पलिया (लखीमपुरखीरी)। चुनाव प्रचार के लिए कुछ दिन लखीमपुर (पलिया) के कई गाँवों में जाना हुआ। वहाँ पलिया विधानसभा क्षेत्र से ऐपवा जिला अध्यक्ष व प्रदेश उपाध्यक्ष आरती राय भाकपा माले की उम्मीदवार थीं।

पलिया कस्बे के थारू (निराला नगर) में लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि यहाँ भी विकास के नाम पर सिर्फ झूठ ही परोसा जा रहा है। गरीबों, महिलाओं के पास न रोजगार है, न आवास, न ही उज्ज्वला। लोगों ने बताया कि रोजमर्रा की चीजों, खासतौर पर रसोई से सम्बंधित चीजों के दाम आसमान छूने से उनकी जिंदगी की मुश्किलें पहले की तुलना में काफी बढ़ गई हैं। पूरे महीने भर का काम भी नहीं मिलता है और यदि कभी मिलता भी है तो मजदूरी 150 से लेकर 200 रुपए तक की ही अब मिलती है। इस महंगाई में इतने कम पैसे में हम अपना घर परिवार कैसे चलाएं। दो साल से हमारे बच्चे स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। जो कुछ पढ़ना लिखना शुरू किये थे, अब तो वह सब भी भूल गए हैं। अब जब दो साल बाद स्कूल खुले हैं तो बच्चे जाना नहीं चाहते है, कहते हैं कि जो पढ़े थे सब भूल गए हैं। इलाके में विकास के नाम पर टूटी-फूटी, कीचड़ भरी सड़कें ही दिखाई पड़ती हैं। एक विधवा महिला अपना छ्प्पर का घर दिखाते हुए बोली “देख लीजिए हम लखपति का घर ! हमें तो विधवा पेंशन भी नहीं मिलती है।”

पलिया विधानसभा क्षेत्र के संपूर्णानगर के मझरा गाँव में घूमते हुए जब जनचौक टीम एक सज्जन के घर के बाहर बैठकर कुछ लोगों से बातचीत कर रही थी, तभी कुछ दिन पहले ही खुले सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर घर आए बच्चे दिख गये। मैंने देखा कि स्कूल बैग के भीतर थाली रखी हुई है तो मैंने बच्चे से पूछा कि बेटा आप स्कूल थाली लेकर क्यों जाते हो? बच्चे ने बताया कि स्कूल में दलितों (भंगी) के बच्चे भी आते हैं, इसीलिए हम लोग अपना बर्तन लेकर जाते हैं और अपने ही बर्तन में खाना खाते हैं। बच्चे से बात हो ही रही थी कि तभी उसकी माँ भी आ गयीं और उन्होंने भी इसी बात को दोहराते हुए कहा “हम सब लोग अपने बच्चों को बर्तन देकर स्कूल भेजते हैं ताकि वे स्कूल के बर्तन में खाना न खाएं, क्योंकि वहाँ भंगी जाति के बच्चे भी आते हैं।”

