अंबेडकर के विचारों को मिटाने की हो रही है साजिश

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लखनऊ। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 133वीं जयंती के उपलक्ष्य में इंसाफ मंच लखनऊ द्वारा सरोजनी नगर के दरोगा खेड़ा, हुल्ली खेड़ा, कांशीराम कालोनी तथा रानीपुर में सभा का आयोजन किया गया। इन्हें सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि मीना सिंह ने कहा कि नागरिकों के और खासतौर पर वंचितों के संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि लखनऊ में जगह-जगह होर्डिंग लगी हुई हैं जिन पर पीएम मोदी साधु के भेष में दिखाई दे रहे हैं और कह रहे हैं कि विकास भी और विरासत भी। मोदी जी किस विरासत की बात कह रहे हैं भारत की विरासत क्या है? राजशाही, सामंत शाही या ब्राह्मणवाद के अलावा क्या कोई और विरासत रही है? 

अगर नहीं तो क्या मोदी सरकार संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ रही है? क्योंकि संविधान के रहते विरासत को वापस नहीं लाया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में घूमते हुए महसूस होता है कि अंबेडकरवाद को यानी अंबेडकर के विचार को मिटाया जा रहा है। कई स्थानों पर बाबा साहेब की फोटो व मूर्ति की लोगों के द्वारा पूजा की गई, लड्डू चढ़ाए गए, साथ ही महा भंडारा किया गया। भंडारा करने के लिए भाजपा नेताओं के द्वारा फंड दिया गया है। एक शब्द में कहे तो अंबेडकर को भगवान बनाया जा रहा है। ऐसा महसूस हो रहा है कि देश से अबेडकरवाद को खत्म करने की साजिश की जा रही है।

मुख्य वक्ता के रूप में JNU के शोध छात्र आइसा नेता नितिन राज ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने भारतीय दलित-मजदूर वर्ग और आम जनमानस के लिए ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद को खतरा बताया। ब्राह्मणवाद जो सामाजिक गैर बराबरी और पूंजीवाद जो आर्थिक गैर बराबरी की व्यवस्था है, उसे उन्होंने हमारे समाज की प्रगति के लिए एक रुकावट बताया और इनको नष्ट करने के लिए उन्होंने अपने जीवन में अनेक काम किए और आवाहन किया। 

आंबेडकर ने संविधान की रचना के साथ यह माना था की इसके लागू होने के बाद भारतीय समाज विरोधाभासों में प्रवेश करेगा जिनके अनुसार किताबी तौर पर हम सभी के पास अधिकार होंगे, लोकतंत्र की अवधारणा होगी लेकिन सामाजिक गैर बराबरी और समाजवाद के अभाव के कारण असल में सभी के पास बराबर अधिकार नहीं होंगे। 

उन्होंने भारत की संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के लिए संविधान का एक मसौदा ‘राज्य और अल्पसंख्यक’ के नाम से तैयार किया। इस मसौदे में उन्होंने कृषि योग्य सभी जमीनों और बड़े उद्योगों के राष्ट्रीयकरण की बात की। उन्होंने इसमें भारत में राजकीय समाजवाद लागू किए जाने की बात की। वे एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी मानते थे। आज हम देख रहे हैं किस तरह से औद्योगिक क्षेत्रों को निजी हाथों में बिना किसी लगाम के सौंप दिया जा रहा है, श्रमिक कानूनों में बदलाव लाया जा रहा है तो हम देख सकते है कि यह अंबेडकर के विचार पर प्रहार किया जा रहा है। 

हम देख सकते हैं कि तमाम तरह से संघवाद को कमजोर किया जा रहा है। एक देश एक भाषा, एक चुनाव, एक परीक्षा की आड़ में भारत की विविधता का मखौल उड़ाया जा रहा है। आम्बेडकर का मानना था कि शिक्षित होना जरूरी है लेकिन आज हम देख पा रहे हैं कि कैसे तमाम विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर की भर्ती में राजनीतिक धांधली हो रही है कुछ गिने चुने  लोगों को नियुक्त किया जा रहा है, जो अयोग्य है पर आरएसएस से जुड़े हुए हैं। तमाम तरह से सिर्फ संविधान ही नहीं बल्कि अंबेडकर के सपनों के भारत को निशाना बनाया जा रहा है और उसे खत्म करने की कवायद चल रही है।

सभा का संचालन ओमप्रकाश राज ने किया। अध्यक्षता राकेश रावत व स्वागत राम नरेश जी ने किया। सभा में उपस्थित प्रमुख लोग आरबी सिंह, राजेश अंबेडकर, मीना रावत, सपना, अंजू, रेनू सिंह, रोज मोहम्मद व अमर नाथ सिंह आदि।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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