फेसबुक का हिटलर प्रेम!

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जुकरबर्ग के फ़ासिज़्म से प्रेम का राज़ क्या है? हिटलर के प्रतिरोध की ऐतिहासिक तस्वीर से फेसबुक को दिक्कत क्या है? फेसबुक ने हिन्दी के मशहूर कहानीकार चंदन पांडेय की वॉल पर लगी उस मशहूर तस्वीर को अपने `कम्युनिटी स्टैंडर्ड के विरुद्ध` बताते हुए हटा दिया जिसमें हिटलर को `हेल हिटलर` कर रही भीड़ में ऑगस्त लैंडमेस्सर नाम का एक अकेला शख़्स प्रतिरोध में शांत-अविचलित खड़ा दिखाई दे रहा है।

फ़ासीवाद की मोडस ओपेरेन्डी पर ही केंद्रित इस साल के बेहद चर्चित उपन्यास `वैधानिक गल्प` के लेखक चंदन पांडेय ने गुरुवार शाम को फेसबुक के अपने `कवर फोटो` को हटा दिए जाने की जानकारी यह पोस्ट लिखकर साझा की थी-    

“ऑगस्त लैंडमेस्सर। हेल हिटलर करने से इनकार करने वाला मनुष्य। इनकी यह तस्वीर अपने फेसबुक एकाउंट के कवर फ़ोटो में लगा रखी थी। फेसबुक से आज यह संदेश आया कि यह कम्युनिटी स्टैंडर्ड के खिलाफ है। और यह भी कि अब इस पोस्ट को कोई नहीं देख सकता। क्यों भाई Facebook, तुम्हारे कर्मचारियों को क्या बुरा लगा इसमें?“

फेसबुक की यह कार्रवाई बेहद चौंकाने वाली थी। इसलिए नहीं कि फेसबुक प्रबंधन की कार्रवाइयां इससे पहले बहुत निष्पक्ष या साफ़-सुथरी रहती आई हैं बल्कि इसलिए कि तमाम आरोपों और विवादों के बावजूद अमेरिका से संचालित सोशल मीडिया कंपनी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि वह हिटलर के पक्ष में खड़े होने का दुस्साहस कर सकती है। जैसे अमेरिका भले ही दुनिया भर में लोकतंत्र विरोधी ऑपरेशन चलाता रहे पर वह नाज़ी फ़ासीवाद के सफाये का श्रेय लेने में भी आगे रहना पसंद करता रहेगा। गौरतलब है कि फेसबुक का मालिक मार्क ज़ुकरबर्ग ख़ुद उस यहूदी मूल का है जिसके सफ़ाये के लिए हिटलर ने कुख्यात यातना शिविर चला रखे थे। यह बात अलग है कि आज यहूदी राष्ट्रवाद के नाम पर ही भयानक खेल खेले जा रहे हैं।

  • फेसबुक के एक यूजर अभिनव सव्यसाची ने कमेंट कर पूछा कि “तो अब क्या हिटलर की फ़ोटो लगाएं? वैसे ज़ुकरबर्ग के पूर्वज जर्मनी के ही थे।“ एक यूजर शरद चंद्र त्रिपाठी ने लिखा, “इनका कम्युनिटी स्टैंडर्ड हिटलर वाला है।“ अनु शक्ति सिंह ने लिखा, “So, Facebook is going Nazi way. That message was a declaration.“

सुदेश श्रीवास्तव ने लिखा, “चोर की दाढ़ी में तिनका टाइप बात है। तभी आईटी सेल ऐसी पोस्टों की मास रिपोर्टिंग करता है।“ इसके बाद श्रीवास्तव ने ख़ुद यही कवर फोटो लगाया तो उनके साथ भी फेसबुक ने यही कार्रवाई की। 

एक यूजर रीतेश कुमार ने कमेंट किया, “इसमें (तस्वीर में) एंटी हेल मोदी दिख रहा होगा उन्हें।“  फेसबुक पर यह आरोप लगता रहा है कि वह भाजपा के पक्ष में जाने वाली फेक और हेट सामग्री को रिमूव करने में दिलचस्पी नहीं दिखाती लेकिन उस सेकुलर सामग्री को हटाती रहती है जिससे भाजपा परेशानी महसूस करती है। हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में फेसबुक के आंतरिक ग्रुप के संदेशों के आधार पर कहा गया कि भारत में फेसबुक की दक्षिण एशिया प्रभार की पॉलिसी निदेशक आंखी दास 2012 से अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा का समर्थन करती रही हैं। इस रिपोर्ट के बाद फेसबुक की विश्वसनीयता ख़ासे विवादों में है। गौरतलब है कि आंखी दास ने पत्रकार आवेश तिवारी के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ कराया था तो आवेश तिवारी ने भी आंखी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज़ कराई थी।  

फेसबुक ने कहानीकार चंदन पांडेय की वॉल से उनके जिस कवर फोटो को अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड के विरुद्ध बताकर हटाया है, उस के बारे में अमेरिकी लेखिका इजाबेल विल्करसन ने अपनी नयी किताब `कास्ट: द लाइज देट डिवाइड अस` की शुरुआत में ही विस्तार से लिखा है। यह किताब इन दिनों दुनिया भर में चर्चाओं में है। इजाबेल ने लिखा है, “…ऑगस्ट वह सब देख रहा था जो उस वक़्त बाकी लोग नहीं देख पा रहे थे या न देखने का मन बना चुके थे। हिटलर के निरकुंश तानाशाही शासन के वक़्त पूरे समंदर से के ख़िलाफ़ एक इंसान का अकेले इस तरह खड़ा होना बहुत बहादुरी और हौसले का काम था।“

फेसबुक की प्रतिबद्धता का आलम यह है कि चंदन पांडेय ने शुक्रवार सुबह को फिर से उसी तस्वीर को पोस्ट किया तो फेसबुक ने फिर से उसे हटा दिया। फेसबुक ने इस कार्रवाई के पक्ष में चंदन पांडेय को जो ज्ञान दिया, उसके मुताबिक, फेसबुक ख़तरनाक इंडिविजुअल्स या संगठनों के लिए समर्थन या प्रतीकों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देता है। मसलन आतंकी गतिविधियां, संगठित घृणा प्रसार वगैरह। सवाल यही है कि फ़ासिस्ट हिटलर के प्रतिरोध की ऐतिहासिक तस्वीर से फेसबुक को क्या दिक्कत है। क्या यह तस्वीर किसी को फ़ासिज़्म के प्रतिरोध की नैतिक प्रेरणा दे सकती है? अगर हाँ तो फेसबुक इसे कैसे और किसके लिए ग़लत मानता है?

(धीरेश सैनी जनचौक के रोविंग एडिटर हैं।)

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