अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय अर्थशास्त्रियों के सुझावों पर मोदी क्यों नहीं कर रहे हैं अमल?

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अर्थशास्त्र की दुनिया में भारतीय मूल के 3 सबसे बड़े नामों- नोबेल पुरस्कृत अमर्त्य सेन व अभिजीत बनर्जी तथा RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक संयुक्त वक्तव्य में सरकार से मांग किया है कि सरकार इस देश की जरूरतमंद जनता के लिए अपने खाद्यभण्डार और खजाना खोल दे।

मौजूद असाधारण आपदा के दौर में इन्होंने सरकार की इस सोच को खारिज किया है कि कार्ड जैसे targeted श्रेणी के वांछित पहचानपत्र के अभाव में कहीं सरकारी सहायता गलत हाथों में न चली जाए।

उन्होंने कहा है कि आज के समय में उसूल यह होना चाहिए कि एक भी जरूरतमंद सहायता से वंचित न रह जाए, भले ही कुछ कथित गैर-targeted श्रेणी  के लोगों के पास भी यह पहुंच जाय।

आज जब देश के गोदामों में बफर स्टॉक के तीन गुने से भी अधिक 7.7 करोड़ टन अनाज मौजूद है और रबी की फसल भी आ गयी है, तब सरकार को सभी को पर्याप्त मात्रा में अनाज मुहैया कराना चाहिए, सबको अस्थायी राशनकार्ड जारी किए जांय, जगह-जगह  किचेन खोले जांय जिससे सभी migrant लेबर, गरीब लाभान्वित हो सकें, मिड डे मील बच्चों के घरों पर भेजा जाय।

खाद्यान्न के अतिरिक्त कम से कम 5000 रुपया नकद सभी खातों में डाला जाय, किसान सम्मान निधि के दायरे में भूमिहीनों को भी लाया जाय। ग्रामीण के साथ शहरी ग़रीबों के लिए भी योजना बने।

गौरतलब है कि ये तीनों अर्थशास्त्री मार्क्सवादी, सोशलिस्ट या कम्युनिष्ट नहीं हैं, वरन उन्हीं नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थक हैं जो मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों का भी मार्गदर्शक सिद्धांत है।

क्या मोदी जी उनकी सुनेंगे ?

आज जब दुनिया के तमाम देश अपनी जीडीपी का 10 से लेकर 15 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं और हम 1% भी नहीं, क्या मोदी जी भी देश और देश की जनता को बचाने के लिए बड़ा दिल दिखाएंगे?

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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