Sunday, April 28, 2024

सुप्रीम कोर्ट से सुर्खियां: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में शाही ईदगाह के सर्वे पर रोक

मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने इस मस्जिद का सर्वे करने के लिए कमिश्नर नियुक्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को हिंदू पक्ष के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से केस से जुड़े सारे मुकदमों को अपने पास सुनवाई के लिए ट्रांसफर करने के आदेश पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, तब हाईकोर्ट ने अपने पास केस को कैसे ट्रांसफर किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट मामले में मेटनबिल्टी पर सुनवाई कर सकता है, लेकिन कमिश्नर की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट के जज आगे नहीं बढ़ेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान हिंदू पक्ष की दलीलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आपकी अर्जी बहुत अस्पष्ट है। आपको स्पष्ट रूप से बताना होगा कि आप क्या चाहते हैं। इसके अलावा ट्रांसफर का मामला भी इस न्यायालय में लंबित है। हमें उस पर भी फैसला लेना है।

पीठ ने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के खिलाफ दाखिल मुस्लिम पक्ष की याचिका पर हिन्दू पक्ष को नोटिस जारी किया है। इस मामले पर अब 23 जनवरी को अगली सुनवाई होगी।

दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर को शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए एक कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति पर सहमति दी थी। इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उस मस्जिद में हिन्दू प्रतीक चिह्न हैं, जिससे पता चलता है कि वह कभी हिंदू मंदिर था।

ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ुखाना (पानी की टंकी) की सफाई की अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 जनवरी) को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ुखाना (पानी की टंकी) की सफाई की अनुमति दी, जहां मई, 2022 में आयोग के सर्वेक्षण के दौरान शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हिंदू वादी द्वारा दायर आवेदन स्वीकार कर लिया, जो मस्जिद परिसर में देवताओं की पूजा करने का अधिकार मांग रहे हैं। मस्जिद प्रबंधन समिति द्वारा टैंक को साफ करने के आवेदन का विरोध नहीं किया गया।

वादी पक्ष ने टैंक के अंदर मरी हुई मछलियों की मौजूदगी का हवाला देते हुए टैंक को साफ करने की मांग की। मस्जिद समिति ने पीठ को यह भी बताया कि उन्होंने वाराणसी जिला कलेक्टर के समक्ष भी इसी तरह का आवेदन दायर किया।

वादी पक्ष की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र का निस्तारण करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि वाराणसी जिलाधिकारी की देखरेख में सफाई कराई जाए।

ज्ञानवापी मामले में हिन्दू पक्ष की वकील माधवी दीवान ने कथित शिवलिंग के टैंक को साफ कराने की मांग की। इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी के सील एरिया में टैंक की सफाई की इजाजत दे दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा क‍ि जिलाधिकारी टैंक की सफाई के दौरान कोर्ट के पिछले आदेश का ध्यान रखें। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में कहा था क‍ि शिवलिंग को सुरक्षित रखा जाए और किसी भी चीज से छेड़छाड़ न की जाए।

गौरी लंकेश हत्याकांड के आरोपियों की जमानत रद्द करने की याचिका पर नोटिस

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और सतीश चंद्र शर्मा ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में एक आरोपी को जमानत देने को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। लंकेश की छोटी बहन कविता लंकेश द्वारा दायर याचिका में मोहन नायक को दी गई जमानत रद्द करने की मांग की गई है, जिस पर हत्या की साजिश का हिस्सा होने का आरोप है।

लंकेश, जिनकी 2017 में बेंगलुरु में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, एक पत्रकार और कन्नड़ टैब्लॉइड लंकेश पत्रिके की संपादक थीं। उसकी हत्या के बाद, एक जांच शुरू की गई और आरोप पत्र दायर किया गया, जबकि आगे की जांच जारी रही।

कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (सीओसीए) के तहत प्रावधानों को लागू करने की मंजूरी मिलने के बाद, एक अतिरिक्त आरोप पत्र दायर किया गया था जिसमें नायक को आरोपी नंबर 11 के रूप में आरोपित किया गया था। उन्हें 2018 में गिरफ्तार किया गया था। नायक के खिलाफ आरोप यह था कि उसने हत्या की साजिश के तहत आरोपी नंबर 2 और 3 को शरण दी थी, जिन्होंने लंकेश को गोली मारी थी।

हालांकि नायक ने विभिन्न अदालतों में कई बार जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन पिछले साल 7 दिसंबर तक उन्हें राहत नहीं मिली, जब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी कि उन्होंने 5 साल से अधिक समय हिरासत में बिताया है और मुकदमा जल्द पूरा होने की संभावना नहीं है।

चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर बंटा हुआ फैसला

आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर अब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुनवाई करेंगे। दरअसल दो जजों की पीठ ने याचिका पर अलग-अलग फैसला दिया। जिसके बाद पीठ ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है।

