Sunday, April 28, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: हसदेव अरण्य में अडानी के लिए 50 हजार पेड़ों की चढ़ाई गई बलि, 10 हजार आदिवासियों को सता रहा घर गवां देने का डर

रायपुर। छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य जो अपनी हरियाली के जाना जाता था, अब वो वन उजाड़ा जा रहा है। बड़ी-बड़ी मशीनें दिन-रात पेड़ों की बलि चढ़ा रही हैं। फिजाओं में धूल और बारूद की गंध फैलने लगी है। हवा में जहर घोलने के लिए बड़ी तेजी काम किया जा रहा है। अब तक कुल 50 हजार छोटे-बड़े पेड़ काटे जा चुके हैं।

पेड़ कटाने के लिए 450 से अधिक जवानों को तैनात कर आदिवासियों से उनका सब कुछ छीना जा रहा है। सैकड़ों लोग अपने घरों को उजड़ता देख रहे हैं। जगह-जगह केवल कटे पेड़ ही दिखाई पड़ रहे हैं और लोगों की आंखों में मायूसी के साथ आंसू भी नजर आ रहे हैं।

ये मंजूरी बिजली के लिए दी गई है। अब इस बिजली के लिए भाजपा उन तमाम लोगों के लिए मुसीबत का अंबार ले आई है, जिनका हसदेव अरण्य में सब कुछ है। पेड़ काटकर इनका सब कुछ छीन तो रहे ही हैं, साथ ही जो लोग अपने घर और हसदेव अरण्य को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें सरकार बलपूर्वक जेलों में ठूंस रही है।

सवाल ये उठता है कि, सिर्फ बिजली के लिए पर्यावरण और वहां के लोगों पर जुल्म ढाना कहां का विकास है? क्या केवल एक उद्योगपति के लिए हजारों जिंदगियों को ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा? सवाल ये भी उठता है कि, अडानी को लाभ दिलाने के लिए कितनों की आवाज दबाई जाएगी? आखिर उन 750 परिवारों पर क्या बीतेगी, जिन्हें अपना घर छोड़कर कहीं और रुख करना होगा।

दरअसल, सत्ता परिवर्तन होते ही हसदेव अरण्य में परसा पूर्व और केते बासन (पीईकेबी) चरण-2 विस्तार कोयला खदानों के लिए पुलिस की सुरक्षा में पेड़ों की कटाई का काम अब तेजी से शुरू हो चुका है। पीईकेबी-2 के लिए करीब 91 हेक्टेयर जमीन पर 50 हजार से अधिक पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई है। सरकारी आकड़ों के अनुसार, अब तक 15 हजार से अधिक पेड़ों को जमीदोज किया जा चुका है।

10 हजार आदिवासियों को घर गंवाने का डर

हसदेव अरण्य में खदान का विस्तार हो रहा है। इससे लगभग 6 से 8 गांव सीधे तौर पर, जबकि 18-20 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा लगभग 10 हजार आदिवासियों को घर गंवा देने का डर है। इसके लिए आदिवासियों ने दिसंबर 2021 में पदयात्रा और विरोध प्रदर्शन भी किया था।

आदिवासियों की 60 से 70 प्रतिशत आय वनों से

भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड और उसके आसपास के क्षेत्र में मुख्य रूप से आदिवासी रहते हैं। जो वनों पर बहुत ज्यादा आश्रित हैं। नान टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस से इन्हें 46 प्रतिशत मासिक आय होती है। इसमे जलाऊ लकड़ी, पशुओं का चारा, दवाई वाली वनस्पति, पानी शामिल नहीं है। अगर इनको शामिल कर लिया जाए कम से कम से कम 60 से 70 प्रतिशत इनकी आय वनों से होती है। स्थानीय समुदाय माइनिंग के पक्ष में नहीं है।

