पाकिस्तान के नाम पर एका: भारत सरकार की बड़ी कामयाबी 

Estimated read time 1 min read

पहलगाम के विख्यात पर्यटन केंद्र में हुई मौतों के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है।इसके बदले में भारत ने पाकिस्तान से ना केवल अपने ताल्लुकात तोड़ दिए बल्कि पाकिस्तान के लोगों के लिए देश छोड़ने का अल्टीमेटम भी जारी कर दिया है। इतना ही नहीं सिंधु नदी के करार को तोड़ कर उसे पानी और खाद्यान्न उत्पादन के संकट में डाल दिया है। इससे भाजपा और मुस्लिमों से बैर रखने वालों में खुशी की लहर देखी गई।

यह सब उस समय हो रहा है जब भाजपा चतुर्दिक संकटों से घिरी है। लगता है इससे देश का अंदरूनी संकट टल जाएगा। आगत चुनावों में कामयाबी हासिल हो जाएगी। देश में एक बार फिर भाजपा और मोदी जी की छवि सुदृढ़ हो जाएगी। बाहरी तौर पर अभी हालात सुधरते नज़र भले आएं किंतु सच्चाई यह है कि उनकी हिंदू मुस्लिम करने की अवधारणा को कश्मीर वासियों ने अपनी सेवा और आतंकियों के खिलाफ जो एकजुटता दिखाई है उससे उन्हें गहरा धक्का लगा है। मारे गए पीड़ित परिवार जनों की जिस तरह से कश्मीरी लोगों की मेहमानवाजी और सेवा सुश्रुषा, जान गंवाकर की वह भारतीयता की पुरातन मज़बूती का प्रमाण है।

जिनके विरुद्ध रात दिन आग उगली जाती है। महाकुम्भ हादसे के दौरान भी मैदानी मुस्लिम लोगों ने जिस शिद्दत से लोगों को संबल दिया। वह भी सच्चे भाईचारे का प्रतीक है। हालांकि आज़ादी के इतिहास से लेकर भारत-पाक और चीन युद्धों में भी उनकी भूमिकाओं का उल्लेख सराहनीय रहा है। दरगाहों पर मन्नत की चादर सिर्फ़ यहां नहीं पाकिस्तान में लालकृष्ण अडवाणी जी भी चढ़ाते हैं। यह एका कायम रहे तो देश खुशहाल रहेगा।

अब पाकिस्तान के तमाम मुसलमान भारत के दुश्मन बना दिए जाएं यह उचित नहीं है। सिंधु के जल को रोकना अमानवीयता का परिचायक है और मानवाधिकार का उल्लंघन भी। एक क्षण को सोचिए यदि ब्रह्मपुत्र जैसे विशाल नदी का पानी चीन रोक दे तो हमारे देश के एक बड़े भू भाग का क्या हश्र होगा?

ये निर्णय त्वरित रूप से खुशी दे सकते हैं किंतु इसके दूरगामी परिणाम हमें भुगतने होंगे। इससे ज़रूरी यह था कि अपनी गलतियों के बारे में विमर्श होता। यही तो सबसे बड़ा सवाल है कि धारा 370/35ए का क्या हुआ जिसमें आतंकी हमले ख़त्म करने का वादा था। आश्चर्यजनक है कि घुसपैठिए आसानी से प्रविष्ट हुए, वो भी ऐसी जगह जहां सुरक्षा के इंतज़ामात नहीं थे। उन्होंने पर्यटकों को मारा और उतने ही सहजता से पाकिस्तान भी पहुंच गए। आखिरकार कश्मीर वासियों और पर्यटकों की ये कैसी सुरक्षा थी?

लगता तो बार बार यही है कि दाल में कुछ काला है। क्या उन्हें किसी ने बुलवाया था और सुरक्षित जाने दिया। यदि नहीं तो क्या यह काम सरकार की मंशानुरूप जानबूझकर हुआ। जहां तक कश्मीर के रहवासियों का सवाल है वे ऐसा हरगिज नहीं कर सकते।

हो सकता है, इस मामले की शांति के बाद कोई संजीव भट्ट इसकी पोल खोल कर रख दे। जैसी जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल ने पुलवामा की हकीकत बताई थी और भारत सरकार को दोषी ठहराया था। बहरहाल सत्य जब तक सामने नहीं आता तब तक भारत सरकार को यहां की सुरक्षा की अव्यवस्था को जिम्मेदार माना जा सकता है।

एक संभावना रक्षा मंत्री राजनाथ की बात से भी झलकती है कि वो जिस अंदरूनी सहयोग की बात कर रहे हैं और उसे नहीं बख्शेंगे कह रहे हैं वो शख्स उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री हो सकते हैं। क्योंकि उनकी जम्मू-कश्मीर की पूर्ण दर्जे की मांग भाजपा का सर दर्द बन चुकी है। इसलिए संभवतः इस बहाने उनकी सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है। वैसे भी याद कीजिए जम्मू-कश्मीर में अमन शांति की बैठक से गृहमंत्री ने उमर अब्दुल्ला को बाहर कर दिया था। उसके बाद ही ये घटना होती है।

कुल मिलाकर अभी तक साजिशों और झूठ की बुनियाद पर खड़ी भाजपा सरकार कुछ भी कर सकती है। साहिब की संवेदनशीलता भी मज़ाक बन गई जब वे बिहार चुनाव के मद्देनजर इतनी बड़ी घटना के दर्द से बेखबर मधुबनी में सभा सम्बोधित करते हैं। देखना, यह है कि पाक में अचानक बिन बुलाए मेहमान बनकर जाकर बिरियानी खाने वाले और मां को शाल ओढ़ाने वाले कैसे अपनी बात पर अडिग रहते हैं या यह गीदड़ भभकी साबित होती है। क्योंकि वहां उनके चहेते गौतम अडानी का व्यापार भी प्रभावित होगा।

फिलहाल आइए खुश हो लें, हमारा देश पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयार हो चुका है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author