प्रधानमंत्री जी को ये हो क्या गया है?

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सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने ऐसा धमाका करके दिखा दिया है, जैसा दुनिया के ज्ञात इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो! हुज़ूर का कहना है कि “पूर्वी लद्दाख में न तो कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है और ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है।” यही बयान तो चीन की ओर से भी लगातार आता रहा है। लिहाज़ा, कहीं काँग्रेसी विदेशी मंत्री एम एम कृष्णा की तरह माननीय प्रधानमंत्री ने भी तो चीन का भाषण नहीं पढ़ दिया? वैसे, कृष्णा अब बीजेपी की शान बन चुके हैं।

अब सवाल ये है कि क्या मोदी राज में भारतीय सेना इतनी मनमौज़ी पर उतारू हो गयी कि गलवान घाटी और पैंगोंग झील के फिंगर 4 से 8 के दरम्यान चीनी इलाके में पिकनिक मनाने जा पहुँची थी? क्या दोनों देशों के सेना के अफ़सरों के बीच वार्ताओं के नाम पर कोई किटी पार्टी चल रही थी? क्या भारतीय सेना के 20 जवान चीनी शिविरों में जाकर बदतमीज़ी कर रहे थे कि चीनियों ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला? क्या अस्पतालों में ईलाज़ करवा रहे क़रीब 80 सैनिकों ने ख़ुद को फ़र्ज़ी झड़प में ज़ख़्मी करवा लिया था? क्या जिन दस भारतीय सैनिकों को युद्धबन्दियों की तरह तीन दिन तक चीनी सेना के कब्ज़े में रहना पड़ा, उन्हें चीनियों ने अपने पास भजन करने के लिए बुलाया था?

क्या 5 मई से भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में तमाशा कर रही थी? क्या कोई सियासी इवेंट चल रहा था, जो सरकार पर उल्टा पड़ गया? वैसे, मोदी राज में कुछ भी मुमकिन है, सम्भव है। इसके बावजूद, कोरोना संकट से सरकार बेहाल है। बंगाल-ओड़ीशा के चक्रवात को छोड़ चार महीने हो गये, प्रधानमंत्री अपने सरकारी निवास में ही फँसे हुए हैं। उनकी हवाई और विदेश यात्राएँ बन्द हैं। उन्हें आकाश की ताज़ा हवा नहीं मिली है। सामने बिहार और बंगाल के चुनाव हैं। अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है।

लिहाज़ा, ऐसा तो नहीं कि प्रधानमंत्री किसी घनघोर अवसाद या डिप्रेशन की चपेट में हों और 130 करोड़ भारतवासियों को इसके बारे में सच-सच नहीं बताया जा रहा हो! कुछ भी हो, बात बहुत गम्भीर है। प्रधानमंत्री ने जितना कुछ भी बताया है, उससे तो अभी हज़ार गुना और जानना ज़रूरी हो गया है। अद्भुत धर्म संकट है! बेहद अद्भुत!

सच पूछिए तो अब क्या सही है और क्या ग़लत, इसमें उलझने का दौर बीत चुका है! कभी सोचा नहीं था कि देखते ही देखते भारतीय सेना इतनी निक्कमी हो जाएगी कि उसे पता ही नहीं रहे कि चीनी सरहदों से जुड़ी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) कहाँ है? जबकि दिल्ली में बैठे प्रधानमंत्री को सब मालूम है। अरे! ऐसी सेना को तो तत्काल भंग कर देना चाहिए। देश के रक्षा बजट को कोरोना से जंग लड़ने पर खर्च करना चाहिए। 

साफ़ दिख रहा है कि हमारे सैनिक वीरता के नाम पर ग़रीब जनता की ख़ून-पसीने की कमाई यानी टैक्स पेयर्स मनी पर ऐश कर रहे हैं। जबकि दूसरी ओर महा-माननीय प्रधानमंत्री जी हैं जिन्होंने राष्ट्रहित में दिन-रात एक कर रखा है। बेचारे ने कभी एक दिन की छुट्टी तक नहीं ली। वो इकलौते ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बूते न तो देश को बिकने दिया है और ना ही झुकने! लिहाज़ा, देश के हरेक ज़िले में ऐसे देवत्व का मन्दिर बनना चाहिए, वहाँ इनकी उपासना होनी चाहिए, स्तुति होनी चाहिए! और हाँ, खाँग्रेसियों तथा जेएनयू और जामिया वालों को चौराहे पर खड़ा करके गोलियों से भून देना चाहिए!

बहुत हुआ सम्मान!

(मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। तीन दशक लम्बे पेशेवर अनुभव के दौरान इन्होंने दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, उदयपुर और मुम्बई स्थित न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। अभी दिल्ली में रहते हैं।)

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