हसदेव जंगल के 2 लाख पेड़ काटे जाएंगे

राजस्थान के विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित परसा कोल ब्लाक के डेवलेपमेंट एवं माइनिंग का ठेका अडानी इंटरप्राइजेज के हाथों में है। पहले चरण में परसा कोल ब्लॉक में 841 हेक्टेयर जंगल की भूमि से पेड़ों की कटाई की गई थी। दूसरे चरण में परसा ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक में कुल 2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल उत्खनन की मंजूरी दी गई थी। इसमें 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र है, जिसमें परसा, हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा के 750 परिवारों को विस्थापित करने का प्रस्ताव है। अनुमान के मुताबिक पीकेईबी में 2 लाख पेड़ काटे जाएंगे।

दांव पर लोगों की जिंदगी

साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के केवल 1 फीसदी हाथी ही छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन हाथियों के खिलाफ अपराध की 15 फीसदी से ज्यादा घटनाएं यहीं दर्ज की गई हैं। अगर नई खदानों को मंजूरी मिलती है और जंगल कटते हैं, तो हाथियों के रहने की जगह खत्म हो जाएगी और इंसानों से उनका आमना-सामना और संघर्ष बढ़ जाएगा। जगंल के हाथी घनी बस्तियों में पहुंच रहे हैं। हाल ही में हाथियों के समूह ने 15 घरों को उजाड़ दिया था।

कांग्रेस सरकार ने किया था पेड़ कटाई का विरोध

जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी, तब पेड़ों की कटाई के विरोध में सरगुजा विधानसभा क्षेत्र के हरिगांव में एक सभा को संबोधित करते हुए तत्कालीन मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा था कि, “चाहे गोली चले या डंडा उठे, मैं वह गोली या लाठी खाने के लिए सबसे आगे खड़ा रहूंगा।”

इतना ही नहीं तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने टीएस सिंहदेव के बयान के समर्थन में कहा था कि, “जहां तक बाबा साहब का बयान है कि पहली गोली मैं खाऊंगा, तो गोली चलने की नौबत नहीं आएगी। जो गोली चलाने वाले हैं उन पर पहले ही गोली चल जाएगी। वे क्षेत्र के विधायक हैं। अगर वह नहीं चाहते तो फिर पेड़ क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगी।”

कांग्रेस की तत्कालीन भूपेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र भी दिया था। शपथ पत्र के जरिए कहा था कि, “हसदेव अरण्य में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के दूसरे चरण में उपलब्ध 350 मिलियन टन कोयला राजस्थान की 20 वर्षों की कोयला की जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम है। हसदेव में किसी भी नए कोल ब्लॉक का आवंटन या उपयोग नहीं होना चाहिए।”

शपथ पत्र में ये भी कहा गया था कि, “भारतीय वन्य जीव संस्थान ने कहा है कि हसदेव अरण्य पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र है। जहां मानव-हाथी संघर्ष की स्थिति गंभीर है। यहां कोयला खनन राज्य के हित में नहीं होगा।”

सुप्रीम कोर्ट को दिए शपथ पत्र में तत्कालीन भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ की विधानसभा में सर्व सम्मति से 26 जुलाई 2022 को पारित संकल्प का भी जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि, हसदेव अरण्य में आवंटित सभी कोल ब्लॉक निरस्त किए जाएं।

शपथ पत्र में राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए उस पत्र का भी जिक्र है जिसमें परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति को निरस्त करने का निवेदन किया गया है। शपथ पत्र में कहा गया है कि प्रदेश के कुल कोयले का हसदेव अरण्य में मात्र 8 प्रतिशत कोयला ही है।

भारत सरकार वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1898 हेक्टेयर में कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की। जबकि भारत सरकार की ही फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने इस आवंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी। बाद में 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया और 2013 में माइनिंग कार्य चालू हो गया।

पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव से जब हमने पेड़ों की कटाई को लेकर बात की तो उनका कहना है कि, “परसा केते-2 के कोल ब्लॉक के लिए यूपीए-2 के समय में अनुमति मिली थी। तब राज्य शासन ने इसकी पहल की थी। छत्तीसगढ़ माइनिंग डेवलमेंट कार्पोरेशन और राजस्थान विद्युत बोर्ड को जमीन अलॉट की गई थी। राजस्थान में कैपटे पावर प्लांट के लिए कोयले का आवंटन हुआ था। इसमें इन्होंने काम शुरू किया था।”

उन्होंने कहा कि “वहीं NDA की सरकार आते ही 2 नए कोल ब्लॉक का आवंटन किया गया। उसी बात को लेकर एक बड़ा आंदोलन छिड़ गया। विद्रोह की वजह ये थी कि, बहुत बड़े पैमाने में जंगल की कटाई होगी। जो विरोध हो रहा है वह 2 नए कोल ब्लॉक को लेकर हो रहा है, जिसे NDA की सरकार ने आवंटित किया है।”

टीएस सिंहदेव का आगे कहना है कि, “हरिहरपुर, फतेहपुर, साल्ही क्षेत्र के लोगों ने हमेशा इन 2 नए कोल ब्लॉक का विरोध किया है। लोगों का कहना है कि, फर्जी ग्रामसभा के जरिए इनवायरमेंट क्लियरेंस पास करवा लिया है। जबकि सारे ग्रामीण इसका विरोध करते रहे। वहीं नए 2 कोल ब्लॉक को लेकर 90 प्रतिशत ग्रामीणों का कहना है कि, नए कोल ब्लॉक ना खुलें।”

टीएस सिंहदेव ने यह भी बताया कि, “मैंने ग्रामीणों और उनके प्रतिनिधियों से लगातार बात की है। ग्रामीणों और उनके प्रतिनिधियों का कहना है कि, हमको पुराने माइंस से दिक्कत नहीं है। हमारी आपत्ति है, जो नए 2 माइंस हैं, सरकार उनको वापस ले। हम पुराने माइंस में दखल नहीं करेंगे।”

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने बताया कि, “परसा ईस्ट-2 केते बासन में 1138 हेक्टेयर वन कटना है। इसमें से 137 हेक्टेयर का वन काटा गया है। पिछले साल सिंतबर में 47 हेक्टर वन काटा गया था। अभी 91 हेक्टेयर वन की कटाई होनी है। अधिकारियों का कहना है कि, 15 हजार पेड़ों की कटाई की गई है, लेकिन ये आकड़ें कई गुना ज्यादा हैं।”

इस प्रोजेक्ट से गांव के गांव उजाड़ दिए जाएंगे। इतना ही नहीं हसदेव आंदोलन का नेतृत्व करने वाले रामलाल करियाम, जय नंदन पोर्ते, ठाकुर राम और कई अन्य नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कई लोगों पर गैर जमानती धाराएं लगाई गई हैं। कंपनी की शिकायतों पर लगातार फर्जी केस करवाए गए हैं। कटाई के दिन कई लोगों को पूरे दिन डिटेन करके रखा गया। रात 12 बजे के बाद लोगों को छोड़ा गया।

यहां पर अडानी के एमडीओ वाले खदान के आवंटन और जंगल की कटाई का विरोध करने के लिए ग्रामीण लगभग 600 दिन से आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘नए कोल ब्लॉक नहीं होना चाहिए, इसके लिए हम लगातार आंदोलन करते रहेंगे’।

आलोक शुक्ला ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि, ‘हसदेव में अगर माइनिंग होगी तो इसके दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे। हसदेव नदी और उस पर बने बांगो बांध जिससे 4 लाख हेक्टेयर सिंचाई होती है, वो प्रभावित होगी। इससे बाय़ोडाइवर्सिटी लॉस होगा।’

आलोक शुक्ला ने यह भी बताया कि, ‘पंचायत एक्सटेंशन ऑन शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) कानून 1996 के तहत बिना लोगों की मर्जी के उनकी जमीन पर खनन नहीं किया जा सकता। पेसा कानून के मुताबिक, खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी ज़रूरी है।’

