जुर्म साबित हुए बिना जुर्माना लेना कहां का कानून

लखनऊ। कोरोना महामारी से निबटने और उससे उपजे संकट को हल करने की बजाए योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश के सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में लगी है। योगी सरकार सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों में शामिल रहे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को 64 लाख की वसूली का नोटिस जारी किया है। सरकार का आरोप है कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल उक्त लोगों ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।

इस वसूली नोटिस में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर, अधिवक्ता मोहम्मद शोएब और रंगकर्मी दीपक कबीर समेत कई लोगों का नाम शामिल है।योगी सरकार के संविधान विरोधी रवैए एवं 64 लाख की वसूली नोटिस भेजने के खिलाफ प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों व संगठनों ने इसे राजनीतिक बदले की कार्यवाही मानते हुए योगी सरकार से संविधान के अनुसार व्यवहार करने की उम्मीद और इस वसूली नोटिस को तत्काल वापस लेने की मांग की है।

राजनीतिक-सामाजिक संगठनों की तरफ से मुख्यमंत्री को प्रेषित एक प्रस्ताव में कहा गया कि हम सब हस्ताक्षरकर्ता सर्वसम्मति से लखनऊ जिला प्रशासन द्वारा दी गई वसूली नोटिस को विधि के विरुद्ध, मनमर्जीपूर्ण और संविधान में वर्णित न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध राजनीतिक बदले की भावना से की गयी उत्पीड़न की कार्यवाही मानते हैं। हम चितिंत हैं कि आपकी सरकार के प्रशासन द्वारा बिना सक्षम न्यायालय से दोष सिद्ध अपराधी साबित हुए ही दंड देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जो स्पष्टतः भारतीय संविधान की न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध है और मौलिक अधिकारों का हनन है।

जबकि आपको अवगत करा दें कि जिस अपर जिलाधिकारी, लखनऊ ने सीएए-एनआरसी विरोध के दौरान हुई हिंसा की जांच कर इस वसूली की कार्यवाही को किया है उसके अधिकार के बारें में माननीय उच्चतम न्यायालय तक ने अपने विभिन्न आदेशों में यह माना कि इस कार्य के लिए वह सक्षम न्यायालय नहीं है। इसी नाते सभी ने अपनी आपत्ति जिला प्रशासन लखनऊ से दर्ज भी करायी थी और माननीय उच्च न्यायालय ने भी ऐसी कई वसूली नोटिसों पर रोक लगाई हुई है।

अभी दो दिन पहले ही एसआर दारापुरी द्वारा वसूली कार्यवाही के विरूद्ध उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल याचिका संख्या 7899/2020 में अपर स्थायी अधिवक्ता, उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 दिन की मोहलत मांगी, जिसके बाद न्यायालय ने जुलाई के द्वितीय सप्ताह में मुकदमा लगाया है और वाद न्यायालय में विचाराधीन है। बावजूद इसके राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं को लखनऊ जिला प्रशासन द्वारा नोटिस देना विधि विरूद्ध तो है ही माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना भी है। हम हस्ताक्षरकर्ताओं को इस पर भी आश्चर्य है कि सरकार व जिला प्रशासन ने सीएए-एनआरसी विरोधी हिंसा में खुद यह माना था कि उसकी 64,34,637/ रुपए की क्षति हुई है और यह कई लोगों द्वारा की गयी है। लेकिन हर व्यक्ति को दिए नोटिस में 64,34,637/ रुपए सात दिन में जमा कराने को कहा गया है। जो साफ तौर पर दुर्भावना से प्रेरित और महज उत्पीड़न करने के लिए है।

राजनीतिक प्रस्ताव के जरिए हम आपकी सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह संविधान के अनुरूप व्यवहार करेगी और राजनीतिक बदले की भावना से दी गयी विधि विरूद्ध, मनमर्जीपूर्ण और माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना करने वाली वसूली नोटिस को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने के लिए लखनऊ जिला प्रशासन को निर्देशित करेगी और प्रदेश में राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध बदले की भावना से किसी भी तरह की उत्पीड़न की कार्यवाही न हो यह सुनिश्चित करेगी।

भाकपा राज्य सचिव डॉ. गिरीश शर्मा, माकपा राज्य सचिव डॉ. हीरालाल यादव, पूर्व सासंद व अध्यक्ष, लोकतंत्र बचाओ अभियान इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. संदीप पांडेय, स्वराज अभियान की प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता अर्चना श्रीवास्तव, स्वराज इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष अनमोल, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नेता दिनकर कपूर ने राजनीतिक प्रस्ताव को मुख्यमंत्री को ईमेल से भेजा गया।

