देश की विभिन्न अदालतों में साल 2021 में कुछ विचित्र और आश्चर्यजनक टिप्पणियां की गईं , जिनसे सार्वजनिक विवाद पैदा हुआ। यहां सबसे पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की उस टिप्पणी पर चर्चा करते हैं जिनमें उनकी ‘क्या तुम उससे शादी करोगे?’ की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया था । तत्कालीन सीजेआई ने एक 23 वर्षीय लड़के, जिस पर एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा है, जब वह लगभग 16 वर्ष की थी, उससे पूछा कि क्या वह (अभियुक्त) उससे (पीड़ित) से शादी करेगा। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) के उस आदेश के खिलाफ, जिसमें महाराष्ट्र के एक सरकारी कर्मचारी की अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई थी, अभियुक्त की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
चीफ जस्टिस की इस टिप्पणी के बाद खलबली मच गई थी। टिप्पणी के विरोध में 4,000 से ज्यादा महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और प्रोग्रेसिव ग्रुप्स ने खुला खत लिखा था। खत में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट में एक रेपिस्ट से पीड़ित लड़की से शादी करने के लिए कहने और वैवाहिक बलात्कार को सही ठहराने के लिए चीफ जस्टिस को इस्तीफा दे देना चाहिए। इस पर चीफ जस्टिस ने पलटी मार दी और कहा कि ऐसी टिप्पणी उन्होंने नहीं की थी।
कोर्ट महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड के टेक्नीशियन मोहित सुभाष चव्हाण के खिलाफ एक केस की सुनवाई कर रही थी, जिस पर 2014-15 में एक नाबालिग लड़की का बलात्कार करने का आरोप लगा था। वह उस समय कथित तौर पर 17-18 साल का था और लड़की उसकी दूर की रिश्तेदार और कक्षा 9 की छात्रा थी। निचली अदालत से चव्हाण को मिली अग्रिम जमानत बांबे हाई कोर्ट ने 5 फरवरी को लड़की की तरफ से दायर एक आवेदन के आधार पर रद्द कर दी थी। उसने तब इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अग्रिम जमानत की गुहार लगाई।
सुनवाई के दौरान सीजेआई बोबडे ने चव्हाण के वकील से पूछा, ‘क्या आप उससे शादी करेंगे?’इसके जवाब में वकील ने कोर्ट से कहा कि वह अपने मुवक्किल से पूछकर बताएंगे। सीजेआई ने कहा कि आपको लड़की को बहलाने-फुसलाने और बलात्कार करने से पहले सोचना चाहिए था। हम जानते हैं कि तुम एक सरकारी नौकर हो। हम तुम्हें शादी करने को मजबूर नहीं कर रहे। हमें बताएं कि क्या आप ऐसा करेंगे, अन्यथा आप कहेंगे कि हम आपको उससे शादी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
चव्हाण के वकील ने तब अदालत को बताया कि वह शुरू में उससे शादी करना चाहता था लेकिन लड़की ने इनकार कर दिया था।उन्होंने कहा कि अब मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि पहले से शादीशुदा हूं।’
इसके बाद पीठ, जिसमें जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन भी हैं, ने उसे नियमित जमानत के लिए आवेदन की अनुमति देते हुए चार सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी।
वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा के अनुसार, जब मामला जमानत के चरण में था तो न्यायाधीश को शादी को लेकर इस तरह की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। जरूरी नहीं था कि वह ऐसा कुछ कहते। मुझे नहीं लगता कि पीड़ित को यह सुझाव देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपराध बलात्कार से जुड़ा है और मामला अभी बहुत आगे पहुंचा नहीं है। कानूनन यह अपराध है और स्टेट और जनता के खिलाफ है। बलात्कार की शिकार लड़की से शादी कर लेने से अपराध कम नहीं हो जाता है।
चव्हाण के खिलाफ प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 417 (धोखाधड़ी), 506 (धमकाना) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) कानून 2012 की धारा 4 (पेनेट्रेटिव यौन उत्पीड़न) और धारा 12 (यौन उत्पीड़न) के तहत दर्ज की गई थी। निचली अदालत ने उसे यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी थी कि ‘याचिकाकर्ता को झूठ के आधार पर फंसाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है जो कि अब एक सरकारी कर्मचारी है।
हालांकि, निचली अदालत के निर्णय पर बांबे हाईकोर्ट का कहना था कि ‘जज की तरफ से इस तरह का तर्क दिया जाना ऐसे गंभीर मामलों पर उनमें संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। हाईकोर्ट ने उसे दी गई अग्रिम जमानत खारिज करते हुए कहा था कि इस तरह का दृष्टिकोण स्पष्ट संकेत है कि विद्वान जज में क्षमता का पूरी तरह अभाव है। यह वास्तव में एक मामला है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
इस पर विवाद होने पर तत्कालीन चीफ जस्टिस बोबडे ने पलटी मार दी और कहा कि इंस्टीट्यूशन और कोर्ट के तौर पर हम हमेशा से महिलाओं को सबसे ज्यादा सम्मान देते हैं। उन्होंने रेप के आरोपी को पीड़िता से शादी करने की बात कहने से भी इनकार किया। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमने कभी किसी आरोपी से पीड़िता से शादी करने को नहीं कहा। हमने कहा था, ‘क्या तुम उससे शादी करने जा रहे हो?’ इस मामले में हमने जो कहा था, उसकी पूरी तरह से गलत रिपोर्टिंग की गई।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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