Monday, June 5, 2023

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पुस्तक समीक्षा: अपने समय के सच को उजागर करती मारक विमर्श की कविताएं

पुस्तक समीक्षा:  कवि पंकज चौधरी समाज की वर्तमान अवस्था पर पैनी नज़र रखने वाले विलक्षण कवि हैं। इनकी कविता के परिसर में नकली यथार्थ और बिम्ब का प्रवेश वर्जित है। वह सामाजिक मुद्दों को शब्दों के घटाटोप से ढकने...

पाश: ज़िस्म कत्ल होने से फलसफा और लफ्ज़ कत्ल नहीं होते!        

पाश न महज पंजाबी कविता बल्कि समूची भारतीय कविता के लिए एक जरूरी नाम हैं। जब भी भारतीय साहित्य की चर्चा होगी, उनका उल्लेख जरूर आएगा। उनका जीवन और कला दोनों महान हैं। उन्हें क्रांति का कवि कहा जाता...

प्रकट-प्रछन्न जंज़ीरों से दबी कुचली इंसानियत की मुक्ति का गान हैं मोहन की कविताएं 

दलित साहित्यकारों और एक्टिविस्टों ने आधुनिकता के मुहावरे और ढांचे में अपने संघर्ष को स्थापित किया है। मूल्यों के असमान हिंदू सिस्टम के खिलाफ उन्होंने तार्किकता और सार्वभौमिकता के विचार निबद्ध किए हैं। वे दलित चेतना में बाहरी घुसपैठ...

पहाड़ की खुरदुरी जमीन पर मोहन मुक्त ने खड़ा किया है कविता का हिमालय

वो तुम थे एक साधारण मनुष्य को सताने वाले अपने अपराध पर हँसे ठठाकर, और अपने आसपास जमा रखा मूर्खों का झुंड  अच्छाई को बुराई से मिलाने के लिए, कि न छंट सके धुंध, बेशक हर कोई झुका तुम्हारे सामने कसीदे पढ़े तुम्हारी शराफ़त...

अजय सिंह की कविताएं करती हैं सीधे दुश्मन की शिनाख्त 

नई दिल्ली। गुलमोहर किताब ने वरिष्ठ कवि अजय सिंह की नई किताब 'यह स्मृति को बचाने का वक़्त है' पर चर्चा और कविता पाठ का आयोजन दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में किया, जिसमें बड़ी संख्या में कवियों, आलोचकों,...

जयंती पर विशेष: अकेले को सामूहिकता और समूह को साहसिकता देने वाले धूमिल

सुदामा पाण्डेय यानी धूमिल ताउम्र जिन्दा रहने के पीछे मजबूत तर्क तलाशते रहे। कहते रहे ‘तनों अकड़ो अपनी जड़ें पकड़ो, हर हाथ में गीली मिट्टी की तरह हां-हां मत करो।’ मौजूदा जनतंत्र को मदारी की भाषा कहने वाले धूमिल...

जयंती पर विशेष : व्यवस्था के खिलाफ मुक्तिबोध में दबा बम धूमिल में फट पड़ा!

‘क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई मतलब होता है?’ हिन्दी कविता के एंग्रीयंगमैन सुदामा पांडे ‘धूमिल’ने अब से कई दशक पहले यह जलता व चुभता हुआ सवाल...

एक था बीकू: बेटे की याद में कॉमरेड येचुरी को याद आई महाकवि निराला की कालजई कविता

नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में 1980 के दशक के प्रारंभ में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) के अधिकतर सदस्य छात्र-छात्राएं भी उनके माता-पिता की तरह उनके बचपन में उन्हें बीकू कहते थे। उनका औपचारिक...

पूंजी की सभ्यता-समीक्षा के कवि मुक्तिबोध

मुक्तिबोध गहन संवेदनात्मक वैचारिकी के कवि हैं। उनके सृजन-कर्म का केंद्रीय कथ्य है-सभ्यता-समीक्षा। न केवल कवितायें बल्कि उनकी कहानियां, डायरियां, समीक्षायें तथा टिप्पणियां सार रूप में सभ्यता समीक्षा की ही विविध विधायें हैं, वह जो उपन्यास लिखना चाहते थे,...

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