Saturday, April 27, 2024

मुड़हर पहाड़ के ‘हिन्दूकरण’ के विरोध में सुतियांबे में एकजुट हुआ आदिवासी समाज

‘मुड़हर पहाड़ बचाओ अभियान समिति’ के बैनर तले रविवार को पिठौरिया में सुतियांबे मुड़हर पहाड़ पर हजारों की संख्या आदिवासी जुटे। ये सभी सुतियांबे पहाड़ के पास जमीन पर अवैध दखल खिलाफ जुटे थे। वहां मौजूद आदिवासियों ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है। पहाड़, नदी, तालाब, पेड़ पौधा,पशु पक्षी, जल, जंगल और जमीन की पूजा करते हैं। आज आदिवासियों का अस्तित्व, पहचान खत्म किये जा रहे हैं।

“मुड़हर पहाड़ बचाओं अभियान समिति” ने 17 मार्च 2024 को “सुतियांबे चलो” नारे के साथ राज्य के विभिन्न आदिवासी संगठनों, सरना समितियों तथा पड़हा समितियों के प्रतिनिधियों ने रांची जिले के कांके प्रखंड अंतर्गत सुतियांबे पिठौरिया के मुड़हर पहाड़ पर एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने भागीदारी की।

बता दें कि ऐतिहासिक सुतियांबे गढ़ से मुंडाओं (आदिवासी) का गौरवमयी इतिहास जुड़ा है। यहां इनके पूर्वजों के द्वारा संपूर्ण छोटानागपुर में मुंडा स्वशासन के तहत जनतांत्रिक प्रणाली से राजकार्य किया जाता था। यही वह स्थान है जहां से बाहरी आक्रमणों व अत्याचारों के विरुद्ध मुकाबले के लिए कूटनीतिक एवं रणनीतिक निर्णयों के लिए बैठकें तथा मुकाबलों के लिए मुंडाओं का जुटान होता था। सुतिया मुंडा के बाद मदरा मुंडा को राजा घोषित किया गया था। उसके बाद मदरा मुंडा ने इस गढ़ का नामकरण ‘सुतिया नाग खंड’ किया। इस गढ़ के अंतर्गत मुंडाओं के सात गढ़ को शामिल किया जाता है- लोहागढ़ (लोहरदगा), हजारीबाग, पालुन गढ़ (पलामू), मानगढ़ (मानभूम), सिंह गढ़, केसल गढ़ और सुरगुजागढ़ (सरगुजा)।

ये सभी गढ़ 21 परगनों में बंटे हुए थे और इनके सभी परगनों के सरदार को मानकी कहा जाता था। इनमें से कुछ परगनों के नाम आज भी यथावत मिल जायेंगे। इससे स्पष्ट है कि सुतिया मुंडा द्वारा स्थापित यह राज्य प्रायः सम्पूर्ण झारखंड प्रदेश में फैला हुआ था। किंतु यह प्रदेश लंबे समय तक स्थाई नहीं रह सका है। बाहरी आक्रमण तथा आर्यों के आगमन के साथ ही यहां क्षेत्रीय स्वशासन व्यवस्था बिखरने लगता है।

पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा लिखते हैं कि “विभिन्न क्षेत्रों के राजा, मानकी या परगनाइत साल में एक बार झारखण्ड ‘महाराजा’ के दर्शन को राजधानी सुतियांबे आते थे और अपने सुख-दुःख सुनाने के बाद स्मृति स्वरूप सलामी दे आते थे”

आज भी मुंडा समुदाय के लिए यह पहाड़ एक पवित्र धरोहर के रूप में विद्यमान है जिसकी महिमा हर धार्मिक अनुष्ठान अथवा मृत्यु के उपरांत किए जाने वाले नेग-दस्तूर के दौरान सुतियांबे-कुड़याम्बे को याद कर करते हैं।