याचिका में पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू ने स्किल डेवलेपमेंट घोटाले के मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आज जब पीठ ने फैसला सुनाया तो दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला दिया और उनके फैसले में सहमति नहीं बन पाई। जिसके बाद पीठ ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया है।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के लागू होने को लेकर सहमत नहीं हो सकी। इस धारा के तहत जांच शुरू करने से पहले मंजूरी लेने का प्रावधान है।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस का मानना था कि तेदेपा चीफ चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मंजूरी ली जानी चाहिए थी। वहीं जस्टिस बेला त्रिवेदी का मानना था कि इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए लागू नहीं होती है। ऐसे में उन्होंने चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया।

उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत भ्रष्टाचार की शिकायत होने पर अधिकारी के खिलाफ जांच के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होगी। बिना सरकारी अनुमति के पुलिस किसी भी अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं कर सकती और ना ही एफआईआर कर सकती है।

साल 2016 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू ने राज्य के बेरोजगार युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देने के लिए आंध्र प्रदेश स्टेट स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन की स्थापना की थी। 3,300 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट के लिए तत्कालीन राज्य सरकार ने सीमेंस इंडस्ट्री सॉफ्टवेयर इंडिया लिमिटेड और डिजाइन टेक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के साथ करार किया।

इस प्रोजेक्ट के तहत सीमेंस ने राज्य में छह एक्सिलेंस सेंटर स्थापित किए थे। आरोप है कि मुख्यमंत्री रहते हुए चंद्रबाबू नायडू ने फंड का गलत इस्तेमाल किया था, जिससे सरकारी खजाने को 371 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

सीबीआई ने 9 दिसंबर 2021 को स्किल डेवलेपमेंट घोटाले में एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें 25 लोगों को आरोपी बनाया गया था। उस वक्त एफआईआर में चंद्रबाबू नायडू का नाम नहीं था। मार्च 2023 में सीआईडी ने इस मामले की जांच शुरू की और जांच के आधार पर घोटाले की एफआईआर में चंद्रबाबू नायडू को 37वां आरोपी बनाया गया।

इस मामले में सीआईडी ने तेदेपा चीफ चंद्रबाबू नायडू को 9 सितंबर 2023 में नांदयाल से गिरफ्तार किया था। जिसके बाद चंद्रबाबू नायडू 53 दिन जेल में रहे। 31 अक्तूबर 2023 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने चंद्रबाबू नायडू को मेडिकल आधार पर चार हफ्ते की जमानत दे दी थी।

इसके बाद 20 नवंबर 2023 को हाईकोर्ट ने माना की प्रथम दृष्टया पूर्व सीएम के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता और पूर्व सीएम को नियमित जमानत दे दी।

चंद्रबाबू नायडू ने स्किल डेवलेपमेंट घोटाले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसी याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट की पीठ के फैसले में सहमति नहीं बन पाई।  जिस पर अब मुख्य न्यायाधीश फैसला करेंगे।

केजरीवाल, संजय सिंह के खिलाफ मानहानि की कार्यवाही पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री से संबंधित टिप्पणी के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और सांसद संजय सिंह के खिलाफ शुरू की गई मानहानि की कार्यवाही पर मंगलवार को रोक लगा दी। यह रोक चार सप्ताह की अवधि के लिए लगायी गई है।

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस  संदीप मेहता की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय से इस मामले में नेताओं द्वारा दायर अंतरिम राहत की याचिका का इस दौरान शीघ्र निपटारा करने को भी कहा।

यह आदेश सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर आया जिसमें मामले को गुजरात राज्य के बाहर एक निचली अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। हालांकि, स्थानांतरण याचिका पर विचार नहीं किया गया।

केजरीवाल और सिंह के खिलाफ मानहानि की शिकायत गुजरात विश्वविद्यालय ने दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री का खुलासा नहीं करने को लेकर उसके खिलाफ ‘मानहानिकारक’ बयान दिए।

एक मजिस्ट्रेट ने उन्हें पिछले साल अप्रैल में मानहानि के इस मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए तलब किया था। पिछले साल सितंबर में गुजरात उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा जारी समन के खिलाफ केजरीवाल और सिंह की अपीलों पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में इन कार्यवाहियों पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसे शीर्ष अदालत ने बरकरार रखा था।

मानहानि का मामला तब सामने आया जब गुजरात उच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई अधिनियम) के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री और स्नातकोत्तर डिग्री प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें पीएमओ के जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) और गुजरात विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के पीआईओ को मोदी की स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। उच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल पर भी 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।

नवंबर 2023 में, न्यायमूर्ति वैष्णव ने इस फैसले की शुद्धता को चुनौती देने वाली एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि जुर्माना लगाना उचित था क्योंकि केजरीवाल ने इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग किया था।

दिसंबर 2023 में, केजरीवाल ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष एकल-न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की। यह अपील अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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