पूंजी की सभ्यता-समीक्षा के कवि मुक्तिबोध

मुक्तिबोध गहन संवेदनात्मक वैचारिकी के कवि हैं। उनके सृजन-कर्म का केंद्रीय कथ्य है-सभ्यता-समीक्षा। न केवल कवितायें बल्कि उनकी कहानियां, डायरियां,…

आलोचना पत्रिका के बहानेः बाजार और जंगल के नियम में कोई फर्क नहीं होता!

पांच दिन पहले ‘आलोचना’ पत्रिका का 62वां (अक्तूबर-दिसंबर 2019) अंक मिला। कोई विशेषांक नहीं, एक सामान्य अंक। आज के काल…

पुस्तक समीक्षा: झूठ की ज़ुबान पर बैठे दमनकारी तंत्र की अंतर्कथा

“मैं यहां महज़ कहानी पढ़ने नहीं आया था। इस शहर ने एक बेहतरीन कलाकार और प्रतिभाशाली रचनाकार को निगल लिया…

प्रशांत ने स्वीकार की सजा, भरेंगे 1 रुपये का जुर्माना

नई दिल्ली। वरिष्ठ वकील और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि वह सुप्रीम…

सुप्रीम कोर्ट की आरक्षण की समीक्षा की बात लोकतंत्र और सामाजिक न्याय विरोधी

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच केन्द्र सरकार मेहनतकशों के प्रति चरम क्रूरता दिखा रही है तो दूसरी तरफ संकट…

पंकज बिष्ट के योगदान का मूल्यांकन

पंकज बिष्ट पर यह विशेषांक क्यों?… इस सवाल का जवाब देने से पहले संक्षेप में ‘बया’ के पंद्रहवें वर्ष में…