एक आदिवासी महिला देश की राष्ट्रपति बनी, दूसरी बेरहम पिटाई के बाद खेत में हुई बेहोश

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रांची। देश की पहली आदिवासी महिला के तौर पर जब द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद का शपथ ले रही थीं उसी समय झारखंड में दो आदिवासी महिलाओं की बेरहमी से पिटाई की जा रही थी। और उनको इतना पीटा गया कि वो बेहोश हो गयीं। इनमें एक महिला छह महीने की गर्भ से है। और यह सब कुछ कर रही थी झारखंड के वनविभाग और राज्य की पुलिस। घटना गढ़वा जिले के रंका थाना क्षेत्र की है।

बताया जा रहा है कि छह महीने की गर्भवती आदिम जनजाति कोरवा समुदाय से आने वाली सुनीता अपने खेत में काम कर रही थी। उसी समय वनकर्मियों और पुलिस की संयुक्त टीम उनके खेत पर पहुंची और बेरहमी से उनकी पिटाई शुरू कर दी। और यह पिटाई तब तक जारी रही जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गयीं। पिटाई करने वाली पुलिस और वनकर्मियों की इस टीम में पांच लोग शामिल थे।

इसी तरह विमला देवी को भी वन विभाग के गार्डों ने डंडों से मार-मार कर जमीन पर सुला दिया। इस वारदात को वन कर्मियों ने गढ़वा जिले से करीब 40 किमी दक्षिण में स्थित रंका थाना के लूकुम्बार गाँव में 27 जुलाई को दिन में 2 बजे अंजाम दिया।

घटना के सम्बन्ध में ग्रामीणों ने बताया कि वनकर्मी जिसमें गार्ड और रंका थाना के 3 पुलिस जवान भी शामिल थे, आकर कोरवा समुदाय के घरों और खेतों में रखे खेती के औजारों मसलन हल और जुआठ वगैरह को जब्त कर ले जाने लगे।

उस वक्त टोले के अधिकांश पुरुष अपने जानवरों को चराने और मजदूरी करने गए हुए थे। महिलाओं ने वनकर्मियों की इन हरकतों का खुलकर विरोध किया। तो इस पर वनकर्मियों ने अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करते हुए मारपीट शुरू कर दी। इस प्रक्रिया में कई महिलाएँ घायल हो गयीं। लेकिन जंगली रास्ता होने और वाहनों की सुविधा न होने के कारण इलाज कराने नहीं जा पायीं।

बताते हैं कि वन कर्मी तीन गाड़ियों में आये थे, जिसमें से एक कमान्डर जीप जिसका नम्बर 0922 है। इसके अलावा दो सफ़ेद बोलेरो वाहन थे। आपको बता दें कि लुकुम्बार ग्राम सभा के सभी लोगों ने वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत सामुदायिक एवं व्यक्तिगत पट्टा के लिए अनुमण्डल स्तरीय समिति में सम्पूर्ण क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए 20 जुलाई 2020 को अपने दस्तावेज सुपुर्द कर दिए थे। अनुमंडलाधिकारी ने पत्रांक 762 दिनांक 16 नवम्बर 2021 के हवाले से बताया है कि कोविड 19 के कारण किसी तरह के सामुदायिक दावा पत्रों पर कार्यवाही नहीं की जा सकी है।

वन अधिकार कानून 2006, अध्याय 3 की उपधारा 4 (5) में स्पष्ट उल्लेख किया गया है – जैसा कि अन्यथा उपबन्धित है, उसके सिवाय, किसी भी वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परम्परागत वन निवासियों का कोई सदस्य उसके अधिभोगाधीन वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जायेगा या हटाया जाएगा, जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। वन विभाग के अधिकारियों ने इस क़ानूनी धारा का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन किया है।

इस घटना के बाद गांव के लोगों में बेहद रोष है। और वो लोग अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। ग्रामीण वन कर्मियों के विरुद्ध अदालती कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटेंगे। ऐसा उनका कहना है। उनका कहना है कि वे अंतिम साँस तक अपने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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