि यहां लोगों के प्रति प्रखंड स्तरीय प्रशासनिक उदासीनता की शिकायत भी अगर जिला मुख्यालय को करना हो तो 75 किमी की दूरी तय करनी होगी, जो ग्रामीणों के बस में इसलिए नहीं है कि क्योंकि रांची आने-जाने में लोगों के 6-7 घंटे निकल जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कोई गारंटी नहीं कि जिला प्रशासन में उनकी शिकायत या समस्या सुनी ही जाए।

इन तमाम तरह की विसंगतियों के शिकार जामुन दोहर गांव के निवासियों का जीवन आज भी कबिलाई युग की याद दिलाता है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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