Tuesday, April 16, 2024

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जिगर मुरादाबादी का जन्मदिवस: कहां से बढ़ के पहुंचे हैं कहां तक इल्म-ओ-फ़न साक़ी

उर्दू अदब में शायर जिगर मुरादाबादी का एक अहम मुक़ाम है। अदब दोस्त उन्हें कल भी ग़ज़ल का शहंशाह क़रार देते थे, तो आज भी उनके बारे में यही नज़रिया आम है। फ़िराक़ गोरखपुरी, जिगर के समकालीन शायर थे। जिन्हें जोश...

जन्मदिवस पर विशेष: बेगम अख़्तर के बग़ैर ग़ज़ल अधूरी है

वे सरापा ग़ज़ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख़्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख़्तर अधूरी हैं और बेगम अख़्तर बग़ैर ग़ज़ल। देश-दुनिया में ग़ज़ल को जो बे-इंतिहा मक़बूलियत...

जन्मदिन पर विशेष: फ़ैज की गजलों से कांप उठती थी सत्ता की रूह

मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न माँग मैंने समझा था के तू है तो दरख्शाँ है हयात तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में बहारों को है सबात तेरी आँखों के सिवा दुनिया में...

फ़ैज़ की जयंतीः ‘अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं’

उर्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मुकाम एक अजीमतर शायर के तौर पर है। वे न सिर्फ उर्दू भाषियों के पसंदीदा शायर हैं, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतनी ही शिद्दत से मोहब्बत करते हैं।...

जयंतीः तरक्कीपसंद शायरी में गजल को मुक़ाम दिलाने वाले शायर मजरूह सुलतानपुरी

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवां बनता गया उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर की पहचान बन गए और आज भी सियासी, समाजी महफिलों और तमाम ऐसी बैठकों में...

मजरूह सुल्तानपुरी की पुण्यतिथि: मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर…

’‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर/ लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’’ उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर की पहचान बन गए और आज भी सियासी, समाजी महफिलों और तमाम ऐसी बैठकों...

सबसे मीठी, लेकिन बेहद गुस्सैल जुबान है उर्दू : संजीव सराफ

उर्दू पर दिल्ली में होने वाला सालाना जलसा जश्न-ए-रेख्ता पिछले दिनों भारी भीड़ के साथ संपन्न हुआ। एक भाषा को लेकर इतने सारे लोगों की मोहब्बत देखकर एकबारगी किसी को भी ताज्जुब हो सकता है। उर्दू की रगें झनझनाने...

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पश्चिम बंगाल चुनाव: मौत के आंकड़ों का खौफ

पूरे देश के साथ पश्चिम बंगाल में भी लोकसभा चुनाव हो रहा है। पर पश्चिम बंगाल में जब भी...