पुलिस की नजरबंदी में रहे लोगों पर सरकारी सम्पत्ति के नुकसान का आरोप
मोहम्मद शुऐब को रिकवरी नोटिस भेजे जाने को रिहाई मंच ने बदले की कार्रवाई करार दिया है। यूपी पुलिस ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों और स्क्रोल की पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर भी मुकदमा दर्ज किया है। मंच ने सीएए विरोधी आंदोलन दिसंम्बर 2019 पर आई चार्जशीट को निर्धारित प्रक्रिया अपनाए बिना लाने पर सवाल उठाया। मंच का कहना है कि रासुका, गैंगस्टर जैसी कार्रवाइयों के जरिए इंसाफ पसंद आवाजों को दबाने की कोशिश हो रही है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि रिकवरी से सम्बंधित मुकदमा हाईकोर्ट में लंबित है। जिसमें मुहम्मद शुऐब ने रिकवरी आदेश निरस्त करने की मांग की है। पुलिस सरकारी संम्पत्ति के नुकसान का जो आरोप मुहम्मद शुऐब और एसआर दारापुरी पर लगा रही है वो बेबुनियाद है क्योंकि दोनों को पुलिस ने नजरबंद कर रखा था। पूर्व आईजी एसआर दारापुरी समेत अनेक कार्यकर्ताओं को नोटिस भेजने वाली प्रदेश सरकार उनके खिलाफ कोई सुबूत पेश नहीं कर पाई और उनको जमानत मिल चुकी है। जुर्म साबित हुए बिना जुर्माना लेना कहां का कानून है। क्या भारतीय कानून से अलग कोई कानून योगी सरकार चला रही है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अदालतों को नज़रअंदाज़ कर इंसाफ का गला घोंट रही है। इससे पहले भी सीएए आंदोलनकारियों के होर्डिंग लगाए जाने के मामले में भी हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश सरकार ने होर्डिंग नहीं हटाए। होना तो ये चाहिए कि प्रदेश सरकार ने जनता की जो गाढ़ी कमाई बर्बाद की उसकी उससे वसूली हो। लखनऊ घंटाघर पर सीएए का विरोध कर रही महिलाओं समेत अन्य लोगों को नोटिस भेजा जाना भी इसी दमनकारी चक्र का हिस्सा है। महिलाओं ने सीएए विरोधी आंदोलन 23 मार्च को कोरोना संकट के मद्देनज़र स्थगित कर दिया था। इससे पहले प्रदेश सरकार के इशारे पर लखनऊ पुलिस प्रशासन ने आंदोलन को खत्म करवाने के लिए दमनकारी नीति अपनाई थी और मारपीट के साथ ही फर्जी मुकदमें कायम कर जेल भेज दिया था।

भाकपा (माले) का 20 जून को राज्यव्यापी प्रतिवाद दिवस
योगी सरकार में हत्या, दमन की घटनाओं के खिलाफ और लोकतंत्र के लिए शनिवार (20 जून) को राज्यव्यापी प्रतिवाद दिवस मनायेगी। कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए प्रतिवाद दिवस घरों, गांवों व कार्यस्थलों पर मनाया जायेगा। यह जानकारी देते हुए पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर कहा कि सोनभद्र में दो-दो आदिवासियों की हत्या हुई है, जिसमें खनन माफिया का हाथ है।

गोरखपुर, आजमगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, सीतापुर, लखनऊ समेत प्रदेश में दलितों व कमजोर वर्गों पर सामंती दबंगों के हमले की घटनाएं हुई हैं। ऐसे कई मामलों में कार्रवाई के स्तर पर भेदभाव किया गया है। इसके अलावा लखीमपुर खीरी, मिर्जापुर आदि जिलों में लोकतंत्र के लिए आवाज उठाने पर माले कार्यकर्ताओं का पुलिस उत्पीड़न हुआ है। लखनऊ में सीएए-विरोधी आंदोलनकारियों व समाजसेवियों का लॉकडाउन में ढील के बाद फिर से प्रशासनिक उत्पीड़न शुरू कर दिया गया है।

राज्य सचिव ने कहा कि लखनऊ में सीएए के खिलाफ आंदोलन में अगुवा भूमिका निभाने वाली महिलाओं को थानों से नोटिस जारी किया जा रहा है। रिहाई मंच अध्यक्ष मो. शोएब, समाजसेवी एसआर दारापुरी समेत अन्य लोगों को राजस्व विभाग से वसूली के नोटिस जारी किये जा रहे हैं। माले नेता ने योगी सरकार की इन उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की और इसे फौरन रोकने की मांग की। उन्होंने कहा कि शनिवार के प्रतिवाद कार्यक्रम के माध्यम से हर जिले से मुख्यमंत्री को भेजे जाने वाले ज्ञापन में इन मुद्दों को शामिल किया जायेगा।

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