कॉलेजियम और सरकार में जजों की नियुक्ति पर मिलीजुली कुश्ती तो नहीं चल रही?

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कर्नाटक हाईकोर्ट में 4 वकीलों की बतौर जज नियुक्ति की सिफारिश को लेकर प्रत्यक्ष रूप से जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर केंद्र और उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के बीच टकराव का एक नया मामला सामने आ रहा है, लेकिन विधि क्षेत्रों में इसे न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच कथित मिलीजुली कुश्ती के रूप में देखा जा रहा है। कर्नाटक हाईकोर्ट में 4 वकीलों का नाम केंद्र सरकार ने कतिपय आरोपों के आधार पर लौटा दिया था, जिसे उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने आईबी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार को फिर वापस भेज दिया है। अब यहां भी दोहरा मापदंड है कि यदि आईबी रिपोर्ट को ही आधार माना जाता है तो फिर बिहार,पंजाब एवं हरियाणा या किसी अन्य हाईकोर्ट के उन नामों को जज बनने के लिए स्वीकृत करके कॉलेजियम द्वारा केंद्र सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय को क्यों भेजा जाता है, जिनके खिलाफ आईबी ने प्रतिकूल रिपोर्ट दे रखी है। आखिर इस पिक एंड चूज का कोई आधार तो होना चाहिए।
कहते हैं कि ईमानदार होना ही नहीं ईमानदार दिखना भी चाहिए। पिछले कुछ समय से न्यायपालिका पर केंद्र सरकार के साथ कदम मिलाकर चलने के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में आरोप लग रहे हैं कि केंद्र सरकार और कॉलेजियम के बीच टकराव का मामला उछालकर प्रकारांतर से यह दिखाने कोशिश हो रही है कि केंद्र और न्यायपालिका के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। वैसे भी अयोध्या भूमि विवाद, राफेल डील, सबरीमाला और राहुलगांधी के अवमानना मामले में फैसला आना है और उसमें अभी से ईमानदार दिखने की कोशिश शुरू हो गयी है। अब उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री योगी आदित्यदनाथ ने गोरखपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में राम मंदिर मुद्दे की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि बहुत जल्द ‘बड़ी खुशखबरी’ मिलने वाली है।

इसी तरह सत्ता पक्ष के वरिष्ठ मंत्री और सांसद राम मन्दिर निर्माण के पक्ष में पोजिटिव फैसला आने की बात इशारों इशारों में करते रहते हैं। इसका क्या निहितार्थ है यह आम जनता भी समझती है।
केंद्र सरकार ने कर्नाटक के 4 वकीलों के नामों को कॉलेजियम को वापस लौटा दिया। इनमें से एक वकील पर लैंड माफिया और अंडरवर्ल्ड से साठगांठ के आरोप हैं। लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने इन चारों वकीलों के नाम को वापस लेने के केंद्र के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। कालेजियम ने एक बार फिर इन चारों वकीलों के नाम को केंद्र के पास भेजा है।
दरअसल, इस साल मार्च में कालेजियम ने कर्नाटक हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के पास 8 वकीलों के नाम भेजे थे। सरकार ने इनमें से 4 नामों को स्वीकार कर लिया, लेकिन बाकी 4 नामों को हरी झंडी नहीं दी। केंद्र ने 4 वकीलों, सवानुर विश्वजीत शेट्टी, मारालुर इंद्रकुमार अरुण, मोहम्मद गौस शुकुरे कमल और एंगलगुप्पे सीतामरमैया के नामों को कालेजियम को लौटाया था ।
केंद्र ने इस नामों को वापस लौटाने की वजहें भी बताई। शेट्टी के नाम पर आपत्ति जाहिर करते हुए सरकार ने कहा कि उनके खिलाफ शिकायत है कि उनकी अंडरवर्ल्ड और लैंड माफिया से साठगांठ है, जो फिरौती में शामिल रहे हैं। इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा कि एमआई अरुण के खिलाफ भी शिकायत है। उनका प्रोफेशनल करियर बेदाग और पारदर्शी नहीं है।
केंद्र सरकार की आपत्तियों को कालेजियम ने यह कहकर खारिज कर दिया है कि आईबी की रिपोर्ट के अनुसार आपत्तियों में दम नहीं है। संबंधित वकीलों के खिलाफ लगे आरोप अपुष्ट हैं, उनमें कोई दम नहीं है। सरकार के प्रस्ताव को खारिज करते हुए सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एनवी रमना के कालेजियम ने कहा कि शेट्टी और अरुण के खिलाफ लगे आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है। आईबी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कॉलेजियम ने कहा कि आईबी ने चारों वकीलों की निजी और पेशेवर छवि को अच्छा बताया है। उनकी ईमानदारी के बारे में कोई  प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है।
इससे पहले, गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस एए कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाए जाने की कॉलेजियम की सिफारिश को केंद्र ने लौटा दिया था। बाद में उन्हें त्रिपुरा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने का प्रस्ताव गया है जिसे केंद्र सरकार ने लटका रखा है। इसके पहले इसी तरह से जस्टिस केएम जोसेफ का मामला भी काफी चर्चित रहा था। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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