आदिवासियों का आरोप है कि, इस प्रोजेक्ट के लिए जो मंजूरी दिखाई जा रही है वह फर्जी है। विरोध को दरकिनार करके जो परमिशन दी गई है वह गैरकनूनी है। सरकार को सारी क्लियरेंस रद्द करना चाहिए और माइनिंग परियोजना को रद्द करना चाहिए।

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का कहना है कि, छत्तीसगढ़ की सत्ता में काबिज होते ही भाजपा सरकार ने अपने चहेते कॉर्पोरेट अडानी के लिए संसाधनों की लूट और आदिवासियों के दमन की कार्रवाई शुरू कर दी है। जिसके लिए भारी पुलिस फोर्स को तैनात करके परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है। इसके पहले संगठन के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अब इस कटाई को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

वहीं पेड़ों की कटाई को लेकर स्थानीय लोगों का कहना है कि, “परसा कोयला ब्लॉक खनन को मंजूरी देने वाली ग्राम सभा की बैठकें फर्जी थीं, और 24 जनवरी 2018 को हरिहरपुर और 27 जनवरी 2018 को साल्ही गांवों में कोई बैठक नहीं की गई, क्योंकि उन तारीखों पर ऐसी कोई ग्राम सभा आयोजित नहीं की गई थी।”

ग्राम फतेहपुर के भुवनेश्वर सिंह पुर्ते का कहना है कि, “सरकार जबरन जंगल कटवा रही है। इस जंगल के बिना हमारा जीवन अधूरा है। इसी जंगल से हम अपना 75 प्रतिशत जीवन यापन करते हैं।”

पेड़ काटने को लेकर भुवनेश्वर सिंह पुर्ते ने आगे कहा कि, “हमें पहले पेड़ काटने की जानकारी नहीं थी। जब हमारे आंदोलकारी नेताओं को पुलिस उठाकर ले गई तब हमें इसकी जानकारी हुई।”

ग्राम पंचायत साल्ही के सरपंच विजय कुमार कोर्राम ने बताया कि, “ग्राम पंचायत की सभी सड़कों पर पुलिस तैनात है। अधिकारी पेड़ कटवा रहे हैं। हम लोग जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। पुलिस ने हमारे साथियों को उठा लिया है। लोगों को कहां ले जाया गया है उसकी जानकारी हमें नहीं है। ना ही पेड़ काटने से पहले ग्राम पंचायत का लिखित में सूचना दी गयी है। पेड़ काटने की सूचना किसी भी ग्रामीणवासी को नहीं दी गई है।”

पेड़ों की कटाई को लेकर कलेक्टर कुंदन कुमार का कहना है कि, “भारत सरकार और कोल मंत्रालय के साथ कोल माइंस के लिए पेड़ों की कटाई करने के लिए समीक्षा बैठक हुई थी। वहां हुए निर्णय के बाद पेड़ों की कटाई शुरू की गई है। यह काम पहले होना था, लेकिन आचार संहिता के कारण काम रुका था। कुल 91 हेक्टेयर में कटाई होनी है।”

लोग भाजपा सरकार पर सवाल उठाते हुए कह रहे हैं कि, “मोदी सरकार खुद को आदिवासियों का हितैषी बताती है, लेकिन उन पर ही जुल्म ढा रही है। आखिर अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार किस हद तक जाएगी? आखिर 2 नई माइंस को सरकार शुरू करने के लिए ग्रामीणों पर जुल्म क्यों ढा रही है?

सवाल तो ये भी उठ रहे हैं कि, जो जहरीली हवाएं निकलेंगी, सरकार और अडानी उस पर कंट्रोल करने के लिए क्या कदम उठाएंगे? सवाल तो यह भी है कि, लोगों से चर्चा किए बिना इन 2 माइंस को मंजूरी क्यों दी गई? स्थानीय लोगों से सरकार ने बात क्यों नहीं की?

(रायपुर से हिमांशु सिंह की रिपोर्ट।)

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