सीतापुर के किसानों को मिले 10 लाख के बॉन्ड नोटिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट सख्त

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से दो फरवरी तक इस बारे में जवाब मांगा है कि आखिर किस आधार पर सीतापुर में सैकड़ों किसानों को ‘ब्रीच ऑफ पीस’ के नाम पर 50,000 से 10 लाख तक के जमानती बॉन्ड के नोटिस भेजे गए थे।

दो महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के एक जिले में कई किसानों को सरकार की ओर से 50,000 से लेकर 10 लाख तक के पर्सनल बॉन्ड भरने का नोटिस दिया गया था। यह बॉन्ड उनसे इसलिए भरने को कहा गया था, क्योंकि उन पर यह आशंका थी कि वो आंदोलन के तहत कानून-व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले हैं। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से दो फरवरी तक इस बारे में जवाब मांगा है कि आखिर किस आधार पर गरीब किसानों को ‘ब्रीच ऑफ पीस’ के यह नोटिस भेजे गए थे।

दरअसल 19 जनवरी को राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले में ट्रैक्टर रखने वाले किसानों को नोटिस दिया गया था, जिसमें उनसे 50,000 से लेकर 10 लाख तक का पर्सनल बॉन्ड और इतने की ही श्योरिटी जमा करने को कहा गया था। नोटिस में इस बात की आशंका जताई गई थी कि जिले में बढ़ते किसान आंदोलन के तहत किसान कानून-व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले हैं।

हाई कोर्ट ने सोमवार को सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति धुरु की एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया है कि सीतापुर में ऐसे नोटिस सैकड़ों किसानों को दिए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार की ओर से जारी ये नोटिस न तो बस आधारहीन हैं, बल्कि किसानों के मूल अधिकार भी छीनने वाला है, क्योंकि पुलिस इन किसानों के घरों को घेरकर बैठी हुई है और वो अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जस्टिस रमेश सिन्हा और राजीव सिंह की बेंच ने कहा कि जनहित याचिका के मुताबिक, डीएम के अधीन काम करने वाले सीतापुर के विभिन्न क्षेत्रों के एसडीएम ने आदेश दिए थे।

याचिका में कहा गया है कि पर्सनल बॉन्ड और श्योरिटी की रकम हद से भी ज्यादा थी और गरीब किसानों से नहीं मांगी जा सकती थी, वो भी इन्हें बस स्थानीय पुलिसकर्मियों के रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया था और किसानों को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला था।

नोटिस में कहा गया था कि ऐसा जानकारी में आया है उपरोक्त लोगों में किसान कानूनों के विरोध को लेकर आपसी विवाद है, जिसके चलते तनाव की स्थिति है, जिससे वो कभी भी शांति भंग कर सकते हैं, ऐसे में इन नोटिसों के जरिए दोनों पक्षों को भारी जमानतों से पाबंद करना जरूरी है। ऐसे नोटिस 10 किसानों को जारी किए गए थे और दो दिनों के भीतर जिला न्यायालय में पेश होने को कहा गया था। उनसे इस सवाल का जवाब मांगा गया था कि आखिर क्यों उन्हें पर्सनल बॉन्ड पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए।

महोली एसडीएम ने 10 किसानों को नोटिस जारी किया, जिसमें चार महिलाएं भी हैं। सभी को 21 जनवरी की सुबह 10 बजे तक हाजिर होने के लिए कहा गया था। सभी से पूछा गया कि आखिर क्यों नहीं उनसे एक साल तक शांति बनाए रखने के लिए 10 लाख रुपये के बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराए जाएं।

पिसावन पुलिस थाने के तहत आने वाले किसानों को एसडीएम राठौड़ द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि यह संज्ञान में लाया गया है कि गांव सतनापुर में निम्नलिखित लोगों (10 व्यक्तियों) के बीच कृषि कानूनों पर प्रदर्शन को लेकर विवाद हुआ था। इस वजह से तनाव की स्थिति बनी है, इसके कारण लोग किसी भी समय शांति भंग कर सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए विरोधी पक्षों को रोकना आवश्यक है।

माहोली एसडीएम द्वारा जारी नोटिस में 21 जनवरी को सुबह 10 बजे तक उपस्थित होने के लिए चार महिलाओं सहित 10 किसानों को निर्देश दिया गया था। इसके अलावा उन्हें यह बताने के लिए कहा गया कि क्यों उनसे दस लाख रुपये के बॉन्ड पर हस्ताक्षर नहीं कराया जाना चाहिए, ताकि शांति बनी रहे। जिन किसानों को ये नोटिस मिला है, उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं दिया गया और अधिकारियों ने नोटिस दिखाकर वापस ले लिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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