वर्तमान में यह ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा और अतिक्रमण का दंश झेल रहा है। आज यह पर्वत हिन्दूकरण की चपेट में आ गया है। अतः इस पहाड़ पर अनेक हिन्दू देवी-देवता के मूर्तियां भी देखने को मिल जायेंगी। इस कारण आज मुंडा समुदाय अपने पूर्वजों की परंपरा को भूल रहे हैं जो उन्हें पूर्वजों के द्वारा विरासत में मिली है। साथ ही वे अपनी भाषा-संस्कृति से भी दूर हो रहे है। लेकिन इस बीच एक अच्छी बात यह भी है कि “मुड़हर पहाड़ बचाओ अभियान समिति” सहित राज्य के कई आदिवासी संगठन और कई सामाजसेवी एवं बुद्धिजीवी लोग आगे आकर लोगों को अपनी धरोहरों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। इसी कड़ी में यह आन्दोलन चल रहा है।

आज यह मुड़हर पहाड़ के नाम से जाना जाता है। इसका नामकरण मुड़हर पहाड़ इसलिए पड़ा कि इस पहाड़ का कोई शिखर नहीं है यानी सिर नहीं है।

समिति के प्रतिनिधि बताते हैं कि “सुतियांबे चलो! मुड़हर पहाड़ बचाओ!” सुतियांबे पिठौरिया मुड़हर पहाड़ कांके में मुंडाओं के पूर्वज महाराजा मदरा मुंडा से जुड़ी पहचान, अस्तित्व, विरासत को खत्म करने की साजिश और इस ऐतिहासिक धरोहर सुतियांबे पहाड़ पर किये जा रहे धार्मिक – सांस्कृतिक अतिक्रमण एवं जमीन पर अवैध दखल-कब्जा के खिलाफ एक आन्दोलनकारी मोर्चा है।

इस बावत सुतियांबे मुड़हर पहाड़ बचाओ अभियान समिति के मुख्य संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहते हैं कि ‘देश भर में आरएसएस-हिंदूवादी संगठनों द्वारा आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध तरीके से प्रकृति पूजक आदिवासियों की धार्मिक सांस्कृतिक प्रतीकों/स्थलों/ चिन्हों का अतिक्रमण किया जा रहा है। वहीं आदिवासियों की पहचान, अस्तित्व, विरासत, इतिहास को मिटाने की भरपूर कोशिश हो रही है। सुतियांबे स्थित मुड़हर पहाड़ इसका एक बड़ा उदाहरण है। सब को मालूम है कि जब पूरा इलाका वनों से आच्छादित था, तब सुतिया मुंडा अपने सैकड़ों मुंडा समूह को लाकर सर्वप्रथम इस गांव को बसाया था। यहीं से मुंडा शासन व्यवस्था की नींव रखी गई थी। इसी सुतिया मुंडा के वंशज मदरा मुंडा ने इसी मुड़हर पहाड़ से शासन व्यवस्था का संचालन किया और मुंडा साम्राज्य का संचालन के लिए खंड, परगना, पड़हा, गांव, टोला में शासन ईकाई को बांटा था। आज सुतियांबे की धरोहर को मिटाकर कर हिंदूवादी संगठनों द्वारा कब्जा करने की कोशिश की जा रही है।’

वहीं जनसभा को संबोधित करते हुए आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि ‘जो आदिवासी अपने आपको आदिवासी कहता है तो उसे ब्राह्मणवादी परंपरा को छोड़ना होगा।’

केन्द्रीय सरना समिति का अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि ‘आदिवासी समाज को बचाना है तो ब्राह्मणवादी परंम्परा को छोड़ना होगा तभी आदिवासी समाज बचेगा।’

केन्द्रीय सरना संगोम समिति के अध्यक्ष खूंटी के दुर्गावती ओंडेया ने कहा कि ‘हम आदिवासी हैं और जो कोई भी बाहरी ताकत आदिवासियों को मिटाने का काम करेगा उसको मुंहतोड़ जवाब दिया जाऐगा।

