गंभीर आरोपों से घिरे समीर वानखेड़े पर पूरा सिस्टम क्यों मेहरबान है?

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मुंबई में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के जोनल डायरेक्टर समीर दाउद वानखेड़े और उनके गैर सरकारी सहयोगियों के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता नवाब मलिक पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक चौंकाने वाले खुलासे कर रहे हैं। उनके खुलासों से सिर्फ समीर वानखेड़े ही नहीं बल्कि समूचे एनसीबी की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिन पर एनसीबी के आला अधिकारी तो मौन हैं ही, केंद्र सरकार की चुप्पी भी हैरान करने वाली है। सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभा रहे मीडिया में भी उन सवालों की चर्चा नहीं हो रही है, बल्कि सवाल यह खड़ा किया जा रहा है कि नवाब मलिक के पास वानखेड़े और एनसीबी के बारे में इतनी जानकारी कहां से आ रही है। यह भी कहा जा रहा है कि चूंकि नवाब मलिक का दामाद ड्रग मामले में जेल में है, इसलिए उसे बचाने के लिए वे समीर वानखेड़े और एनसीबी को निशाना बना रहे हैं।

यह सही है कि नवाब मलिक का दामाद जेल में है, लेकिन उसका मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं कि मलिक अपने दामाद को बचाने के लिए यह सब कर रहे हैं। अगर यह मान भी लिया जाए कि वे अपने दामाद को बचाने के लिए समीर वानखेड़े को लेकर खुलासे कर रहे हैं और एनसीबी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं तो सवाल यह भी उठता है कि पूरा सिस्टम और सत्तारूढ़ दल गंभीर आरोपों से घिरे समीर वानखेड़े को बचाने में क्यों जुटा हुआ है? महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस और अन्य भाजपा नेता नवाब मलिक के खिलाफ वानखेड़े के बचाव में क्यों उतर आए हैं?

यह बेहद हैरान करने वाली बात है कि वानखेड़े के खिलाफ कई गंभीर आरोप होने के बावजूद महाराष्ट्र पुलिस ने अभी तक उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया है, लेकिन इसके बावजूद अपनी गिरफ्तारी की आशंका को लेकर वानखेड़े हाई कोर्ट पहुंच गए। मुंबई हाई कोर्ट ने उन्हें राहत भी दे दी और कहा कि उनको किसी भी मामले में गिरफ्तार करने से तीन दिन पहले नोटिस देना होगा। अदालत का इस आदेश का आखिर क्या मतलब है? सवाल है कि आपराधिक मामलों में किसी को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस क्या इसी तरह नोटिस देती है?

वानखेड़े को राहत देने वाली अदालत को क्या यह मालूम नहीं है कि उसने इसी तरह की राहत मनी लांड्रिंग मामले में जांच का सामना कर रहे मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह को भी दी थी और वे इसका फायदा उठा कर फरार हो गए हैं। समझा जाता है कि वे भी विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी आदि हाईप्रोफाइल आर्थिक अपराधियों की तरह सिस्टम की मदद से देश छोड़ कर भाग गए हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने भी परमबीर सिंह के देश से भाग जाने का अंदेशा जताया है। इसलिए सवाल उठता है कि अब अगर वानखेड़े भी अदालत से मिली राहत का फायदा उठा कर परमबीर सिंह की तरह देश से निकल भागेंगे तो कोई क्या कर लेगा?

सरकार तो वानखेड़े पर पहले से ही मेहरबान है। समीर वानखेड़े पर आरोप है कि उन्होंने मुस्लिम होने के बावजूद अपने दलित होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवा कर सरकारी नौकरी हासिल की है। उन पर बेकसूर लोगों को ड्रग संबंधी मामलों में फंसा कर झूठे मुकदमे कायम करने और पैसे वसूलने के आरोप भी हैं। इसके अलावा भी उन पर कई गंभीर आरोप हैं, जिनकी जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की बजाय एनसीबी के ही विजिलेंस विभाग से कराई जा रही है।

यही नहीं, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने तो बिना किसी जांच पड़ताल के ही घोषित कर दिया कि वानखेड़े का जाति प्रमाणपत्र फर्जी नहीं है और वे दलित ही हैं। अनुसूचित जाति आयोग वानखेड़े पर लग रहे आरोपों को दलित प्रताड़ना का मामला मान कर नोटिस जारी कर रहा है। सरकार ने हद तो यह कर दी है कि क्रूज ड्रग्स पार्टी मामले की जांच एसआईटी को सौंप दिए जाने के बावजूद वानखेड़े को इस जांच से अलग नहीं किया है जबकि वे खुद इस मामले की जांच में फंसे हुए हैं। कितनी हैरान करने वाली बात है कि उन पर उगाही करने के लिए इस ड्रग्स पार्टी में छापा मारने का आरोप लगा है और वे खुद ही इस मामले की जांच करते रहेंगे।

मोदी सरकार और भाजपा ने राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों के राजनीतिकरण के मामले में तो कई नए आयाम पेश किए हैं, वह अपराध और अपराधियों के सरकारीकरण की नई इबारत लिखने जा रही है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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