Sunday, April 28, 2024

ANI ने फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की

नई दिल्ली। सात अक्टूबर को हमास के हमले के बाद इज़राइल के फलस्तीनी जनता के खिलाफ युद्ध छेड़ दिये जाने के विरोध में दुनिया भर में प्रदर्शन हुए। फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में भारत में भी कई जगहों पर प्रदर्शन हुए जिनमें छात्र-छात्राओं, श्रमिक यूनियनों के सदस्यों, सिविल सोसायटी के सदस्यों समेत राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया लेकिन मुख्यधारा के मीडिया के एक बड़े हिस्से ने या तो इसकी अनदेखी की या फिर ट्विस्ट कर खबरें दीं।

एक उदाहरण समाचार एजेंसी एएनआई की 13 अक्टूबर के प्रदर्शनों को सांप्रदायिक रंग देने वाली यह रिपोर्ट है, जो टाइम्स ऑफ इंडिया और जम्मू लिंक्स न्यूज़ वेबसाइट पर छपी दिखी लेकिन जाहिर है और भी कई जगह छपी होगी। रिपोर्ट का शीर्षक ही भ्रामक और शरारतपूर्ण है : एज़ वॉर रेजिस इन गज़ा, प्रोटेस्ट्स इरप्ट आफ्टर फ्राइडे प्रेयर्स इन हैदराबाद, जे-के एंड लखनऊ”। प्रदर्शनों को जुम्मे की नमाज़ से जोड़कर हैदराबाद डेटलाइन की इस खबर में यह स्थापित करने की कोशिश है कि प्रदर्शनकारी मुस्लिम थे। जो कि पूरी तरह गलत है।

फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में प्रदर्शन केवल हैदराबाद, लखनऊ और जम्मू कश्मीर में ही नहीं हुए। 13 अक्टूबर को ही दिल्ली, चंडीगढ़, बंगलुरू, मुंबई, पटना समेत कई शहरों में हुए थे। प्रदर्शन उसके बाद भी हुए हैं, हो रहे हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि प्रदर्शनों में समाज के तमाम वर्ग शामिल हुए थे, यह विभिन्न जगहों पर प्रदर्शनों या गतिविधियों को बाधित करने अथवा शामिल लोगों के खिलाफ पुलिस-प्रशासन की कार्रवाइयों से भी साबित होता है जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं:

दिल्ली, मुंबई, प्रयागराज समेत कुछ जगहों पर प्रदर्शन से पहले ही कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया या हाऊस अरेस्ट किया गया। प्रदर्शन के दौरान भी, प्रदर्शन शुरू होते ही मिनटों में प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया, पुलिस थानों पर ले जाया गया और बाद में छोड़ा गया। तेलंगाना में छात्र-छात्राओं को हिरासत में लिया गया। मार्च निकालने पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चार छात्रों को निलंबित किया गया। बंगलुरू में 11 कार्यकर्ताओं पर एफआईआर की गई।

ऐसे में मीडिया के प्रदर्शनों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। हालांकि इसमें अनपेक्षित या आश्चर्यजनक कुछ नहीं है। आम जनता के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए हानिकारक गोदी मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इज़राइल के समर्थन में ट्वीट से यह संकेत लिया था। यह अलग बात है कि बाद में सरकार के रुख में बदलाव नज़र आने लगा।

अलावा इसके, सरकार या किसी भी मुद्दे पर सरकार की लाइन के खिलाफ प्रदर्शनों को बदनाम करने का गोदी मीडिया का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।

दिशा छात्र संगठन की तेलंगाना इकाई ने एएनआई और अन्य मीडिया की ऐसी कोशिशों के खिलाफ आवाज़ उठाने की अपील लोगों से की है। वहीं कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन, जो विभिन्न छात्र,श्रमिक, मानवाधिकार, जनवादी संगठनों का गठजोड़ है, ने प्रदर्शनों व प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस-प्रशासन की तरफ से अलोकतांत्रिक रूप से कार्रवाई करने की निंदा की है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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