Friday, April 19, 2024

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‘सुशांत’ से जो बचेगा उसे हरिवंश करेंगे पूरा! राज्यसभा उपसभापति के लिए एनडीए की तरफ से भरा पर्चा

बिहार चुनाव से पहले सवर्णों के एक प्रभावी तबके से आने वाले राज्य सभा सांसद हरिवंश उपसभापति के उम्मीदवार हो गए हैं और उन्होंने आज अपना नामांकन का पर्चा भी दाखिल कर दिया। जदयू राज्य सभा सांसद हरिवंश पहले...

हरिवंश पर दूसरी किश्त: तो क्या सरकार उस कोयले के आयात पर रोक लगा देगी जिसमें अडानी की एक तिहाई हिस्सेदारी है?

अब देखें कि भारत में आयात किस तरह के कोयले का किया जाता है और कौन हैं इसके आयात करने वाले। भारत में कोयले से 72% बिजली का उत्पादन होता है। 200 मिलियन मीट्रिक टन कोयले के सालाना आयात में...

तुषार मेहता जी! जनहित याचिकाएं न होतीं तो यूपीए सरकार न उखड़ती और न ही बीजेपी आती सत्ता में

यदि यूपीए-2 सरकार शुरू से ही भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों में न घिरी रही होती और टूजी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले, आदर्श सोसाइटी घोटाला, कोयला खदानों की बंदरबांट और रेलवे में घूसखोरी जैसे कई अहम मामलों में जनहित याचिकाएं न दाखिल की...

सोने का अंडा देने वाली मुर्गी एलआईसी को जबा करने की तैयारी

नए साल में एलआईसी फिर एक बार मुश्किलों में घिरी नजर आ रही है। मार्केट के बड़े-बड़े डिफॉल्टरों जैसे अनिल अंबानी की कंपनियों और डीएचएफएल के डूबने का असर एलआईसी पर अब दिखने लगा है। एलआईसी ने मार्च में...

शाह का पकड़ा गया झूठ, गृह मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है, ‘एनआरसी को लागू करने का पहला कदम है एनपीआर’

पूरा देश नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में सुलग रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ऐसे बयान दे रहे हैं जिनकी काट सरकारी दस्तावेजों में ही माजूद है। सीएए के साथ एनआरसी पर धरना,...

“लंपट हिंदी एंकरों को देखकर मोदी के समर्थक भी रोते होंगे”

ट्रोल का नेटवर्क कितना विशाल हो चुका है आपको अंदाज़ा लगता ही रहता होगा। इन्हें लगता है कि ये जब चाहेंगे तभी कुछ भी फैला कर पहले दुनिया को अंधेरे में रखेंगे और फिर उसे कुएं में धकेल देंगे। मेरे मनीला...

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लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।