आयोजित जनसभा में कई संकल्प लिए गए जिसमें कहा गया कि ‘हम सभी प्रकृति पूजक आदिवासी इस झारखंड के ऐतिहासिक पौराणिक गांव स्थित मुड़हर पहाड़ में शपथ लेते हैं कि हम आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर अपनी लड़ाई तेज करेंगे तथा आज से ही हम अपना धर्म- संस्कृति, रीति- रिवाज का दृढ़ता पूर्वक पालन करेंगे। किसी भी धर्म चाहे हिंदू, ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन या और भी कोई अन्य धर्म स्वीकार नहीं करेंगे।’

‘हम सभी प्रकृति पूजक आदिवासी ब्राह्मणवादी व्यवस्था, संस्कार, रीति-रिवाजों को नहीं अपनाएंगे तथा अपनी परंपरागत आदिवासी रीति-रिवाज, संस्कारों को ही मानते हुए सभी तरह कर्मकांड पाहनों के द्वारा ही संपन्न कराएंगे।’

‘हम सभी प्रकृति पूजक आदिवासी समुदाय प्रत्येक वर्ष इस मुड़हर पहाड़ में चैत्र पूर्णिमा को ही वार्षिक मेला का आयोजन करेंगे तथा समस्त मुंडा समाज और आदिवासी समुदाय यहां जुटेंगे।’

‘हम सभी प्रकृति पूजक आदिवासी समुदाय आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में हमारे प्राकृतिक धरोहर जंगल, जमीन, पहाड़, नदी, नालों इत्यादि जगहों में जहां हम आदिवासियों की आस्था स्थलों/ प्रतीक चिन्हों को किसी भी धर्म, संगठनों-संस्थानों द्वारा मिटाने, कब्जा करने तथा धार्मिक/ सांस्कृतिक और जमीन का अतिक्रमण किये जाने का पुरजोर विरोध करेंगे।’

‘हम सभी आदिवासी समुदाय इस ऐतिहासिक पौराणिक गांव सुतियांबे में होने वाले सभी कार्यक्रम का आयोजन यहां के परंपरागत पड़हा समिति/सरना समिति/आदिवासी संगठनों/मुखिया/ स्थानीय पाहन अरविंद पाहन और पाहन परिवार के द्वारा संपन्न कराने के अधिकार को सौंपते हैं। जिसमें हम सभी आदिवासी समुदाय के लोग भरपूर सहयोग करेंगे।’

सुतियांबे स्थित मुड़हर पहाड़ पर आरएसएस-हिंदूवादी संगठनों द्वारा जबरन थोपी जा रही धार्मिक, सांस्कृतिक अतिक्रमण पर रोक लगाई जाए। सुतियांबे स्थित मुड़हर पहाड़ सहित वहां की अन्य पूजास्थल/प्रतीक स्थलों का चिन्हीकरण करके घेराबंदी किया जाए। महाराजा मदरा मुंडा के नाम पर आदिवासियों की धर्म संस्कृति- संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज की रक्षा और विकास के लिए एक बोर्ड गठन किया जाए। सुतियांबे स्थित मुड़हर पहाड़ और उससे जुड़े स्थलों- धरोहरों को आदिवासियों की धार्मिक – सांस्कृतिक स्थल राज्य सरकार द्वारा घोषित किया जाए।” आदि प्रस्ताव पारित किए गए।

मौके पर साधूलाल मुण्डा, झरि मुण्डा, मनीष मुण्डा, फ्रांसिस लिंडा, सुनील टोप्पो, निरंजना हैंरेज, सानिका भेंगरा, डब्लू मुण्डा, शहदेव मुण्डा, भीम सिंह मुण्डा, बाबूलाल महली, दिनेश मुण्डा, बंधन तिग्गा, जगदीश पहान, फूलचन्द तिर्की, नारायाण उरांव, तानसेन गाड़ी, शिवरतन मुण्डा, देव नाथ मुण्डा, शशि मुण्डा, लखन मुण्डा, अजय मुण्डा, अमित मुण्डा, राजेश मुण्डा, सतिश खलखों, प्रकाश टोप्पो, रोशन लकड़ा, रजन पहान इत्यादि लोगों ने अपनी बातें रखीं।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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