दिल्ली से सटे बॉर्डरों पर किसानों के लिए लगाए गए कील और कटीले तार महज अवरोधक नहीं बल्कि वो सत्ता की मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं। वो बताते हैं कि सत्ता कैसे अपने ही नागरिकों को दुश्मन समझ रही है। जिस सरकार को घुसपैठी चीनी सैनिकों के खिलाफ लड़ना चाहिए था उसने अपने ही किसानों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। एक नागरिक या फिर समूह के तौर पर किसी व्यक्ति या फिर संगठन को शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने का हक है और यह अधिकार उसको संविधान देता है। लेकिन मोदी सरकार इस न्यूनतम हक को भी देने के लिए तैयार नहीं है। बात यहीं तक सीमित रहती तो भी कोई बात नहीं थी। ढाई महीने से हाड़ कंपाने वाली सर्दी और शीतलहर के बीच बैठे किसानों को सुना जाता और उनकी मांगें पूरी की जातीं। ऐसा करने की बजाय संसद के भीतर खुलेआम उनका मजाक उड़ाया जा रहा है। और इस काम को उस शख्स ने किया है जो इस समय सत्ता के शीर्ष पर है। लेकिन मोदी साहब को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आंदोलनजीवी नहीं होते तो आज वो पीएम की कुर्सी पर भी नहीं होते। मोदी जी होते जरूर लेकिन प्रधान सेवक नहीं बल्कि अंग्रेजों के सेवक के रूप में। जिसमें वह खुद और उनका पितृ संगठन मिलकर अंग्रेजों के इशारे पर कहीं दंगा करा रहे होते। तन्मय त्यागी ने कील और कांटे से जुड़ा कार्टून बनाया है। पेश है उनका यह नया कार्टून।

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