(लोकतंत्र को कीलतंत्र में बदलने वाली मोदी सरकार दरअसल अपने पितृ पुरुषों के बताए आदर्शों पर ही चल रही है। उन्हें न तो कभी अहिंसा रास आयी और न ही उन्होंने कभी गांधी को पसंद किया। जीवन भर उन्होंने शक्ति को ही सत्ता का प्रमुख स्रोत माना और हथियारों की पूजा की। अनायास नहीं ‘वीर भोग्या वंसुधरा’ उनका प्रमुख सूत्र वाक्य हुआ करता था। यह बात किसी को भूलनी नहीं चाहिए कि संघ ने हमेशा बुद्धि की जगह शारीरिक बल को प्राथमिकता दी। वह घर हो या कि परदेस चीजों को नापने और उसको तय करने का उसका वही पैमाना रहा है। लेकिन शायद वह भूल गया कि लोकतंत्र के भीतर यह सिद्धांत काम नहीं करता है।
एकबारगी अगर जनता खड़ी हो गयी तो फिर सत्ता की कितनी भी बड़ी ताकत हो उसे झुकना ही पड़ता है। वैसे भी लोकतंत्र में सत्ता का निर्माण जनता ही करती है। ऐसे में अपने द्वारा पैदा की गयी किसी चीज को खत्म करने का न केवल अधिकार बल्कि क्षमता भी उसी में है। लेकिन शायद यह बुनियादी बात मोदी सरकार को समझ में नहीं आ रही है। अब जब कि किसान गांधी के रास्ते पर चल रहे हैं तो सत्ता ने उनके साथ कील-कांटों और बैरिकेड्स के गोडसे खड़े कर दिए हैं। तब एक बार फिर वह पूरे आंदोलन को ताकत के बल पर दबाने की कोशिश कर रही है। लेकिन जनता कोई व्यक्ति नहीं बल्कि व्यक्तियों का समूह है। और ताकत के मामले में भी वह हर चीज पर भारी है। ऐसे में कहा जाए तो संघ के ताकत के दायरे में भी वह उसे परास्त करने की क्षमता रखती है। तन्मय त्यागी का नया कार्टून पेश है-संपादक)

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