गोड्डा में ईसीएल को जमीन नहीं देने पर अड़े ग्रामीण, प्रबंधन जबरन जमीन अधिग्रहण को बेताब

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झारखंड के गोड्डा जिले के बसडीहा में जमीन अधिग्रहण को लेकर ग्रामीणों और ईसीएल (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। जहां एक तरफ ग्रामीण ईसीएल की राजमहल कोल परियोजना को एक इंच भी जमीन नहीं देने की जिद पर अड़े हैं, वहीं ईसीएल प्रबंधन प्रशासन की मदद से जबरन जमीन अधिग्रहण करने को बेताब है।

इसी क्रम में 19 जनवरी 2023 को जिले के राजमहल कोल परियोजना की अधिगृहीत जमीन का सीमांकन करने पहुंची पुलिस व जिला प्रशासन के अधिकारियों को ग्रामीणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। बता दें कि जैसे ही प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस व सुरक्षा बलों के साथ बसडीहा मौजा पहुंचे, विरोध कर रहे तीन गांव के आदिवासियों ने पथराव शुरू कर दिया। उग्र आदिवासियों ने पथराव के साथ तीर चलाकर पुलिस बल को भागने पर मजबूर कर दिया।

बताया जाता है कि पथराव में एसडीपीओ शिवशंकर तिवारी सहित पांच जवान घायल हो गये। पैर में तीर लगने से हनवारा थाना के सुरक्षा जवान असफाक आलम घायल हो गये। उन्हें महागामा अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसके बाद पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए लाठीचार्ज किया। आंसू गैस के गोले दागे। इस कार्रवाई में कई ग्रामीण भी घायल हो गये, जिसके बाद ग्रामीण और भड़क उठे। उनका कहना है कि हम किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देंगे।

बताते चलें कि जिले के तालझाड़ी मौजा में कोयला खनन के उद्देश्य से ईसीएल की राजमहल कोल परियोजना द्वारा 2017 में 125 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। लेकिन ग्रामीण कोयला खनन का पिछले पांच वर्षों से विरोध कर रहे हैं और खुदाई शुरू करने नहीं दे रहे हैं। वे मुआवजा व प्रभावित रैयतों को नौकरी देने की मांग कर रहे हैं, जिसे ईसीएल प्रबंधन मानने को तैयार नहीं है और पुलिस बल के सहयोग से अधिग्रहित जमीन पर जबरन खनन करना चाह रहा है।

इसी उद्देश्य से गत 18-19 जनवरी को बसडीहा मौजा में भी ईसीएल पदाधिकारी प्रशासन की मदद से जमीन का सीमांकन करने पहुंचे थे।

परियोजना के बसडीहा मौजा में कोयला उत्खनन को लेकर परियोजना के पदाधिकारी व जिला प्रशासन के अधिकारी दो दिनों से कैंप कर रहे हैं। 19 जनवरी को सैकड़ों की संख्या में पुलिस व सुरक्षा जवान कंटीली तार, पोकलेन व वज्रवाहन के साथ बसडीहा साइट पहुंचे थे।

पदाधिकारी व सुरक्षा जवानों को देखते ही विरोध कर रहे ग्रामीण उग्र हो गये। भिरंडा, बसडीहा, तालझाड़ी गांव के सैकड़ों आदिवासी तीर-धनुष व परंपरागत हथियार से लैस होकर विरोध करना शुरू कर दिया। दिन के करीब 12 बजे ग्रामीण अचानक उग्र होकर पथराव शुरू कर दिये। इसके बाद पुलिस की ओर से लाठीचार्ज किया गया। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद ग्रामीणों ने तीर चलाकर प्रतिकार किया। पुलिस की ओर से उग्र भीड़ को रोकने के लिये चार चक्र अश्रुगैस के साथ दो रबर के बुलेट दागे गये।

इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए ग्रामीणों को खदेड़ दिया। ज्ञात हो कि ग्रामीणों के विरोध को देखते बसडीहा क्षेत्र में एसडीओ ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू किया था। ग्रामीणों के सीमांकन एरिया में घुसने पर पाबंदी थी।

ग्रामीणों का आरोप है कि बिना ग्रामसभा की अनुमति के जमीन अधिग्रहित की गई है। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में बिना ग्रामसभा कराये ही गलत तरीके से जमीन ली गयी है और जमीन पर लगी फसल का मुआवजा भी नहीं दिया गया।

इस बावत ईसीएल के महाप्रबंधक प्रभारी रमेशचंद्र महापात्रा कहते है कि तालझारी मौजा में 125 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गयी है। इसको लेकर रैयतों को 10 करोड़ मुआवजा के साथ प्रभावित परिवारों के 22 सदस्यों को नौकरी दी गयी है। इसीलिए प्रशासन के सहयोग से जमीन का सीमांकन करने पहुंचे थे। ग्रामीण लगातार इसका विरोध कर रहे हैं, जबकि परियोजना की ओर से नियम के तहत मुआवजा की राशि व नौकरी दी गयी है। महापात्रा कहते हैं कि अधिगृहीत जमीन पर रैयतों ने अरहर की फसल लगायी है और मुआवजे की मांग रहे हैं।

महागामा के एसडीपीओ शिवशंकर तिवारी बताते हैं कि परियोजना की अधिगृहीत जमीन के सीमांकन को लेकर बसडीहा मौजा पहुंचे जिला प्रशासन एवं पुलिस बलों को देखकर उग्र ग्रामीणों ने विरोध करते हुए पथराव कर दिया। तीर भी चलाया गया। ग्रामीणों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस की ओर से मामला शांत कराने को लेकर चार चक्र अश्रु गैस व दो रबर बुलेट चलाकर ग्रामीणों को खदेडा गया।

महागामा के एसडीओ सौरव भुवानियां की माने तो ईसीएल को ग्रामीणों की ओर से 125 एकड़ जमीन तालझाड़ी मौजा में दी गई है। प्रशासन की ओर से ग्रामीणों को विश्वास में लेकर सीमांकन कराने का काम किया जा रहा है। सीमांकन का कार्य जारी रहेगा। बसडीहा मौजा में धारा 144 भी लगाई गयी है।

बता दें कि छह माह पूर्व तालझाड़ी गांव में ही वार्ता के लिए गए ईसीएल के सीएमडी को ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था। बाद में जिला प्रशासन के हस्तक्षेप से उन्हें ग्रामीणों के चंगुल से मुक्त कराया गया था।

कहना ना होगा कि तालझाड़ी गांव ईसीएल के लिए गले की हड्डी बन गया है। वहां करोड़ों रुपये खर्च करने बाद भी ईसीएल एक छटाक कोयला जमीन के अंदर से नहीं निकाल पाई है। बीते दो साल के दौरान ईसीएल की खदान का विस्तार नहीं होने से उत्पादन ग्राफ काफी नीचे गिर गया है।

बताते चलें कि ईसीएल की राजमहल परियोजना के कोयले से एनटीपीसी के दो पावर प्लांट चलते हैं। कहलगांव और फरक्का प्लांट को अब मांग के अनुरूप ईसीएल कोयला आपूर्ति नहीं कर पा रही है। बताया जाता है कि तालझाड़ी पैच में खनन शुरू होने पर ही राजमहल परियोजना का अस्तित्व बच पाएगा। जबकि तालझाड़ी के आदिवासी रैयत एक इंच भी जमीन नहीं देने की जिद पर अड़े हैं।

विकास के नाम पर जिस तरह से आदिवासियों को उनकी जमीनों से बेदखल किया जा रहा है, जाहिर है इनके भीतर जैसे-जैसे चेतना विकास हो रहा है इनमें वैसे-वैसे विरोध के स्वर का प्रस्फुटन हो रहा है। जो हमें लगातार देखने सुनने को मिल रहा है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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