मैंने पाया कि यह परिवार भी आर्थिक रूप से बेहद खराब हालत में है। न रहने के लिए पक्का मकान है न ही कोई स्थायी रोजी-रोजगार ही। राशन को छोड़कर और किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। लेकिन दिमाग में जाति विशेष के लिए नफरत अपनी जगह पर बरकरार है। बराबरी व समतामूलक समाज का निर्माण करना कम से कम वर्तमान शासन के बूते की बात तो नहीं है। ब्राह्मणवाद के पोषकों से ये उम्मीद की भी नहीं जानी चाहिए !
लाभार्थी योजनाओं के साथ ही ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे की पोल तब खुलकर सामने आ गई, जब हम लोग पलिया विधानसभा क्षेत्र के अतरिया गाँव में डोर-टू-डोर प्रचार अभियान चला रहे थे। मैंने देखा कि ज्यादातर लोगों के घर छप्पर के थे। मैंने लोगों से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने तो कहा है कि उन्होंने सभी गरीबों को लखपति बना दिया है, यानि सभी गरीबों को पक्का घर दे दिया है, फिर आप लोगों के घर छप्पर के क्यों है ? इस पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने मुझसे कहा कि आप खुद ही देख लीजिए इस गाँव के लखपतियों के घरों की तस्वीर।
इस गाँव के लोगों को न प्रधानमंत्री आवास, न ही उज्ज्वला योजना या शौचालय मिला है, यहाँ तक कि कुछ लोगों को राशन भी नहीं मिल रहा है। इसी गांव की रहबरी व निताजन जिनकी उम्र लगभग 65 -70 साल होगी ने बताया कि वे विधवा हैं, इस उम्र में मजदूरी भी नहीं कर पाती है, लेकिन उन्हें न विधवा पेंशन मिलती है न ही राशन। कहने लगीं “समझ में नहीं आ रहा है कि हम कैसे अपना जीवन यापन करें।” इसी गाँव की नूरजहाँ, गोरीजहाँ, संतरा व मैना ने बताया कि उन्हें राशन मिलता है, लेकिन उज्ज्वला, शौचालय व आवास अभी तक नहीं मिला है। मैना ने बताया “मैंने ग्यारह हजार रुपये भी दिए, लेकिन फिर भी आवास नहीं मिला”।

इस गाँव में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है। इसी गाँव से लगे हुए बड़ा गाँव की मायाजी व दिनेश यादव अपना छ्प्पर का घर दिखाते हुए बोले कि देख लीजिए कि हम कितनी मुश्किल से अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं। हमें सिर्फ राशन मिलता है और कुछ भी नहीं मिला। यही बात माया जी ने भी दोहराई।
पलिया विधानसभा क्षेत्र के ही कंधईपुर (नौकाझाला) की सोनपरी ने तो मोदी सरकार की गरीबों के लिए शुरू की गई योजनाओं, खासतौर पर स्वच्छ भारत की धज्जियां उड़ाते हुए बताया “मेरे पास खेत नहीं है, इसलिए टॉयलेट के लिए दूसरों के खेतों में जाना पड़ता है। अगर खेत मालिक अपने खेत में टॉयलेट करते हुए देख लेते हैं तो बुरी तरह से बेइज्जत करते हैं, गाली गलौज करते हैं और कहते हैं कि इसको उठाकर ले जाओ।” उनका कहना था, “इस महंगाई में जब हम गरीबों को जिंदा रहना ही मुश्किल हो गया है तो हम शौचालय कैसे बनवाएं।”
उन्हें आवास व उज्ज्वला योजना भी लाभ नहीं मिला है, पालीथिन तानकर किसी तरह से गुजारा कर रही हैं। राशन के नाम पर चावल-गेहूं मिलता है, वो भी अच्छा नहीं मिलता है। चावल में कंकड़-पत्थर बहुत ज्यादा रहता है। नमक के बारे में पता चला है कि उसकी गुणवत्ता बेहद अजीब है, पानी में घुलता ही नहीं है। सोनपरी ने आगे बताया “मेरे पति की उम्र मुझसे भी ज्यादा है, फिर भी घर को चलाने के लिए लखनऊ में रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं, तब जाकर दो जून की रोटी किसी तरह से चल पाती है। हम अपने बच्चों को पढ़ा भी नहीं पा रहे हैं। मोदी जी गरीबी नहीं, गरीबों को हटा रहे हैं।”

यही हाल उनकी देवरानी ने भी बताया। उन्होंने बताया कि गाँव में मजदूरी न मिलने की वजह से उनके पति भी लखनऊ में जाकर दिहाड़ी करते हैं। “गैस सिलेंडर 1000 हजार रुपए का मिल रहा है, सरसों का तेल 200 रुपए लीटर है, आसमान छूती महंगाई ने हमारा जीना दूभर कर दिया है।” इसी गाँव की दुर्गावती अपनी पालीथिन से बनी हुई झोपड़ी दिखाते हुए बोली कि देख लीजिए हम गरीब लोग कैसे अपना जीवन चला रहे हैं। न रहने को घर है न ही कोई काम धंधा है। सरकार हमें 5 किलो राशन देकर लखपति बना दी है, क्या 5 किलो राशन में मोदी योगी जी एक महीना खा सकते हैं। हमे रोजगार चाहिए ताकि हम मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर सकें। मोदी जी आपके 5 किलो अनाज से हमारा भला कैसे होगा ?

