विकास एनकाउंटर: सुप्रीम कोर्ट ने लगायी यूपी सरकार को फटकार, कहा-कैसे था इतना बड़ा अपराधी जेल से बाहर

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कानपुर के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल किया है कि हम इस बात से हैरान हैं कि इतने मामलों में वांछित अपराधी जमानत पर कैसे रिहा हो गया और आखिरकार उसने इतने बड़े अपराध को अंजाम दे दिया। यह सिस्टम की विफलता को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही विकास दुबे एनकाउंटर मामले की उच्चतम न्यायालय ने यूपी सरकार को दोबारा जांच समिति गठित करने के आदेश दिए हैं।

कोर्ट ने यूपी सरकार को कहा कि कमेटी में एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज और रिटायर्ड पुलिस अफसर जोड़ें। यूपी सरकार ने कहा है कि वो कल तक ये काम कर देगी। कोर्ट ने ये मामला बुधवार को फिर सुनने को कहा है। यूपी सरकार ने कहा है कि जांच कमेटी के लिए वो नोटिफिकेशन जारी करेगी, जिसमें एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के जज/एक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और एक रिटायर्ड डीजीपी होंगे। उच्चतम न्यायालय में यूपी सरकार कल ड्राफ्ट नोटिफिकेशन दाखिल करेगी। इसके बाद अदालत आदेश जारी करेगी।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिस वालों को मारने के आरोपी विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत उत्तर प्रदेश सरकार के तर्कों से संतुष्ट नहीं दिखी और कई बार यूपी सरकार पर ही सवाल खड़े कर दिए। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि हमें इस बात पर हैरानी है कि आखिर इतने मामलों का मुजरिम पैरोल पर बाहर कैसे था।

दरअसल, विकास दुबे एनकाउंटर मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी दलील में इस मुठभेड़ को सही बताया। यूपी सरकार ने कहा कि वो पैरोल पर था और जब पकड़ा गया तो पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश की, इस दौरान आत्मरक्षा में पुलिस ने उस पर फायरिंग की। हालांकि उच्चतम न्यायालय इन तर्कों से संतुष्ट नहीं दिखा और उसने सरकार पर सवालों की बौछार कर दी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार है, ऐसे में इस मामले में ट्रायल होना चाहिए था। इसी दौरान चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि हमें हैरानी है कि जिस व्यक्ति पर इतने मामले दर्ज हों, वो बेल पर कैसे बाहर हो सकता है और फिर इस तरह की हरकत कर सकता है।

राज्य सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि एनकाउंटर मामले की निष्पक्ष जांच चल रही है। विकास दुबे 65 एफआईआर वाला कुख्यात गैंगस्टर था, जो इन दिनों पैरोल पर बाहर था। इस दलील पर सीजेआई भड़क गए। उन्होंने सॉलिसीटर जनरल से कहा कि हमको मत बताइए कि विकास दुबे क्या था? चीफ़ जस्टिस ने कहा कि विकास दुबे पर गंभीर अपराध के अनेकों मुक़दमे दर्ज थे फिर भी वह जेल से बाहर था, जो कि सिस्टम की विफलता है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हमें सभी आदेशों की सटीक रिपोर्ट दें।

उच्चतम न्यायालय में गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर की सुनवाई के दौरान पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) हितेश चंद्र अवस्थी की ओर से वकील हरीश साल्वे ने कहा कि यह मामला तेलंगाना मुठभेड़ से कई मामलों में अलग है। उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मियों का भी मौलिक अधिकार है। क्या पुलिस पर अत्यधिक बल के प्रयोग का आरोप लगाया जा सकता है जब वह एक खूंखार अपराधी के साथ लाइव मुठभेड़ में लगी हो? उन्होंने बताया कि किस तरह विकास दुबे ने बेरहमी से पुलिसकर्मियों की हत्या की थी? हरीश साल्वे ने कहा कि विकास दुबे ने पुलिसकर्मियों को मार दिया, जब मुठभेड़ हुई तो वो मारा गया। अब आगे इस पर सवाल होते हैं तो पुलिसकर्मियों का मनोबल टूट सकता है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने तुरंत कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि कानून लागू होने से पुलिसकर्मियों का मनोबल टूट सकता है।

इस पर चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि यह हैदराबाद और विकास दुबे केस में एक बड़ा अंतर है। वे एक महिला के बलात्कारी और हत्यारे थे और विकास दुबे और उसके साथी पुलिसकर्मियों के हत्यारे थे। उन्होंने कहा कि इस जांच से कानून का शासन मज़बूत ही होगा और पुलिस का मनोबल बढ़ेगा। चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि इतने संगीन मुकदमों का मुख्य आरोपी बेल पर रिहा था। इसी के साथ कोर्ट ने विकास दुबे से जुड़े सभी फैसलों की रिपोर्ट तलब की, जिसमें शुरुआत से लेकर अब तक के केस की जानकारी मांगी। साथ ही सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ये पूरा मामला दिखाता है कि सिस्टम किस तरह फेल है, ये सिर्फ एक मामले की बात नहीं है। कोर्ट ने यूपी सरकार को भी नसीहत देते हुए कहा कि एक राज्य के तौर पर आपको कानून के शासन को बनाए रखना होगा। ऐसा करना आपका कर्तव्य है।

कोर्ट ने यूपी सरकार को कहा कि कमेटी में एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज और रिटायर्ड पुलिस अफसर जोड़ें। यूपी सरकार ने कहा है कि वो कल तक ये काम कर देगी। कोर्ट ने ये मामला बुधवार को फिर सुनने को कहा है।

प्रशांत भूषण ने भी पीयूसीएल की ओर से मुठभेड़ पर सवाल उठाया। यूपी सरकार ने मुठभेड़ की जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का न्यायिक आयोग बनाने की बात कही थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने इस पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद आज उच्चतम न्यायालय ने इसमें बदलाव की बात कही। इसके अलावा याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख ने कहा कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के मीडिया में आए बयानों से भी साफ है कि मुठभेड़ स्वाभाविक नहीं थी। इस पर सीजेआई ने सॉलिसीटर जनरल से कहा कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बयानों को भी देखा जाए। अगर उन्होंने कोई ऐसा बयान दिया है और उसके बाद कुछ हुआ है तो इस मामले को भी देखना चाहिए।

गौरतलब है कि  2 जुलाई की रात कानपुर कि बिकरू गांव में विकास दुबे ने अपने साथियों के साथ मिलकर दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। इस हमले में सीओ समेत 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। घटना के बाद विकास दुबे फरार हो गया था। 9 जुलाई की सुबह को वो उज्जैन के महाकाल मंदिर में मिला था।जहां से यूपी एसटीएफ विकास दुबे को कानपुर ला रही थी। कानपुर की सीमा में आते ही 10 जुलाई की सुबह एसटीएफ की गाड़ी पलट गई थी, जिसके बाद विकास दुबे ने कथित तौर पर भागने की कोशिश की और पुलिस ने उसे मुठभेड़ में मार दिया।इस मुठभेड़ पर तमाम सवाल उठे, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की गई। उसी पर आज सुनवाई हुई है।

(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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