Thursday, April 25, 2024

सवाल तो कन्हैया और जिग्नेश से भी बनता है!

कन्हैया और जिग्नेश के कांग्रेस में शामिल होने पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है? कोई अवसरवादी कह रहा है, किसी के द्वारा दलबदलू ,सत्ता लोलुप तक कहा जा रहा है।भारतीय राजनीति में पार्टियों में शामिल होना और छोड़ना चलता ही रहता है। देशभर में चुने हुए या पूर्व प्रतिनिधियों में सर्वाधिक कांग्रेसी, भाजपा में शामिल हुए हैं। बंगाल के चुनाव के पहले बड़ी संख्या में टीएमसी के नेता भाजपा में शामिल हुए थे जिनकी गृह वापसी जारी है।
भारतीय राजनीति के ऐसे दौर में कन्हैया कुमार का सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में शामिल होना कन्हैया के समर्थकों को क्यों अखर रहा है? जिग्नेश तो कांग्रेस की परंपरागत बडनगर की सीट से कांग्रेस पार्टी के समर्थन से ही विधायक बने थे।

गुजरात में पहले अल्पेश ठाकुर और बाद में हार्दिक पटेल कांग्रेस में पहले ही शामिल हो चुके हैं। दोनों के कांग्रेस में जाने से कांग्रेस को लाभ होना तो तय है। हार्दिक पटेल के तौर पर कांग्रेस के पास पटेलों के एक नेता हैं जिनके साथ जिग्नेश का दलित आधार जुड़कर कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को मजबूती देगा। राहुल गांधी कांग्रेस के बुजुर्गों से हैरान परेशान हैं, दोनों युवा नेता कांग्रेस के भीतर राहुल के हाथ मजबूत करेंगे।
सीपीआई के तमाम नेता लिख बोलकर बता रहे हैं कि कन्हैया ने बिहार सीपीआई कार्यालय में तथा दिल्ली के अजय भवन में कुछ नेताओं के साथ मारपीट की। यह भी बताया जा रहा है कि वह पार्टी के साथ सौदेबाजी करते रहे हैं। तमाम खबरें इस तरह भी आ रही हैं कि सीपीआई में उन्हें लगातार अपमानित किया जा रहा था। इन सब बातों में क्या कुछ तथ्यपूर्ण है यह मैं नहीं जानता लेकिन, मैं सभी उपलब्ध जानकारियों के आधार पर यह कह सकता हूं कि कन्हैया का पार्टी ने पूरा उपयोग नहीं किया।

इसका जवाब तो सीपीआई का नेतृत्व ही दे सकता है लेकिन यह सही भी है तो कन्हैया को इस बात का जवाब जरूर देना होगा कि उन्होंने चुनावी संभावनाओं के अभाव में सीपीआई छोड़ी है या वैचारिक और व्यक्तिगत मतभेदों के कारण? उन्हें यह भी बताना होगा कि उन्होंने कांग्रेस का विकल्प क्यों चुना वह किसी वामपंथी पार्टी में क्यों नहीं गए? तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों को मैंने यह लिखते और बोलते हुए देखा है कि देश को बचाना है तो कांग्रेस को मजबूत करना जरूरी है । सीपीआई गठन के बाद और विभाजन के बाद भी कई बार कांग्रेस के समर्थन में खड़ी हुई है तथा चुनाव भी लड़ी है। ऐसी स्थिति में कन्हैया यह कह सकते हैं कि यदि हमें राजनीतिक तौर पर कांग्रेस के साथ ही खड़ा होना है तो कांग्रेस में शामिल होने पर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है ?

यह सर्वविदित है कि संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन को चलते हुए 10 महीने बीत चुके हैं। इस दौरान युवाओं को साथ लेकर किसानों के समर्थन में दोनों युवा नेता क्यों नहीं उतरे ? देश बचाने की लड़ाई किसान लड़ रहा है जिनके साथ देश का श्रमिक खड़ा हुआ है। ऐसे समय में यदि दोनों नेता किसान आंदोलन के समर्थन में उतर जाते तो देश बचाने की लड़ाई और ज्यादा प्रभावशाली बनाई जा सकती थी फिर दोनों नेताओं ने किसान आंदोलन के समर्थन की राह क्यों नहीं चुनी ? भारत देश कमाल का है यहां अचानक उभरे नेतृत्व से समाज और देश परिवर्तन की उम्मीद करने लगता है। ऐसी ही उम्मीद कन्हैया और जिग्नेश से देश को बनी थी। उमर खालिद और शेहला भी इसमें शामिल थे। अभी यह पता नहीं चला है कि उमर खालिद और शेहला भी कांग्रेस में जाएंगे।

उन दोनों के कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस को कितना लाभ होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह तय है कि दोनों ने अपने समर्थकों को दुखी और निराश किया है। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि दोनों का कांग्रेस पार्टी क्या उपयोग करती है, दोनों को क्या जिम्मेदारी देती है। जिम्मेदारी चाहे जो भी दे दे लेकिन यह तो तय है कि कांग्रेस पार्टी की नीतियों में कोई बदलाव दो युवा नेताओं के आने से होने वाला नहीं है। खुद राहुल गांधी कांग्रेस के छात्र युवा संगठन को अपनी समझ के मुताबिक चलाने के तथा पार्टी में सोनिया गांधी के वफादारों को अलग-थलग करने के तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस में कोई भी नीतिगत परिवर्तन करने से नाकामयाब रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह देखना रुचिकर होगा कि दोनों युवा नेता अपनी भाषा और बोलने के तौर-तरीकों में क्या अंतर लाते हैं। सीपीआई व्यक्ति केंद्रित या परिवारवादी पार्टी नहीं है, ना ही उसमें कार्यकर्ताओं से नेताओं की स्तुति करने की इच्छा रखी जाती है, लेकिन कांग्रेस में आगे बढ़ने के लिए उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के यशोगान और सांगठनिक तिकड़मों के तौर तरीकों को अपनाना ही होगा अन्यथा कांग्रेस के भीतर भी उनका भविष्य नहीं बन सकेगा।

अब दोनों स्वतंत्र नहीं रहे,पार्टी लाइन पर बोलना और काम करना पड़ेगा। दोनों ने कहा- कांग्रेस बचेगी तो देश बचेगा और वाम भी बचेगा। वाम तो किसानों, मज़दूरों, युवाओं और महिलाओं के बीच पूरी प्रतिबद्धता से बढ़ चढ़ कर काम कर रहा है। पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेसी, कांग्रेस को बचाना चाहते हैं ? यह कहना कठिन है क्योंकि कांग्रेस में गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सत्ता पाने के लिए तमाम समझौते हर स्तर पर किये जा रहे हैं। मंदिरों से चुनाव प्रचार शुरू होता है। सरकार बनने के बाद भी वायदे पूरे नहीं किये जाते। देश को सुधारने की नीति यानी भाजपा की नीतियों की वैकल्पिक नीतियां कांग्रेस ने देश के सामने प्रस्तुत नहीं की है। देश को बचाने का उद्देश्य सड़कों पर बिना उतरे, बिना जेल जाए होने वाला नहीं है। कांग्रेस आज़ादी के आंदोलन के बाद कभी सड़कों पर उतरी नहीं है।

यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि दोनों युवा नेताओं के पास कोई जादू की छड़ी है जिसके घुमाते ही कांग्रेस सड़क पर उतर जाएगी और वैकल्पिक नीतियों को देश के सामने रखेगी।

(डॉ.सुनीलम पूर्व विधायक और किसान मोर्चे के नेता हैं।)

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