Friday, March 29, 2024

literature

जन्मदिवस पर विशेष: आधुनिक हिंदी के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने साहित्य को ‘जन’ से जोड़ा

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था। 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की पतनशील सामन्ती संस्कृति की...

पुस्तक समीक्षा: अपने समय के सच को उजागर करती मारक विमर्श की कविताएं

पुस्तक समीक्षा:  कवि पंकज चौधरी समाज की वर्तमान अवस्था पर पैनी नज़र रखने वाले विलक्षण कवि हैं। इनकी कविता के परिसर में नकली यथार्थ और बिम्ब का प्रवेश वर्जित है। वह सामाजिक मुद्दों को शब्दों के घटाटोप से ढकने...

पुन्नी सिंह का साहित्य प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाता है- वीरेन्द्र यादव

शिकोहाबाद। उत्तर प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की शिकोहाबाद इकाई ने वरिष्ठ कथाकार पुन्नी सिंह के नये उपन्यास 'साज कलाई का, राग ज़िंदगी का' के लोकार्पण और इस पर केन्द्रित एक परिचर्चा का आयोजन रखा। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि...

जुबान और भाषा किसी मजहब की बपौती नहीं- जावेद अख्तर    

मशहूर तरक्कीपसंद अदीब और नगमाकार जावेद अख्तर को इस बात पर गहरा अफसोस है कि उर्दू को सिर्फ मुसलमानों की जुबान मान लिया गया है। पाकिस्तान दौरे के बाद चंडीगढ़ आए जावेद अख्तर ने कहा कि अगर उर्दू महज...

जनपक्षीय कवि, लेखक, पत्रकार सुरेश सलिल की स्मृति में

हिंदी, साहित्य और पत्रकारिता में अमूल्य योगदान करने वाले 19 जून 1942 को जन्मे जनपक्षीय कवि, लेखक सुरेश सलिल अपने लेखन, संपादन, पत्रकारिता तथा अनुवाद से आजीवन मानवता की सेवा करने के बाद 22 फरवरी को दुनिया को अलविदा...

देवेंद्र सत्यार्थी: लोकगीतों में धड़कती जिंदगी

देवेंद्र सत्यार्थी एक विलक्षण इंसान थे। पूरे हिंद उपमहाद्वीप में उनकी जैसी शख़्सियत शायद ही कोई हो। वे उर्दू-हिंदी-पंजाबी जुबान के अज़ीम अदीब थे। मगर इन सबसे अव्वल उनकी एक और शिनाख़्त थी, लोकगीत संकलनकर्ता की। अविभाजित भारत में...

प्रकट-प्रछन्न जंज़ीरों से दबी कुचली इंसानियत की मुक्ति का गान हैं मोहन की कविताएं 

दलित साहित्यकारों और एक्टिविस्टों ने आधुनिकता के मुहावरे और ढांचे में अपने संघर्ष को स्थापित किया है। मूल्यों के असमान हिंदू सिस्टम के खिलाफ उन्होंने तार्किकता और सार्वभौमिकता के विचार निबद्ध किए हैं। वे दलित चेतना में बाहरी घुसपैठ...

जयंती पर विशेष: वर्तमान में नहीं रही प्रेमचंद युग की पत्रकारिता

वाराणसी। प्रेमचंद जी कहते हैं कि समाज में ज़िन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहां गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज़्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के...

डॉ. पीएन सिंह: बौद्धिक आकाश को नया क्षितिज देने वाला अलहदा तारा

डॉ.परमानंद सिंह यानी पीएन सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके जाने से सचमुच शदीद रंज-ओ-मलाल है। वे आला मार्क्सवादी नक़्क़ाद और बेहद ज़हीन दानिशवर थे। समूचे हिंदी साहित्यिक एवं एकेडमिक जगत में उनकी आर्गेनिक जनबुद्धिजीवी के तौर पर...

यह देश पहले भी कुछ कम अंधेरों से नहीं गुजरा, लेकिन कभी हारा नहीं, आगे भी नहीं हारेगा: विजय बहादुर सिंह 

देश के हिन्दी के जाने-माने आलोचकों में से एक विजय बहादुर सिंह को आमतौर पर उनकी देशज प्रतिमानों की सुगंध वाली आलोचना दृष्टि, भवानीप्रसाद मिश्र व दुष्यंत कुमार जैसे कवियों और आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी की रचनावलियों के श्रमसाध्य...

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हरियाणा में भाजपा की हालत इतनी पतली कि 10 में से 6 उम्मीदवार पूर्व कांग्रेसी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी के नाम पर चुनाव मैदान में उतरी भाजपा भले ही अबकी बार चार सौ...