इलाहाबाद हाई कोर्ट के लॉकडाउन के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

Estimated read time 1 min read

उच्चतम न्यायालय ने आज इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें कोविड-19 की स्थिति पर उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में लॉकडाउन के निर्देश दिए थे। चीफ जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर अपील में दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। पीठ ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि यूपी सरकार को महामारी की स्थिति से निपटने के लिए उसके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट को रिपोर्ट करना है। मामले में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस नरसिम्हा को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया गया है। यूपी सरकार की दलील है कि लॉकडाउन लगाने का आदेश देना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर में 19 अप्रैल से लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था। योगी आदित्यनाथ सरकार ने फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से दो हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है। उच्चतम न्यायालय में यूपी सरकार ने कहा कि सरकार को जब लॉकडाउन की आवश्यकता महसूस होगी, उसे सरकार खुद लगाएगी। कोर्ट का कार्यपालिका के प्रयासों में दखल देना, सरकार के कामकाज, आजीविका के साथ ही दूसरी चीजों में भी दिक्कत खड़ी करेगा। हालात पर काबू पाने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए उच्चतम न्यायालय ने यूपी सरकार से कहा कि आप हाई कोर्ट के ऑब्जर्वेशन पर ध्यान दें। लॉकडाउन के फैसले पर हम रोक लगा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में राज्‍य सरकार को एक हफ्ते में इलाहाबाद हाई कोर्ट को यह बताने को कहा कि उसने कोरोना संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण पाने के लिए क्‍या-क्‍या कदम उठाए हैं। उच्चतम न्यायालय अब दो हफ्ते बाद इस पर सुनवाई करेगा।  

कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर काबू पाने के लिए यूपी सरकार ने नाइट कर्फ्यू लागू किया है। इस नाइट कर्फ्यू को अपर्याप्त बताते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि महामारी के फैलाव पर रोक लगाने के लिए सरकार को और कदम उठाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि एक बांध तूफान को नहीं रोक सकता। एक जनिहित याचिका पर सुनवाई करत हुए कोर्ट ने यूपी सरकार से संक्रमण का पता लगाने, टेस्टिंग और इलाज की गति तीव्र करने के लिए कहा है। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि लोग यदि मर रहे हैं तो विकास का कोई मतलब नहीं है।

राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी हाई कोर्ट ने यूपी सरकार की खिंचाई की। हाई कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी के एक साल बीत जाने के बाद भी राज्य के बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे में वृद्धि नहीं की गई। कोर्ट ने सरकार से राज्य में फील्ड अस्पताल बनाने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने कोविड प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन कराने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि लोग यदि कोरोना नियमों का उल्लंघन करते पाए गए तो वह स्थानीय पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करेगा।

हाई कोर्ट ने कहा था कि कोविड-19 की टेस्टिंग, उपचार के इंजेक्शन, अस्पताल में बेड आदि प्राप्त करने के लिए वीआईपी की सिफारिशों की आवश्यकता होती है। केवल वीवीआईपी को 6-12 घंटे के भीतर रिपोर्ट मिल रही है। आईसीयू में रोगियों का प्रवेश बड़े पैमाने पर वीआईपी की सिफारिश पर किया जा रहा है। यहां तक कि जीवन रक्षक एंटीवायरल ड्रग की आपूर्ति भी तभी की जा सकती है। रेमेडिसविर को केवल वीआईपी और वीवीआईपी की सिफारिश पर प्रदान किया जा रहा है। उनकी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट 12 घंटे के भीतर दे रहे हैं, जबकि आम नागरिक को दो से तीन दिनों तक ऐसी रिपोर्टों का इंतजार रहता है और इस प्रकार, उसके/उसके परिवार के अन्य सदस्यों में संक्रमण फैल जाता है।

न्यायालय ने कहा कि यह इस तथ्य को नहीं छोड़ा जा सकता है कि किंग जॉर्ज अस्पताल और अन्य अस्पतालों जैसे कि स्वरूप रानी नेहरू मेडिकल अस्पताल के बड़ी संख्या में डॉक्टर कोविड के कारण क्वारंटीन हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी क्वारंटीन में चले गए हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूपी सरकार की तरफ से उच्चतम न्यायालय में मामला रखा। उन्होंने कहा कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल है। कोरोना वायरस संक्रमण पर काबू पाने के लिए सरकार पहले ही अपनी तरफ से जरूरी कदम उठा रही है। तुषार मेहता ने दलील दी कि हाई कोर्ट के फैसले से सामान्‍य प्रशासनिक प्रक्रिया में दिक्‍कतें पेश आएंगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना वायरस की लगातार तेजी को देखते हुए पांच शहरों में 26 अप्रैल तक संपूर्ण लॉकडाउन का आदेश दिया था, जिसमें प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर शामिल हैं। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस  अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा था कि हमारा विचार है कि मौजूदा समय के परिदृश्य को देखते हुए यदि लोगों को उनके घरों से बाहर जाने से एक सप्ताह के लिए रोक दिया जाता है तो कोरोना संक्रमण की श्रृंखला तोड़ी जा सकती है और इससे अगली पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों को भी कुछ राहत मिलेगी।

इस बीच कोरोना के बढ़ते संक्रमण और उस पर प्रभावी नियंत्रण को देखते हुए योगी सरकार ने वीकेंड लॉकडाउन का एलान किया है। प्रदेश में शनिवार और रविवार दोनों दिन बंदी रहेगी। इसी के साथ पूरे प्रदेश में नाइट कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई है। वीकली लॉकडाउन के दौरान सभी साप्ताहिक बाज़ार और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बंद रहेंगे। इस दौरान सेनेटाइजेशन का काम होगा, लेकिन आवश्यक सेवाएं बाधित नहीं होंगी। वीकली लॉकडाउन में भीड़-भाड़ वाली तमाम जगहें बंद रहेंगी। दोनों दिन सेनेटाइजेशन का काम होगा। वीकेंड लॉकडाउन के अतिरिक्त जिन जिलों में 500 से अधिक एक्टिव केस हैं, वहां हर दिन रात्रि 8 बजे से अगले दिन प्रातः 7 बजे तक आवश्यक सेवाओं को छोड़कर शेष गतिविधियां प्रतिबंधित रहेंगी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author