पलिया विधानसभा क्षेत्र के बसाई (नवागांव) की सरस्वती, जो कि विधवा हैं, के चार बच्चे हैं। तीन बेटी एक बेटा है। सरस्वती ने बताया “बड़ी बेटी की शादी गाँव और रिश्तेदारों ने चंदा लगाकर किसी तरह से कर दिया। मझली बेटी बीमार रहती है उसका इलाज कराना भी मुश्किल हो रहा है।” सरस्वती के पास रहने के लिए घर (छ्प्पर) भी नहीं है। उनके देवर ने अपने घर का एक कमरा रहने के लिए उन्हें दिया हुआ है, उसी में किसी तरह गुजारा कर रही हैं।
छप्पर डालने के लिए खार फूस का इंतजाम भी नहीं हो पा रहा है। पीएम आवास योजना पर सरस्वती ने कहा “मैं विधवा हूँ। तीन चार साल हो गए हमारे पति को गुजरे हुए लेकिन न हमे विधवा पेंशन, न उज्ज्वला का लाभ और न ही आवास मिला है। शौचालय सरकार के लोगों ने खुद सामान लेकर बनवाया है, जो कि इस्तेमाल करने लायक नहीं है। 5 किलो राशन मिलता है लेकिन 5 किलो एक महीना नहीं चल पाता है। गैस, दाल, सब्जी समेत बाकी समान इतना महंगा है कि खरीदकर पेट भर खाना खा पाना मुश्किल होता है। अभी कुछ दिन तक गन्ना काटने और मटर तोड़ने का काम मिला हुआ है जिससे किसी तरह रोटी चल रही है। लेकिन अब इसका सीजन जाने वाला है। इसके बाद मेरा और बच्चों का क्या होगा?”

पलिया के ही जवाहरपुर के रामचरन ने बताया “राशन मिलता है और शौचालय बनवाने के लिए 6 हजार रुपए मिला है। 12 हजार में से 6 हजार घूसखोरी में चले गए। अब 6 हजार रुपये में कौन सा शौचालय बनाया जा सकता है?” आगे उन्होंने कहा कि हमारे पास रहने के लिए घर नहीं है न ही कोई रोजी-रोजगार है। मोदी-योगी के राज में हम गरीबों का जीना मुहाल हो गया है। उन्होंने कहा “दो साल से हमारे बच्चे स्कूल भी नहीं जा रहे हैं। जो कुछ सीख पढ़ रहे थे वह भी चौपट हो गया है। रही-सही कसर आसमान छूती महंगाई ने पूरी कर दी है। गैस सिलेंडर एक हजार रुपए में मिलता है। गरीब आदमी कहाँ से एक हजार रुपए लाए? 5 किलो राशन से महीना नहीं चल पाता है। हमे 5 किलो अनाज नहीं “आवारा पशुओं ” से निजात चाहिए और रोजी रोजगार दे सरकार।”
यह साफ है कि मोदी-योगी राज में बड़े पैमाने पर गरीबों का दरिद्रीकरण बढ़ा है, रोजी-रोटी छिनी है, महंगाई ने उन्हें भूखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है। जाहिर है बहुप्रचारित मुफ्त अनाज योजना से इसका कोई समाधान होने वाला नहीं है। आवास-शौचालय का जितना ढिंढोरा पीटा गया, उतना जमीन पर गरीबों को उसका लाभ नहीं मिला है, उसमें भी भेदभाव और भ्रष्टाचार हुआ है।
आम जनता के जीवन के वास्तविक मुद्दे इतने भारी पड़ रहे हैं कि न तो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ, और न ही लाभार्थी कार्ड ही कुछ ख़ास चल पाया, जिस पर भाजपा की उम्मीदें टिकी थीं।
(जनचौक के लिए मीना सिंह की रिपोर्ट)
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