अंतर्घाती मोदी सरकार के खिलाफ किसानों और भारत के जन-जन की हुंकार

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आरएसएस और मोदी ने भारत को अंदर से खोखला करने के अपने अंतर्घातमूलक अभियान का प्रारंभ सत्ता पर आने के साल भर के अंदर ही 2015 के उस रफाल विमानों के सौदे से शुरू किया था, जिसमें 126 विमानों के पहले के सौदे को विकृत करके उसे दोगुने दाम पर सिर्फ 36 विमानों के सौदे में बदल दिया गया और साथ ही भारत में ही उनके उत्पादन की संभावनाओं को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया गया।

इसके साल भर के अंदर ही 2016 में पहले बैंकरप्सी एंड इनसोल्वेंसी एक्ट से बैंकों की खुली लूट का रास्ता खोला गया और फिर उसी साल के अंतिम महीनों में नोटबंदी के ज़रिए हर घर को लूटने का क़दम उठाया। उसके साल भर के अंदर ही 2017 में जीएसटी के ज़रिए छोटे और मंझोले व्यापारियों के जीवन को दु:स्थ किया तथा इसके साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में विदेशी पूंजी के अबाध प्रवेश के रास्ते खोल कर पूरी अर्थ-व्यवस्था को नष्ट कर दिया। पड़ोसी देशों से संबंध बिगाड़ कर भारतीय वाणिज्य के विकास की एक बड़ी संभावना को नष्ट किया गया और भारत को साम्राज्यवादियों के हथियारों की खपत का एक बड़ा क्षेत्र बना दिया।

ज़ाहिर है कि यह सब साम्राज्यवादियों और उनके दलाल पूंजीपतियों के हितों को साधने के लिए किया जाता रहा। पूरे देश में सांप्रदायिक हिंसा भड़का कर और जनता के जनवादी अधिकारों को छीन कर भी उनके हित ही साधे जाते रहे।

इसमें एक मात्र कृषि क्षेत्र और भारत का असंगठित क्षेत्र देश की सार्वभौमिकता और जनता के जीने के सहारे के तौर पर बचे हुए थे। कोरोना के दुर्भाग्यजनक काल में मोदी ने सुचिंतित ढंग से अपने लॉकडाउन के अविवेकपूर्ण क़दम और तीन कृषि क़ानूनों से इन पर ऐसा प्राणघाती हमला कर दिया। इसके बाद, अब पूरे राष्ट्र के सामने इस सरकार के खिलाफ प्रतिरोध युद्ध में गर्जना करते हुए उतर पड़ने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं बचा है।

भारत के किसानों का ऐतिहासिक संघर्ष भारत की जनता के इसी महायुद्ध के बिगुल की तरह है। इस लड़ाई से जनता का कोई भी हिस्सा, जिनमें सेना-पुलिस भी शामिल हैं, ज़्यादा समय तक अपने को अलग नहीं रख पाएगा।

इस संघर्ष का एक ही पैग़ाम है कि भारत मुट्ठी भर देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों का नहीं, भारत के मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, महिलाओं, मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों और छोटे-छोटे लाखों कारोबारियों और लघु उद्योगपतियों का देश है। मोदी-आरएसएस इस देश को अंदर से नष्ट और विखंडित करने पर उतारू हैं। संघर्ष की यही घोषणा है कि किसी को भी इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। उन सबको इतिहास के कूड़े पर फेंक दिया जाएगा।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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